बड़ी मुश्किल से दिल की बेक़रारी को क़रार आया
सैयद एस.तौहीद की क़लम से
बुलंदशहर का एक छोटा सा कस्बा जारचा. इसी कस्बे के नक्शानवीस हैदर अब्बास के घर गीतकार नक्शब जारचवी का जन्म हुआ था. भाई बहनों में नक्शब जारचवी तीसरे नंबर पर थे. नक्शब का असल नाम अख्तर अब्बास था. आपका परिवार जारचा छोड़कर मेरठ आबाद हो गया. आपने हाई स्कूल तक वहीं पढाई की. बचपन से ही शायरी क शौक रहा, शायरी को लेकर आपकी दीवानगी कालेज के दिनों से पलने लगी थी .नाम के साथ जारचवी तखल्लुस रखकर अलीगढ़ के दिनों से लिख रहे थे. इसी जमाने में मुशायरों मे जाते भी रहे. यह आगाज अमरोहा से हुआ जो आगे जाकर दिल्ली गया. दिल्ली के एक मुशायरा जिसकी सदारत कुंवर सिंह बेदी कर रहे थे. नक्शब ने अपनी गज़ल पढी. गज़ल सुनने बाद बेदी साहब ने मशहूर फिल्मकार वी शांताराम के नाम नक्शब के लिए ख़त लिख दिया. ख़त लेकर आप बम्बई चले आए. शांताराम ने नक्शब को एक प्रगतिरत फिल्म के लिए गाने लिखने हेतु साइन कर लिया. इसके बाद आपने और भी फिल्मों के गाने लिखे . आपके ताल्लुक से फिल्म 'जीनत' की कव्वाली ' आहें ना भरे शिकवे ना किए, कुछ भी न जुबान से काम लिया. हम दिल को पकड़कर बैठ गए, हांथो से कलेजा थाम लिया' काफी मशहूर हुई. महिलाओं की आवाज़ मे रिकार्ड की जाने वाली पहली कव्वाली कही जाती है. इसे नूरजहां एवं साथियों ने आवाज़ दी संगीतकार हफीज खान ने लाजवाब धुन बनाई.
जीनत में ब्रेक मिलने बाद आपने राशिद अत्रे के साथ अनेक प्रोजेक्ट पर काम किया. बंटवारे की तात्कालिक हडबडी में पाकिस्तान तुरंत नहीं पलायन कर गए. गए जरुर लेकिन एक दशक बाद सन अठावन में. नक्शब जारचवी के ताल्लुक नूरजहां व जोहराबाई अंबालेवाली सरीखे फनकारों से सजी फिल्म जीनत महत्वपूर्ण थी। शौकत रिजवी की जीनत में नूरजहां ने एक महत्वपूर्ण किरदार भी निभाया था. नक्शब ने लिखे गीत मसलन आंधियां युं चली बाग उजड गए काफी मशहूर हुए.नक्शब के ताल्लुक कमाल अमरोही की मशहूर महल भी याद आती है. हिंदी सिनेमा में अशोक कुमार—मधुबाला की यह फिल्म रूचि—रहस्य कथाओं में रिफरेंस प्वांइट मानी जानी चाहिए. महल के सभी गीत नक्शब जारचवी ने लिखे. इसका हर गाना अपनी जगह शाहकार बना. यह गाने अपनी खासियत की वजह से आज भी याद किए जाते हैं.
चालीस दशक की देव आनंद व कामिनी कौशल अभिनीत फ़िल्म में मशहूर संगीतकार सी रामचंद्र साथ भी नक्शब जारचवी ने काम किया. आपके लिखे गीतों को शमशाद बेगम व लता जी ने आवाज दी. शमशाद आपा का..जिया मोरा इसी फ़िल्म से था. पचास दशक में रिलीज ख्वाजा अहमद अब्बास की ‘अनहोनी’ में संगीत था रोशन का तथा गीतकारों की फ़ेहरिस्त में नक्शब भी शामिल थे. अनहोनी राजकपूर व नर्गिस की यादगार फ़िल्म बनी. लता व नवोदित गायिका राजकुमारी द्वारा मिलकर गाया गीत ...जिंदगी बदली काफ़ी चला.
पचास दशक की शुरुआत में नक्शब ने फ़िल्म नगरी में अपना सिक्का जमा लिया था. इसी दशक में गीत लिखते हुए फ़िल्म मेकिंग में चले आए. फिल्मकार के रूप में अशोक कुमार व नादिरा की नग़मा आपकी पहली फ़िल्म थी. फ़िल्म के गीत आप ने ही लिखे. धुनें मशहूर नौशाद ने रखी ...बडी मुश्किल से दिल की बेकरारी को करार आया. शमशाद आपा की आवाज़ से सजा यह गाना एक जमाने में जबरदस्त हिट था. इसी फ़िल्म का एक और सुपरहिट नगमा...जादूगर बलमा छोड़ मोरी.. अमीर बाई की आवाज़ व नक्शब के बोल आज भी कानों में गूंज रहे . पचास दशक के आखिर सालों में नक्शाब ने ज़िन्दगी या तूफ़ान का निर्माण किया. एक बार फ़िर धुनें नौशाद साहेब ने सजाई. प्रदीप कुमार व नूतन अभिनीत इस फ़िल्म का गीत..तुमको करार आए काफी लोकप्रिय हुआ. सन अठावन में आप करांची पलायन कर गए. आपकी शादी बुलंदशहर की ही लड़की से हुयी. एक जानकारी के अनुसार तेरह साल के लम्बे करियर में नक्शब को ज़माने के नामचीन फ़नकारों साथ काम करने का मौका मिला.
नक्शब को शायर से ज्यादा फिल्मकार कहलाना भाता था. इस ताल्लुक से आपने बताया कि हमारे हल्के में किसी का शायर हो जाना आम बात..घर घर से शायर निकला करते हैं. इसलिए मुझे वो खास नही मालूम देता. हालांकि आपका काम ऐसा नही कहता कि आप फिल्मकार बेहतर थे! आपने केरियर में शायरी एवम गीत बहुत लिखे ,फिल्में कम बनाई. शायर शख्सियत पर नज़र डाले तो यही सच्ची पहचान मालूम पड़ती है.नहीँ भूलें कि कव्वाली आहें ना भरा...फ़िर महल का थीम गाना एवम नवबहार का 'भटके हुए मुसाफिर मंजिल को 'से नक्शब को जोड़कर आज तक देखा जाता है. संगीतकार खेमचंद प्रकाश की नायाब धुनों से सजा यह गीत आज भी आकर्षित करता है. सिर्फ यही नहीँ आपके लिखी ज़्यादातर गाने सराहनीय रहे. इस तरह आपको शायर ही कहना चाहिए.
बम्बई के मुश्किल दिनो का जिक्र करते हुए लिखा
आपकी लिखी कव्वाली ने जिंदगी को मझधार से पार लगा दिया. नक्शब कि जिंदगी का यही वो मोड़ था जहां से आपके दिन तेजी से बदलने लगे. लिखे गानों के जरिए आमदनी में भारी इजाफा हुआ.लिखने वास्ते अपनी मर्जी कि फीस मिलने से यह मुम्क़िन हो सका.आपने फिल्मी गीतकारों कि कदर व क़ीमत बढ़ा दी. अापने लिखने के लिए फीस मुकर्रर कर रखी थी. आपसे पहले गीतकारों को मामूली फीस मिला करती थी.लेखन को प्रोफेशनल कारीगरी मे उसका हक मुनासिब दर्जा मिला.मुश्किल भरे दिन बीते ज़माने कि बात हो चली.
(रचनाकार-परिचय:
जन्म : 2 अक्टूबर 1983 को पटना (बिहार) में
शिक्षा : जामिया मिल्लिया इस्लामिया से उच्च शिक्षा
सृजन : सिनेमा पर अनेक लेख . फ़िल्म समीक्षाएं
संप्रति : सिनेमा व संस्कृति विशेषकर हिंदी फिल्मों पर लेखन।
संपर्क : passion4pearl@gmail.com )
सैयद एस. तौहीद को हमज़बान पर पढ़ें
गूगल साभार |
सैयद एस.तौहीद की क़लम से
बुलंदशहर का एक छोटा सा कस्बा जारचा. इसी कस्बे के नक्शानवीस हैदर अब्बास के घर गीतकार नक्शब जारचवी का जन्म हुआ था. भाई बहनों में नक्शब जारचवी तीसरे नंबर पर थे. नक्शब का असल नाम अख्तर अब्बास था. आपका परिवार जारचा छोड़कर मेरठ आबाद हो गया. आपने हाई स्कूल तक वहीं पढाई की. बचपन से ही शायरी क शौक रहा, शायरी को लेकर आपकी दीवानगी कालेज के दिनों से पलने लगी थी .नाम के साथ जारचवी तखल्लुस रखकर अलीगढ़ के दिनों से लिख रहे थे. इसी जमाने में मुशायरों मे जाते भी रहे. यह आगाज अमरोहा से हुआ जो आगे जाकर दिल्ली गया. दिल्ली के एक मुशायरा जिसकी सदारत कुंवर सिंह बेदी कर रहे थे. नक्शब ने अपनी गज़ल पढी. गज़ल सुनने बाद बेदी साहब ने मशहूर फिल्मकार वी शांताराम के नाम नक्शब के लिए ख़त लिख दिया. ख़त लेकर आप बम्बई चले आए. शांताराम ने नक्शब को एक प्रगतिरत फिल्म के लिए गाने लिखने हेतु साइन कर लिया. इसके बाद आपने और भी फिल्मों के गाने लिखे . आपके ताल्लुक से फिल्म 'जीनत' की कव्वाली ' आहें ना भरे शिकवे ना किए, कुछ भी न जुबान से काम लिया. हम दिल को पकड़कर बैठ गए, हांथो से कलेजा थाम लिया' काफी मशहूर हुई. महिलाओं की आवाज़ मे रिकार्ड की जाने वाली पहली कव्वाली कही जाती है. इसे नूरजहां एवं साथियों ने आवाज़ दी संगीतकार हफीज खान ने लाजवाब धुन बनाई.
जीनत में ब्रेक मिलने बाद आपने राशिद अत्रे के साथ अनेक प्रोजेक्ट पर काम किया. बंटवारे की तात्कालिक हडबडी में पाकिस्तान तुरंत नहीं पलायन कर गए. गए जरुर लेकिन एक दशक बाद सन अठावन में. नक्शब जारचवी के ताल्लुक नूरजहां व जोहराबाई अंबालेवाली सरीखे फनकारों से सजी फिल्म जीनत महत्वपूर्ण थी। शौकत रिजवी की जीनत में नूरजहां ने एक महत्वपूर्ण किरदार भी निभाया था. नक्शब ने लिखे गीत मसलन आंधियां युं चली बाग उजड गए काफी मशहूर हुए.नक्शब के ताल्लुक कमाल अमरोही की मशहूर महल भी याद आती है. हिंदी सिनेमा में अशोक कुमार—मधुबाला की यह फिल्म रूचि—रहस्य कथाओं में रिफरेंस प्वांइट मानी जानी चाहिए. महल के सभी गीत नक्शब जारचवी ने लिखे. इसका हर गाना अपनी जगह शाहकार बना. यह गाने अपनी खासियत की वजह से आज भी याद किए जाते हैं.
नक्शब का लिखा ‘आएगा आएगा आनेवाला’ बेहद मकबूल हुआ. नवोदित लता मंगेशकर को गायकी की दुनिया में मकबूल करने वाला यह गीत आज भी पुराना नहीं हुआ. खेमचंद प्रकाश का संगीत फिल्म की बडी खासियत थी. यही वो वह सुपर गीत रहा जिसने लता को एक मशहूर बना दिया . इसी फ़िल्म का लता का गाया दूसरा गाना..मुश्किल बहुत मुश्किल, चाहत का भुला देना भी हिट हुआ था. कहना लाजमी होगा कि लता को परवाज़ नक्शब जारचवी की कलम से मिली थी.
चालीस दशक की देव आनंद व कामिनी कौशल अभिनीत फ़िल्म में मशहूर संगीतकार सी रामचंद्र साथ भी नक्शब जारचवी ने काम किया. आपके लिखे गीतों को शमशाद बेगम व लता जी ने आवाज दी. शमशाद आपा का..जिया मोरा इसी फ़िल्म से था. पचास दशक में रिलीज ख्वाजा अहमद अब्बास की ‘अनहोनी’ में संगीत था रोशन का तथा गीतकारों की फ़ेहरिस्त में नक्शब भी शामिल थे. अनहोनी राजकपूर व नर्गिस की यादगार फ़िल्म बनी. लता व नवोदित गायिका राजकुमारी द्वारा मिलकर गाया गीत ...जिंदगी बदली काफ़ी चला.
पचास दशक की शुरुआत में नक्शब ने फ़िल्म नगरी में अपना सिक्का जमा लिया था. इसी दशक में गीत लिखते हुए फ़िल्म मेकिंग में चले आए. फिल्मकार के रूप में अशोक कुमार व नादिरा की नग़मा आपकी पहली फ़िल्म थी. फ़िल्म के गीत आप ने ही लिखे. धुनें मशहूर नौशाद ने रखी ...बडी मुश्किल से दिल की बेकरारी को करार आया. शमशाद आपा की आवाज़ से सजा यह गाना एक जमाने में जबरदस्त हिट था. इसी फ़िल्म का एक और सुपरहिट नगमा...जादूगर बलमा छोड़ मोरी.. अमीर बाई की आवाज़ व नक्शब के बोल आज भी कानों में गूंज रहे . पचास दशक के आखिर सालों में नक्शाब ने ज़िन्दगी या तूफ़ान का निर्माण किया. एक बार फ़िर धुनें नौशाद साहेब ने सजाई. प्रदीप कुमार व नूतन अभिनीत इस फ़िल्म का गीत..तुमको करार आए काफी लोकप्रिय हुआ. सन अठावन में आप करांची पलायन कर गए. आपकी शादी बुलंदशहर की ही लड़की से हुयी. एक जानकारी के अनुसार तेरह साल के लम्बे करियर में नक्शब को ज़माने के नामचीन फ़नकारों साथ काम करने का मौका मिला.
नक्शब को शायर से ज्यादा फिल्मकार कहलाना भाता था. इस ताल्लुक से आपने बताया कि हमारे हल्के में किसी का शायर हो जाना आम बात..घर घर से शायर निकला करते हैं. इसलिए मुझे वो खास नही मालूम देता. हालांकि आपका काम ऐसा नही कहता कि आप फिल्मकार बेहतर थे! आपने केरियर में शायरी एवम गीत बहुत लिखे ,फिल्में कम बनाई. शायर शख्सियत पर नज़र डाले तो यही सच्ची पहचान मालूम पड़ती है.नहीँ भूलें कि कव्वाली आहें ना भरा...फ़िर महल का थीम गाना एवम नवबहार का 'भटके हुए मुसाफिर मंजिल को 'से नक्शब को जोड़कर आज तक देखा जाता है. संगीतकार खेमचंद प्रकाश की नायाब धुनों से सजा यह गीत आज भी आकर्षित करता है. सिर्फ यही नहीँ आपके लिखी ज़्यादातर गाने सराहनीय रहे. इस तरह आपको शायर ही कहना चाहिए.
इस जुझारू शख्सियत ने पाकिस्तान जाने का निर्णय किन हालात में किया? इस बारे में जानकारी नहीं मिलती. एक किताब में नक्शब के हवाले से लिखा गया... एक रात में कोई जनाब आपके घर मुलाकात के लिए आए. अगली सुबह दरअसल वो जनाब विलायत जाने वाले थे. नक्शब आपको तोहफा देना चाहते थे...आधी रात पर भी जानेवाले के लिए वो तोहफा मंगवाया गया. एक किस्से के अनुसार आपका यह मानना.. एक बार नोट किसी के लिए बाहर निकला तो वह उसी का हो गया नक्शब की दरियादिली बताता है...ऐसे बहुत से किस्से ‘मेरा कोई माज़ी नहीं’ में संकलित हैं.
बम्बई के मुश्किल दिनो का जिक्र करते हुए लिखा
' उन दिनों जीनत के लिए गाने लिख रहा था. काम ख़त्म हुआ तो दिल्ली चला आया. यहां रहते हुए मुझे ना जाने शहर से बहुत लगाव हो गया. सब्जी मंडी इलाके मे मामूली सा कमरा लेकर रहने लगा. दिल्ली मे एक मुकम्मल ठिकाना बनाने की ज़िद में ज़मीन लेकर मकान की तामीर मे लग गया.मुशायरों एवम फिल्म से आई आमदनी से वो बन रहा था.बनकर पूरा ही हुआ था कि बंटवारे ने क़यामत कर दी. मकान से फ़ायदा उठाना मुझे नसीब नहीँ हुआ. इन हालात ने कड़े इम्तिहान में डाल दिया. खुदा के करम से उधर जीनत जबरदस्त हिट हो गयी'
आपकी लिखी कव्वाली ने जिंदगी को मझधार से पार लगा दिया. नक्शब कि जिंदगी का यही वो मोड़ था जहां से आपके दिन तेजी से बदलने लगे. लिखे गानों के जरिए आमदनी में भारी इजाफा हुआ.लिखने वास्ते अपनी मर्जी कि फीस मिलने से यह मुम्क़िन हो सका.आपने फिल्मी गीतकारों कि कदर व क़ीमत बढ़ा दी. अापने लिखने के लिए फीस मुकर्रर कर रखी थी. आपसे पहले गीतकारों को मामूली फीस मिला करती थी.लेखन को प्रोफेशनल कारीगरी मे उसका हक मुनासिब दर्जा मिला.मुश्किल भरे दिन बीते ज़माने कि बात हो चली.
(रचनाकार-परिचय:
जन्म : 2 अक्टूबर 1983 को पटना (बिहार) में
शिक्षा : जामिया मिल्लिया इस्लामिया से उच्च शिक्षा
सृजन : सिनेमा पर अनेक लेख . फ़िल्म समीक्षाएं
संप्रति : सिनेमा व संस्कृति विशेषकर हिंदी फिल्मों पर लेखन।
संपर्क : passion4pearl@gmail.com )
सैयद एस. तौहीद को हमज़बान पर पढ़ें
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी