बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 9 जून 2010

लखनऊ का सृजन












रंजना डीन की क़लम से

तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच


तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच
न जाने कितने ऐसे पल आये
जब भीड़ में होते हुए भी
दिखे सिर्फ तुम ही
सुना सिर्फ तुमको

तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच
हमें याद रहा कि लंच टाइम हो गया
तुमने खाना खाया होगा या नहीं
खाना तुम्हे पसंद आया होगा या नहीं

तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच
दूर होते हुए भी मै तुम्हारे करीब थी
दोपहर के खाने के बाद की जम्हाइयां बता रही थी कि
तुम्हारी तकिये के आधे हिस्से पर
अभी भी मेरा ही हक़ है

तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच
सुबह की चाय साथ पीना
रसोईं घर में मेरे आस पास तुम्हारा मंडराना
पिछले दिन के ब्योरे का हिसाब किताब
और आज के दिन की जन्म कुंडली

ऑफिस के लिए तैयार होते
मेकअप करते देख तुम्हारी इर्ष्या
कडवे शब्दों के पीछे छुपे
तुम्हारे अथाह प्यार को छुपा नहीं पाती
तुम्हारी और मेरी व्यस्तताओं के बीच



उदास धूप

पीले से पत्तों के नीचे
छुपी हुई है छांव दुबक कर
धूप उदास अकेली उसको
ढून्ढ रही है सुबक सुबक कर
बहुत दिनों से नहीं मिले वो छोर
जहाँ दोनों मिलते थे
आधे ठन्डे, आधे गर्म फर्श पर
कुछ लम्हे खिलते थे
बहुत देर से देख रही थी हवा
धूप के नैना गीले
उड़ा ले गयी एक झोंके में
सारे बिखरे पत्ते पीले
पत्तों की चादर हटते ही
छाँव धूप से मिलने आई
नम आँखे जब धूप की देखी
उसकी आँखे नम हो आयीं


तारो की रौशनी में

कभी कभी तनाव से ऊब कर
नींद जब पल्लू छुड़ा कर भागती है
तो  रोकती नहीं उसका रास्ता
 सोच कर कि शायद
कहीं कोई मखमली सपनो की सेज पर
करता होगा उसका इंतज़ार
और चुपचाप चुनने लगती हूँ
आसमान के सितारे
क्योंकि दिन के उजाले
कई बार आँखों को चौंधिया देते हैं
और साफ़ दिखती हुई चीज़ें भी
रह जाती हैं अनसुनी, अनदेखी
दिन की भीड़ और भीड़ का शोर
अक्सर दबा देता है
कुछ आवाज़ों को
जो कानो तक आकर भी
गुज़र जाती हैं बिना दस्तक दिए
फिर इन नन्हे तारों की
टिमटिमाती रौशनी में
खोजती हूँ उन आवाज़ों को
ढूँढती हूँ उनके जवाब
और तब वो रौशनी और ख़ामोशी
देती है जवाब
हर अनसुनी बात का
और मै हैरान रह जाती हूँ ये देखकर
तारो की रौशनी में
सबकुछ दिखता है कितना साफ़

[कवयित्री-परिचय: जन्म : ११ फरवरी 1976 ,लखनऊ में .
शिक्षा:  कला स्नातक के साथ भरतनाट्यम में विशारद
रूचि: फोटोग्राफी, बागबानी और साहित्य में
सम्मान:यूनेस्को समेत देसी-विदेशी कई संस्थानों द्वारा पुरस्कृत
ब्लॉग:ए पोएटेस
सम्प्रति : एक प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय में प्राध्यापिका]
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13 comments: on "लखनऊ का सृजन"

शेरघाटी ने कहा…

सहजता में गंभीरता का बोध कराती रचनाएं प्राय अच्छी ही होती हैं.और रंजना की यही विशेषता उनकी कविता को बड़ा बनाती है

sudhansu ने कहा…

achhi rachnayen laga jaise kisine shabdon ko kitne karine se or kitni sadhna se sajaya hai...kavita pe ki gayi mehnat spast dikhti hai...lekin bahut hi wyaktigat hote hue bhi kavita ek apeel hai..form or structure bahut hi thosh hai..

shikha varshney ने कहा…

सहजता से इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति बहुत ही कम देखने को मिलती है ..भावों को बेहद सुन्दर शब्दों में बयान किया है .

Udan Tashtari ने कहा…

सभी रचनायें बहुत पसंद आई.

rashmi ravija ने कहा…

छोटे छोटे अहसासों को बहुत खूबसूरती से शब्दों में बांधा है...धूप-छाँव की बात हो या इर्ष्या जनित शब्दों में छुपे अथाह प्यार की...मन को छू जाती है इतनी सुगमता से सहज शब्दों में की गयी अभिव्यक्ति...तीनों ही रचनाएं बहुत ही सुन्दर हैं...

ashish ने कहा…

सुन्दर रचनाये, सुन्दर भाव, लखनऊ की नजाकत समेटे उत्कृष्ट लेखन.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

तीनों कविताएँ बेमिसाल.....यहाँ पढवाने के लिए आभार

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

जीवन के एक एक पल को जितनी सहजता से समेट कर कविता में ढाल दिया और वह भी गहरैयं तक उतर जाने वाली सम्वेदाओं से लिपटी हुई. बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

सभी रचनाएँ उत्कृष्ट श्रेणी की लगीं हैं...सहजता पर रंजना जी की सही पकड़ है ...
उनकी कविताओं से रूबरू करवाया आपने... हृदय से आभारी हूँ....

Sudhir K.Rinten ने कहा…

asim ganbhirta liye pehali kavita to aankh nam kar gayi shesh fir padunga ?

An Emotional expression.....

MLA ने कहा…

Sari Kavitaen Bahut hi badhia hai.

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

रचनाएँ अच्छी हैं!
--
आपसे परिचय करवाने के लिए संगीता स्वरूप जी का आभार!
--
आँखों में उदासी क्यों है?
हम भी उड़ते
हँसी का टुकड़ा पाने को!

पवन धीमान ने कहा…

आपकी रचनाये पढ़कर अच्छा लगा.. बहुत धन्यवाद.

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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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