आवेश की क़लम से
बाँध में महल के साथ डूब गयी रानी रूपमती का क़िस्सा
वारेन एंडरसन के भागे जाने पर हो हल्ला मचाने वाला मिडिया कैसे नए नए भोपाल पैदा कर रहा है. आइये हम आपको इसकी एक बानगी दिखाते हैं | हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद की ! यह देश में हर जगह पैदा हो रहे भोपाल का क़िस्सा है . दरअसल यह हिंदुस्तान के स्विट्जरलेंड की तबाही का क़िस्सा है . रिहंद बाँध में अपने महल के साथ डूब गयी रानी रूपमती का क़िस्सा है . यह मंजरी के डोले का क़िस्सा है और लोरिक की बलशाली भुजाओं को आज तक महसूस कर रहे चट्टानों का भी क़िस्सा है .
सोनभद्र हम इसे देश की उर्जा राजधानी भी कहते हैं ये क्षेत्र देश का सबसे बड़ा एनर्जी पार्क है सोनभद्र सिंगरौली पट्टी के लगभग ४० वर्ग किमी क्षेत्र में लगभग १८००० मेगावाट क्षमता के आधा दर्जन बिजलीघर मौजूद हैं जो देश के एक बड़े हिस्से को बिजली मुहैया करते हैं . अगले पांच वर्षों में यहाँ रिलायंस और एस्सार समेत निजी व् सार्वजानिक कंपनियों के लगभग २० हजार मेगावाट के अतिरिक्त बिजलीघर लगाये जायेंगे . बिरला जी का अल्युमिनियम और कार्बन , जेपी का सीमेंट और कनोडिया का रसायन कारखाना यहाँ पहले से मौजूद है .यह इलाका स्टोन माइनिंग के लिए भी पूरे देश में मशहूर है .
और हाँ ! यहाँ पांच लाख आदिवासी भी मौजूद हैं जिन्हें दो जून की रोटी भी आसानी से मयस्सर नहीं होती | सोनभद्र की एक और पहचान है यहाँ आठ नदियाँ भी हैं जिनका पानी पूरी तरह से जहरीला हो चुका है . यह इलाका देश में कुल कार्बन डाई ओक्साइड का १६ फीसदी अकेले उत्सर्जित करता है | सीधे सीधे कहें तो यहाँ चप्पे चप्पे पर यूनियन कार्बाइड जैसे दानव मौजूद हैं. इसके लिए सिर्फ सरकार और नौकरशाही तथा देश के उद्योगपतियों में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिए मची होड़ ही जिम्मेदार नहीं है ,सोनभद्र को जनपदोध्वंश के कगार पर पहुँचाने के लिए बड़े अखबारी घरानों और अखबारनवीसों का एक पूरा कुनबा भी जिम्मेदार है.
कनोडिया केमिकल देश में खतरनाक रसायनों का सबसे बड़ा उत्पादक है . कनोडिया के जहरीले कचड़े से प्रतिवर्ष औसतन ४० से ५० मौतें होती हैं . वहीँ हजारों की संख्या में लोग आंशिक या पूर्णकालिक विकलांगता के शिकार होते हैं मगर खबर नहीं बनाती क्यूंकि कनोडिया अख़बारों की जुबान बंद करने का तरीका जनता है ,पिछले वर्ष दिसंबर माह में उत्तर प्रदेश -बिहार सीमा पर अवस्थित सोनभद्र के कमारी डांड गाँव में कनोडिया द्वारा रिहंद बाँध में छोड़ा गया जहरीला पानी पीकर २० जाने चली गयी उसके पहले विषैले पानी की वजह से हजारों पशुओं की मौत भी हुई थी ,मगर अफ़सोस
जनसत्ता को छोड़कर किसी भी अखबार ने खबर प्रकाशित नहीं कि जबकि जांच में ये साबित हो चुका था मौतें प्रदूषित जल से हुई है ,हाँ ये जरुर हुआ कि इन मौतों के बाद सभी अख़बारों ने कनोडिया के बड़े बड़े विज्ञापन प्रकाशित किये थे ,ऐसा पहली बार नहीं हुआ था इसके पहले २००५ जनवरी में भी कनोडिया के अधिकारियों की लापरवाही से हुए जहरीली गैस के रिसाव से पांच मौतें हुई ,लेकिन मीडिया खामोश रहा |
मीडिया अब भी ख़ामोश है जब सोनभद्र के गाँव गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आकर विकलांग हो रहे हैं यहाँ के पडवा कोद्वारी ,कुसुम्हा इत्यादि गाँवों में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो फ्लोरोसिस का शिकार न हो ,जांच से ये बात साबित हो चुकी है कि फ्लोराइड का ये प्रदूषण कनोडिया और आदित्य बिरला की हिंडाल्को द्वारा गैरजिम्मेदाराना तरीके से बहाए जा रहे अपशिष्टों की वजह से है |बिरला जी के इस बरजोरी के खिलाफ लिखने का साहस शायद किसी भी अखबार ने कभी नहीं किया ,हाँ वाराणसी से प्रकाशित
गांडीव ने एक बार हिंडाल्को द्वारा रिहंद बाँध में बहाए जा रहे कचड़े पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी | आखिर करता भी कैसे? जब
दैनिक जागरण समेत अन्य अख़बारों में नौकरी भी हिंडाल्को के अधिकारियों के रहमोकरम पर टिकी होती है |
शायद और हाँ ! विश्वास करना कठिन हो मगर यह सच है कि यहाँ के हिंदी दैनिकों ने अपने सोनभद्र के कार्यालयों पर सालाना विज्ञापन का लक्ष्य एक से डेढ़ करोड़ निर्धारित कर रखा है ,इनमे वो विज्ञापन शामिल नहीं हैं जो जेपी और हिंडाल्को समेत राज्य या केंद्र सरकार की कमानियां सीधे या एजेंसियों के माध्यम से देती हैं ,अगर इन सबको शामिल कर लिया जाए तो सोनभद्र से प्रत्येक अखबार को सालाना ८ से १० करोड़ रूपए का विज्ञापन मिलता है. इन अतिरिक्त विज्ञापनों का लक्ष्य यहाँ के गिट्टी बालू के खनन क्षेत्रों से प्राप्त किया जाता है . खनन क्षेत्र जिन्हें “डेथ वेळी “कहते हैं और जो सरकार प्रायोजित भ्रष्टाचार और वायु एवं मृदा प्रदुषण का पूरे देश में सबसे बड़ा उदाहरण बने हुए हैं पर कोई भी अखबार कलम चलने का साहस नहीं करता जबकि यह अकाल मौतों की सबसे बड़ी वजह है . और तो और यहाँ की खदानों से निकलने वाली भस्सी ने हजारों एकड़ जमीन को बंजर बना डाला .
ख़बरें न छापने की वजह भी कम खौफनाक नहीं है . यह आश्चर्यजनक लेकिन सच है कि सोनभद्र में ज्यादातर पत्रकारों की अपनी खदाने और क्रशर्स हैं जिनकी नहीं हैं उनकी भी रोजी रोटी इन्ही की वजह से चल रही हैं . ख़बरें ना छापने की कीमत वसूलना अखबार भी जानते हैं ,पत्रकार भी |
सोनभद्र के बिजलीघरों से प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ टन पारा निकलता है . हालत यह हैं कि यहाँ के लोगों के बालों ,रक्त और यहाँ की फसलों तक में पारे के अंश पाए गए हैं ,इसका असर भी आम जन मानस पर साफ़ दीखता हैं . उड़न चिमनियों की धूल से सूरज की रोशनी छुप जाती है और शाम होते ही चारों और कोहरा छा जाता है . भारी प्रदुषण से न सिर्फ आम इंसान मर रहे हैं बल्कि गर्भस्थ शिशु भी | मगर ख़बरें नदारद हैं .वजह साफ़ है, सभी अखबारों के पन्ने दर पन्ने प्रदेश के उर्जा विभाग के विज्ञापनों से पटें रहते है . सैकड़ों की संख्या में मझोले अखबार तो ऐसे हैं जो बिजली विभाग के विज्ञापनों की बदौलत चल रहे हैं . ये एक कड़वा सच है कि उत्तर प्रदेश सरकार के ओबरा और अनपरा बिजलीघरों को पिछले एक दशक से केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के अन्नापत्ति प्रमाणपत्र के बिना चलाया जा रहा है जबकि बोर्ड ने इन्हें बेहद खतरनाक बताते हुए बांड करने के आदेश दिए हैं.
क़िस्सा इसलिए क्यूंकि हम एक ऐसे देश में जी रहे हैं जहाँ मौजूद मीडिया को मुगालता है कि वो देश,समय,काल को बदलने का दमखम रखता है | मगर खबर नदारद है क्यूँकि वारेन एंडरसन हिंदुस्तान से भाग चुका है |
लेकिन क्या कर लेंगे आप
सोनभद्र का एंडरसन भागा नहीं है !!
[
लेखक-परिचय : बहुत ही आक्रामक-तीखे तेवर वाले इस युवा पत्रकार से आप इनदिनों हर कहीं मिलते होंगे, ज़रूर.! .आपका का ब्लॉग है
कतरने. लखनऊ और इलाहाबाद से प्रकाशित हिंदी दैनिक डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में ब्यूरो प्रमुख। पिछले सात वर्षों से विशेष तौर पर उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जनपद की पर्यावरणीय परिस्थितियों का अध्ययन और उन पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं। आवेश से awesh29@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। ]
28 comments: on "अभिशप्त एक और भोपाल! एंडरसन भागा नहीं है !!!!"
ये देश में हर जगह पैदा हो रहे भोपाल का किस्सा है ,ये हिंदुस्तान के स्विट्जरलेंड की तबाही का किस्सा है ,ये रिहंद बाँध में अपने महल के साथ डूब गयी रानी रूपमती का किस्सा है ये मंजरी के डोले का किस्सा है और ये लोरिक की बलशाली भुजाओं को आज तक महसूस कर रहे चट्टानों का किस्सा है
किस्सा इसलिए भी है क्यूंकि हम एक ऐसे देश में जी रहे हैं जहाँ मौजूद मीडिया को ये मुगालता है कि वो देश,समय,काल को बदलने का दमखम रखता है |
चप्पे चप्पे पर यूनियन कार्बाइड जैसे दानव मौजूद हैं इसके लिए सिर्फ सरकार और नौकरशाही तथा देश के उद्योगपतियों में ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिए मची होड़ ही जिम्मेदार नहीं है
जब तक मुनाफे की अर्थव्यवस्था रहेगी, उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व रहेगा। न जाने कितने भोपाल होते रहेंगे। आज मीडिया भोपाल मामले में मियाँ मिट्ठू बन रहा है। लेकिन भोपाल फैसले से पहले क्या वह अफीम के नशे में था?
आवेश जी को हम कई जगह पढ़ते रहे हैं.उनमें गजब का तेवर है.
सोनभद्र को हमें भोपाल बन्ने से बचाना चाहिए.सरकार ध्यान दे.
दिनेश जी और शब्द जी आप लोगों से सहमत हूँ.लेकिन आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा .हम इतने संवेदन हीन क्यों होते जा रहे हैं.
आवेश भाई को बहुत दिनों बाद पढ़ कर हम सदमे में हैं.काश सियासत करने वाले या मौत पर भोज खाने वाले को अक़ल आये.
@ शहरोज़ साहब
आपको भी एक मेल कर रही हूँ.ध्यान देंगे.और सब ठीक है.अल्लाह का करम,
@emala sahmat ! mail ki reply de diya hai .
सोनभद्र को जनपदोध्वंश के कगार पर पहुँचाने के लिए बड़े अखबारी घरानों और अखबारनवीसों का एक पूरा कुनबा भी जिम्मेदार है.
अब तक वारेन एंडरसन के भागे जाने पर हो हल्ला मचाने वाला मिडिया कैसे नए नए भोपाल पैदा कर रहा है . हम आपको इसकी एक बानगी awesh ji ne khoob dekhai hai.
shahroz bhai aapka shukriya achchi report padhwane k liye.kabhi batla house par bhi to kuch post kijiye. |
बिरला जी के इस बरजोरी के खिलाफ लिखने का साहस शायद किसी भी अखबार ने कभी नहीं किया आखिर करता भी कैसे? जब दैनिक जागरण समेत अन्य अख़बारों में नौकरी भी हिंडाल्को के अधिकारियों के रहमोकरम पर टिकी होती है |
यहाँ की खदानों से निकलने वाली भस्सी ने हजारों एकड़ जमीन को बंजर बना डाला ख़बरें न छापने की वजह भी कम खौफनाक नहीं है ,ये आश्चर्यजनक लेकिन सच है कि सोनभद्र में ज्यादातर पत्रकारों की अपनी खदाने और क्रशर्स हैं जिनकी नहीं हैं उनकी भी रोजी रोटी इन्ही की वजह से चल रही हैं ,ख़बरें ना छापने की कीमत वसूलना अखबार भी जानते हैं ,पत्रकार भी |
शायद ये विश्वास करना कठिन हो मगर ये सच है कि आज तम हिंदी दैनिकों ने अपने सोनभद्र के कार्यालयों पर सालाना विज्ञापन का लक्ष्य एक से डेढ़ करोड़ निर्धारित कर रखा है ,इनमे वो विज्ञापन शामिल नहीं हैं जो जेपी और हिंडाल्को समेत राज्य या केंद्र सरकार की कमानियां सीधे या एजेंसियों के माध्यम से देती हैं
सोनभद्र से प्रत्येक अखबार को सालाना ८ से १० करोड़ रूपए का विज्ञापन मिलता है,इन अतिरिक्त विज्ञापनों का लक्ष्य यहाँ के गिट्टी बालू के खनन क्षेत्रों से प्राप्त किया जाता है ,ये खनन क्षेत्र जिन्हें “डेथ वेळी “कहते हैं और जो सरकार प्रायोजित भ्रष्टाचार और वायु एवं मृदा प्रदुषण का पूरे देश में सबसे बड़ा उदाहरण बने हुए हैं पर कोई भी अखबार कलम चलने का साहस नहीं करता जबकि ये अकाल मौतों की सबसे बड़ी वजह है.
आवेश भाई को बहुत-बहुत मुबारक हो!
शहरोज़ जी का भी बहुत-बहुत धन्यवाद. ऐसी पोस्ट से रूबरू करने के लिए.
Dil dahal gaya yab padhke..! Haan,yah to baat khoob jante hain,ki, akhbaar kin khabron ko kab chhapte hain,ya nahi chhapte hain..lekin in halaton se nikalne kaa tareeqa kya ho sakta hai? Janjagriti ho to kaise? Jab tak sadak pe utarke log satygrah nahi karenge, tab tak kuchh bhi ho sakega?
पैसा भी बोलता है, नेता भी बोलता है, नहीं बोलता है अगर कोई तो इन्सान? और आज के दौर में तो इंसान के बोलने से पहले उसकी आवाज़ को दबा दिया जाता है.
behad jaruri bat ,,jis par aapne itni achhi tarh likha....aise bato se hm sabko awgat kaane ke liye sukriya....aaj manwta sachmuch savedn heen hoti ja rhi...
रोशनी छुप जाती है और शाम होते ही चारों और कोहरा छा जाता है ,इस भारी प्रदुषण से न सिर्फ आम इंसान मर रहे हैं बल्कि गर्भस्थ शिशुओं की मौत के मामले भी सामने आ रहे हैं |
मगर ख़बरें नदारद हैं .वजह साफ़ है सभी अखबारों के पन्ने दर पन्ने प्रदेश के उर्जा विभाग के विज्ञापनों से पटें रहते है ,सैकड़ों की संख्या में मझोले अखबार तो ऐसे हैं जो बिजली विभाग के विज्ञापनों की बदौलत चल रहे हैं ,ये एक कड़वा सच है कि उत्तर प्रदेश सरकार वके ओबरा और अनपरा बिजलीघरों को पिछले एक दशक से केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के अन्नापत्ति प्रमाणपत्र के बिना चलाया जा रहा है जबकि बोर्ड ने इन्हें बेहद खतरनाक बताते हुए बांड करने के आदेश दिए हैं ,मगर खबर नदारद है क्यूँ कि वारेन एंडरसन हिंदुस्तान से भाग चुका है |
आवेश जी कि रिपोर्ट हमेशा ही बहुत धारदार होती है ..ये भी अपवाद नहीं .
शुक्रिया आपका इससे रुबरू करने का .
Bhai Shahroj,
Avesh ki rapat bahut hi tathyaparak aura vicharaniya hai. Yeh sarvavidit hai ki kuchh samarth patrakar bhrashta netaon aur officers ki bhanti apane ghar bhar rahe hain . Ve kyon likhane lage un udyogpatiyon ke khilaph jinase ve upkrit hote hain. Yeh durbhagyapurna hai.
Avesh ji ko is ullekhaniya report ke liye badhai.
Roop Singh Chandel
9810830957
nice
nice
nice
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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
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- अल्लामा जमील मज़हरी