बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शुक्रवार, 30 मई 2008

कविता

आर चेतनक्रांति की नई रचना
बस एक जिद है कि मरते नहीं, मरेंगे नहीं ये एक अंधी सी जिद हैकि जिसकी आँख नहीं ये बहरी भी है, ये गूंगी भी और लंगडी भींन इसका दोस्त है कोई, न कोई हमराही.न ये खाने के लिए कहती हैन पीने को .ये अपना गोश्त चबाती है और जीती हैये एक जिद है जो अपने में इतनी पूरी है कि जब रुके तोअपने दर्द के ईंटों से घर उठाके रुके औजब चले तो उसी दर्द की बैसाखियाँ बनाके चले।(आरकुट के स्क्रेप से )
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आईएस@मदरसा

ख़बरें ऐसी जो कहीं न मिलें
चोंकना वाजिब है आपका .मदरसे का नाम आप आई एसआई के साथ सुनते आए होंगे .इस ख़बर के नायकका मुख्तसर परिचय :नाम (मोलवी /डॉक्टर ) वसीम- उर-रहमानगाँव लुटिया जिला सिद्धार्त नगर (उत्तर प्रदेश )घर की हालत माह रमज़ान वक़्त से पहले नहीं आता मगरघर की हालत देख कर बच्चों ने रोजा रख लियाइस हाल में में पढ़ाई -लिखी क्या ख़ाक होती ,घर के बड़े भाइयों ने ,जवान होते ही मजदूरी करनी शुरू कर दी .वसीम गाँव के मदरसे जाने लगे ,यहाँ से गोंडा जिले के गोरा चोकी गाँव के मदरसे, फिर आला यानी उच्च शिक्षा की खातिर देवबंद के मशहूर मदरसे में दाखला लिया .आलिम और फाजिल की डिग्री हासिल की .मैं कहाँ रुकता हूँ अर्श फर्श की आवाज़ से ....यानी वसीम को तसल्ली नहीं हुई .उसे कलेक्टर ,एस पी जैसे अफसर लुभाते रहे .लेकिन दिक्क़त ये कि कॉलेज की डिग्री पास नहीं यूपीएससी के इम्तहान कैसे दें ??? उन्हें मालूम हुआ ,कुछ विश्वविद्यालय मदरसे को मान्यता देते हैं ,वो दिल्ली किसी तरह पहुंचे , यहाँ हमदर्द विश्वविद्यालय में BUMS में दाखिला ले लिया .इसे पास करते ही यह ग्रेजुएट हो गए .दिल्ली अब भी दूर थी .यूं सिविल सर्विसेस की तैय्यारी शुरू कर दी .इस बीच अलीगढ़ तिब्या से MDकी सनद भी हासिल कर ली .संतुष्ट तों थे नहीं .लक्ष्य तों कहीं और था ......कोशिश जारी रखी ... सीमित संसाधन ,माध्यम का उर्दू होना (किताबों की बमुश्किल उपलप्धता) और जिंदा रहने के लिए दूसरो को पढाना भी ।एक ,दो ...और तीसरे वर्ष मिहनत रंग लाई .ख़ास विषय थे इनके इतिहास और फारसी .मौलवी +फाजिल +DUMS+MD=IASहै न इक मिसाल ......
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मंगलवार, 27 मई 2008

क़मर सादीपुरी के दो शे'र

मुश्किलें आती गयीं थीं हर क़दम
डगमगाए फिर भी न मेरे क़दम

तेरे इश्क़ में क्या से क्या हुआ
तेरे हुस्न का क्या मजाल था
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)