बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 21 मई 2016

छैला संदु पर बनी फिल्म को लेकर लेखक-फिल्मकार में तकरार
























मंगल सिंह मुंडा बोले, बिना उनसे पूछे उनके उपन्यास पर बना दी 

गई फिल्म, भेजेंगे लिगल नोटिस जबकि निर्माता और निर्देशक का 

लिखित अनुमति का दावा



सैयद शहरोज़ क़मर की क़लम से

शीरीं-फरहाद, हीर-रांझा, लैला-मजनूं, सोहीनी-महिवाल और रोमियो-जूलियट की प्रेम कथाएं अमर हो चुकी हैं। लेकिन झारखंड के छैला-संदु की मोहब्बत के संगीत से देश-दुनिया अंजान थी। जबकि वो आज भी दशमफाॅल के आसपास की हरी-भरी वादियों में गूंजता है। मुंडारी जानने वालों के बीच पीढ़ी-दर-पीढ़ी यह कहानी अलग-अलग शैली और मुहावरे में प्रचलित रही है। पर साहित्य की शक्ल में इसका दस्तावेजी प्रमाण नहीं मिलता। खूंटी के मुंडारी-हिंदी साहित्यकार मंगल सिंह मुंडा ने सबसे पहले इस लोक कथा को आधार बनाकर 1995 में हिंदी में छैला संदु शीर्षक से उपन्यास लिखा। राजकमल प्रकाशन से 2004 में यह उपन्यास प्रकाशित हुआ। इसके बाद हिंदी की कई पत्र-पत्रिकाओं में यह प्रेम कहानी छपकर अमर हो गई। ताजा खबर है कि छैला संदु के नाम से ही ओवियान मूवीज जमशेदपुर ने राढ़ी बांग्ला में फिल्म बनाई है। पिछले दिनों उसका प्रीमियर शो भी हुआ। फिल्म के पोस्टर में बतौर कहानी लेखक मंगल सिंह मुंडा का नाम दर्ज है। स्क्रीन पर भी उनका नाम आता है। लेकिन इन सबसे लेखक मंगल अनभिज्ञ हैं। उनका कहना है कि बिना उनसे अनुमति लिए उनके उपन्यास पर फिल्म बना दी गई है। वह जल्द ही प्रोड्यूसर और डायरेक्टर को कानूनी नोटिस भेजेंगे। इधर, निर्माता और निर्देशक ने दावा किया है कि उनके पास मंगल सिंह मुंडा का लिखित अनुमति पत्र है।

फिल्मकार ने कहानीकार को किया पहचानने से इंकार

लेखक मंगल सिंह मुंडा ने बताया कि सालभर पहले उन्हें पता चला था कि उनकी जगह साहित्यकार रणेंद्र का नाम कहानीकार के नाते फिल्म में शामिल किया जा रहा है। इसके बाद मुंडा रणेंद्र से मिले। उनसे पता लेकर जमशेदपुर जाकर निर्माता और निर्देशक से मिले। बकौल मुंडा, निर्माता-निर्देशक ने उन्हें पहचानने से इंकार कर दिया। कहा कि वे किसी मंगल सिंह मुंडा को नहीं जानते। उन्होंने रणेंद्र की पुनर्लिखित लोक कथा के आधार पर फिल्म बनाई है।

लोक कथा किसी की बौद्धिक संपदा नहीं होती : रणेंद्र

कवि-लेखक रणेंद्र ने कहा है कि छैला संदु उपन्यास मंगल सिंह मुंडा का ही है। हालांकि छैला संदु की लोककथा बहुत पहले से जन-जन में लोकप्रिय रही है। लोक कथा किसी की बौद्धिक संपदा होती भी नहीं है। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने फिल्मवालों से कहा था कि कहानी लेखक की हैसियत से मंगल सिंह मुंडा का ही नाम जाए। फिल्म के ब्रोशर, पोस्टर में उनका नाम छपा भी है। इसके अलावा फिल्म के परदे पर भी मुंडाजी का ही नाम आता है।

लिखित अनुमति देकर सरासर झूठ बोल रहे हैं मंगल : निर्देशक

छैला संदु के निर्देशक मो. निजाम ने बताया कि साहित्य अकादमी से प्रकाशित पुस्तक भारत की लोककथाएं से उन्हें छैला संदु की कहानी मिली थी। जिसमें पुनर्लेखन के तौर पर रणेंद्र नाम लिखा था। उनके प्रोड्यूसर कुमार अमित ने फिल्म बनाने की इच्छा जताई। हमलोग रणेंद्र से मिले। उन्होंने सहमति दी और लेखक बतौर मंगल सिंह मुंडा का नाम देने को कहा। बाद में मंगल सिंह जमशेदपुर आए और उन्होंने लिखित अनुमति दी। अब वह सरासर झूठ बोल रहे हैं।


यह है प्रेम कहानी

कहा जाता है कि आदिवासी युवक था छैला संदु। जिसकी बांसुरी पर एक राजकुमारी बूंदी फिदा हो गई। जिद कर बैठी कि वह विवाह करेगी, तो उसी से। राजा ने शर्त रखी कि छैला को दरबारी संगीतज्ञ से संगीत प्रतियोगिता जीतनी होगी। वह जीत भी गया, पर उसने शादी से इसलिए इंकार कर दिया कि राजकुमारी को गरीबी में जिंदगी गुजारनी पड़ेगी। इधर, छैला की विधवा भाभी उससे विवाह करना चाहती है। जबकि छैला नदी पार के गांव की लड़की नारो से प्रेम करने लगता है। रोज की तरह एक रात जब वह एक जंगली लता के सहारे नदी पार कर रहा होता है, तो लता काट दी जाती है। बांसुरी और मांदर के साथ नदी में गिरकर छैला मर जाता है। जब से समूचा इलाके में उसकी बांसुरी की धुन गूंज रही है।


भास्कर के लिए लिखा गया




Digg Google Bookmarks reddit Mixx StumbleUpon Technorati Yahoo! Buzz DesignFloat Delicious BlinkList Furl

0 comments: on "छैला संदु पर बनी फिल्म को लेकर लेखक-फिल्मकार में तकरार "

एक टिप्पणी भेजें

रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.

न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)