उज्जैन सिहंस्थ
बना सनातन परंपरा की एकता
बंधुत्व का महाकुंभ
सैयद शहरोज़
क़मर की क़लम से
हावड़ा से चली क्षिप्रा एक्सप्रेस देर रात ज्योंही भोपाल जंक्शन से छूटी, यात्रियों में खलबली शुरू। कोई एक हो तो नाम लूं। लगभग 90 प्रतिशत मुसाफिरों के चेहरे खिल उठे। मुखर्जीजी हों, या यादवजी, मिश्राजी हों या कुशवाहाजी, चौधरीजी हों या सिंहजी । सिंहस्थ में पहुंचने के लिए अधिकतर श्रद्धालु सपरिवार ही ट्रेन पर सवार थे। रात्रिकाल में उनकी कांतिमयी उपस्थिति का कारण बनी महाकाल की नगरी उज्जयिनी। माताएं, बहनें अपने-अपने बर्थ से उठ बैठीं। अपने-अपने सामान संभाले। कुछ के हाथों की मनकाएं रेलचक्र की तरह तीव्रता से चलने लगीं, तो कइयों के होंठ पर मंत्रोच्चार। उज्जैन स्टेशन पहुंचने से घंटे भर पहले ही ढेरों ने गेट पर कतार सी लगा दी। मात्र एक ही लक्ष्य, पावन धरती पर पग धरूं पहले सबसे पहले। गंतव्य पहुंचने के बाद जब इनका कारवां कुंभ मेला पहुंचा, तो मंदिरों की आरती, मस्जिद की अजान और गुरुद्वारे के अरदास उजास को अलौकिक कर रहे थे। जैसे-जैसे पौ फटता गया, रामघाट से भूखीमाता मंदिर घाट तक क्षिप्रा में डुबकी लगाती आस्थाएं इंद्रधनुषी होती गईं। न कोई गोरा, न कोई काला। न कोई अगड़ा, न कोई पिछड़ा। कोई भेद नहीं, न भाव। सभी एक ही रंग समरसता में झिलमिल। यही सनातन है। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या स्त्री, क्या पुरुष आस्था की बर्फीली चादर ओढ़े पंक्तिबद्ध इनकी लाखों की संख्या अच्छे से अच्छे प्रबंध गुरु की युक्तियों समेत दोपहर की तपिश को मात देती रहीं।
इधर, कोलकता की सोहानी अधिकारी खुश थीं कि उन्हें प्रयाग के बाद सिहंस्थ में अजूबे संगम के दर्शन हुए। उन्होंने स्नान कर अमृतपान किया ही, ज्ञान भी हासिल कर लिया। दरअसल मप्र सरकार ने क्षिप्रा में नर्मदा जल उपलब्ध कराए हैं। नर्मदा को ज्ञान देने वाली कहा गया है।
उज्जैन
शहर के कई कोनों से सरकार ने
नि:शुल्क
वाहन की व्यवस्था मेला क्षेत्र
के लिए कराई है। इसके बावजूद
लगभग 5-6
किमी
तक पदयात्रा ही एकमात्र विकल्प
है। रामघाट पर बाड़मेड़ से आए
करीब 70
वर्षीय
बुजुर्ग ओमप्रकाश गहलोत स्नान
के बाद महाकालेश्वर के दर्शन
करने जाना चाहते थे। उनके
बेटे-बहू
हाथ ठेलावाले यासीन मियां को
पकड़ लाए। लेकिन बाबा बोले,
मैं
पैदल ही जाऊंगा दर्शन करने।
उनके आठ साल के प्रपौत्र विवेक
भी उनसे लिपट गए। दादू मैं भी
पैदल ही जाऊंगा। इस बीच
ऑस्ट्रेलिया की मार्था और
मेरी के विवेक ने तुरंत ही
विवेक को गोद उठा लिया। रामघाट
पुल पर एक बाइक सवार ने पूछा,
साहब
कहां जाएंगे। आपको जो देना
हो दे देना। हम तो सेवा के लिए
खड़े हैं। पता चलता है कि अमीन
खान जैसे 100
मुस्लिम
युवा बाइक पर एक-दो
श्रद्धालुओं को इधर से उधर
पहुंचाने की सेवा दे रहे हैं।
ऐसे कई दृश्य यहां आम हैं।
जिसमें मंथन के बाद छलके अमृत
की बूंदों की झलक इंसान के
व्यवहार में झूम-झमक
होती है। कोई नहीं चाहता कि
उनसे मनुष्य होने के नाते कोई
चूक हो। क्योंकि:
श्मशान
ऊर्वर क्षेत्रं पीठं तु वनमेव
च।
पञ्चैके
न लभ्यंते महाकाल बनाद्रते।।
कश्मीर से
कन्याकुमारी और नेपाल से
अमेरिका तक से सभी उज्जैन इसी
लिए आए है कि यहां भगवान् रमण
करते हैं। यहीं से मोक्ष मिलता
है। सब पापों का विनाश होता
है। हरसिद्धिजी व अन्य मातृकाओं
का स्थान है। सबसे सर्वोपरि
महाकाल का निवास स्थान है।
महाकालेश्वर मंदिर पहुंचते-पहुंचते कई आंखों में क्षिप्रा उतर आई। जाने-अनजाने जिंदगी में हुई कोई भूल, कोई गल्ती, कोई अपराध की गलानि। वहीं अरदास, भोले बाबा अब न करेंगे ऐसा। कतारों में महिलाओं की तादाद हर जगह अधिक दिखी। संध्या आरती के बाद महाकालेश्वर से कुछ बांस की दूरी पर मस्जिद के ओटे पर आईआईटी कर चुके राजस्थान के युवा संन्यासी स्वामी पशुपतिनाथ, बिहार के साधु शिवकुमार पांडेय और मौलाना सैयद मशहूद हसन की बैठकी समरसता के अलग कोलाज निर्मित करती रही। श्रद्धालुओं के लिए बने चिकित्सा सेवा शिविर के संचालक अब्दुल माजिद नागोरी कहते हैं कि पिछले दिनों शहर में आए बारिश-तूफान में मस्जिदों ने श्रद्धालुओं के लिए दरवाजे खोल दिए थे। शायद सिहंस्थ का अध्यात्मिक स्वर भी यही है, वसुधैवकुटुंबकम।
भास्कर के
लिए लिखा गया
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- अल्लामा जमील मज़हरी