बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 22 मार्च 2015

सूफ़ियों के रंग में रँगे कैनवास


                                                                     



















मिल्लत एकेडमी,  रांची में आयोजित रंग-ए-सूफियाना में मस्त कलंदर 
की तरह थिरकती रहीं ख्यात चित्रकारों की कूचियां
चारो ओर फैलती प्रेम व सद्भाव की खुश्बू के बीच कोई मस्त कलंदर। उसके इर्द-गिर्द कहीं कबीर व तुका की ठेठ धुसरता, तो कहीं बुल्लेशाह और अमीर खुसरू की हरियाली खुशहाल। वहीं मनुष्य की विभिन्न रंगत की तरह इठलाते रंग-बिरंगे फूल। लेकिन लरियों की भांति सभी सूफीवादी जुनून में पिरोए हुए। चित्रकार विनोद रंजन ने अपने कैनवास पर इसी मंजर को एकलेरिक कलर से उकेरा। मौका था, मिल्लत एकेडमी, हिंदपीढ़ी में आयोजित "रंग-ए-सूफियाना'' नामक कार्यक्रम का। जिसमें वरिष्ठ चित्रकार दिनेश सिंह ने अंधेरे से उजाले की ओर के लिए सूफी व निर्गुण को माध्यम बनाया। उनकी पेंटिंग में हल्के रंगों का इस्तेमाल गंभीरता और रहस्यमयता को इंगित करता रहा। देश की गंगा-यमुनी संस्कृति परंपरा के नेक मकसद से "हम एक हैं'' नामक मुहिम 1993 को राजधानी में चलाई गई थी। उसी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए 23 सालों बाद शहर के नामी चित्रकार स्कूली बच्चों के बीच मौजूद थे। दिन-भर सभी मजहब, बोली और काल से निरपेक्ष सूफी आध्यात्मिकता को अपनी कूचियों से सार्थक करते रहे।

बच्चों की चुहलों के बीच कबूतरों की मीठी कूक

बच्चों की चुहलों के बीच शर्मिला ठाकुर विश्व प्रेम को दो कबूतरों की मीठी कूक के दायरे में अंकित करती हुईं मिलीं। उनके रंगों में सौम्यता झिलमिलाती गई। रमानुज शेखर के चित्र में नीले और गेरुए रंग ने सूफियों की रहस्यात्मकता व आध्यात्मिकता की पहचान कराई। सपना दास इक नूर से सब उपजाया के प्रकाश में आनंदित तीन सूफियों के अंकन में तल्लीन रहीं, तो आंगन की चटख धूप में शिल्पी रमानी सारंगी की धुन में एक-दूसरे में मग्न दो आकृतियों को रंगाकार करने में व्यस्त।

प्रेम, प्रकाश और आध्यात्मिक परिवेश

पास ही वरिष्ठ चित्रकार हरेन ठाकुर बंगाल के बाउल के बहाने सूफीवाद और दिव्य प्रेम को चित्रित करते रहे। नेपाली राइस पेपर से उन्होंने कैनवास पर बरगद ही उगा दिया। अमिताभ मुखर्जी के चित्र में प्रेम, प्रकाश और आध्यात्मिक परिवेश का क्लासिकल रंग उभरा। विश्वनाथ चक्रवर्ती ने एक सूफी के मूड को अत्यंत कलात्मक और सजीव ढंग से उकेरा। प्रवीण कर्मकार के चित्र में अभिव्यक्त होती दिव्य आध्यात्मिक प्रेम की आभा सहज ही अपनी ओर आकृष्ट करती रही।

सूफी रंग पर 4 को चढ़ेगा निर्गुण राग

स्कूल के डायरेक्टर हुसैन कच्छी ने बताया कि इसी कड़ी में अगला आयोजन चार अप्रैल को गांधी प्रतिमा, मोरहाबादी के पास होगा। जहां इन चित्रों की प्रदर्शनी होगी, साथ ही लोक गायिका चंदन तिवारी का निर्गुण गायन होगा। मौके पर राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष गुलफाम मुजीबी, दूरदर्शन के निदेशक शैलेश पंडित, मधुकर, एमजेड खान, अनवर सुहैल, सुहैल सईद, रोमा राय, सबीहा बानो, आमरीन हसन, सुल्ताना परवीन, सरोश तनवीर, अशरफ हुसैन, शालिनी साबू , ओपी वर्णवाल व नदीम खान आदि मौजूद रहे।














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- अल्लामा जमील मज़हरी

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