बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

सोमवार, 30 मार्च 2015

कोई अश्क आँख से ढल गया, कोई आरज़ू सी मचल गयी

अभिषेक श्रीवास्तव की क़लम से 1. एक सरापा जुस्तज़ू और कुछ करम हासिल ना हो मेरी क़िस्मत ये जहाँ तक शौक़ हो मंज़िल ना हो ज़िंदगी की ग़ालिबन तफ़सील ही मुश्किल में हैं और मुश्किल ये कि मुश्किल हो अगर मुश्किल ना हो वो कि बेजा कशमकश में अब तलक...
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बुधवार, 25 मार्च 2015

कहानी : दहलीज़

 युवा कवि की पहली कहानी  संजय शेफर्ड की क़लम से  यह लड़कियां भी ना ? ना जाने किस परिवेश और संस्कार में पलती- बढ़ती और बड़ी होती हैं ? एक अधेड़  व्यक्ति ने खुद से मन ही मन में प्रश्न किया और उस चौदह...
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सोमवार, 23 मार्च 2015

मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू

नई पौध के तहत 10 ग़ज़लें    प्रखर मालवीय  'कान्हा'  की क़लम से 1. वो मिरे सीने से आख़िर आ लगामर न जाऊं मैं कहीं ऐसा लगारेत माज़ी की मेरी आँखों में थीसब्ज़ जंगल भी मुझे सहरा लगाखो रहे हैं रंग तेरे होंट अबहमनशीं ! इनपे मिरा...
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रविवार, 22 मार्च 2015

सूफ़ियों के रंग में रँगे कैनवास

                                                                      मिल्लत...
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बुधवार, 18 मार्च 2015

कृषिप्रधान देश फ़िलहाल किसानों का क़ब्रगाह बना रहेगा !

    कृष्णकांत की क़लम से  सरकार ने 13 मार्च को संसद में जानकारी दी कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद डिवीजन में 2015 के शुरुआती 58 दिनों के भीतर 135 किसानों ने आत्महत्या कर ली. कृषि राज्यमंत्री मोहनभाई कुंडारिया...
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मंगलवार, 17 मार्च 2015

गाँव भर में चर्चा है वो भाग गयी

नई पौध के तहत आठ कविताएं वर्षा गोरछिया  'सत्या' की क़लम से कार्बन पेपर  सुनो नकहीं से कोईकार्बन पेपर ले आओखूबसूरत इस वक़्त कीकुछ नकलें निकालेंकितनी पर्चियों मेंजीते हैं हमलम्हों की बेशकीमतीरसीदें  भी तो हैंकुछ...
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रविवार, 15 मार्च 2015

चंद्रशेखर के मुनीश्वर भाई, सुषमा के दादा

मुनीश्वर बाबू अपनी लाडली बिटिया प्रीति (लेखिका) के साथ स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता  मुनीश्वर प्रसाद सिंह  पर उनकी बेटी का संस्मरण प्रीति सिंह की क़लम से एक बार फिर सामने हूं अपने बाबूजी की कुछ यादें लेकर। वो यादें जो मुझे...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)