
गुज़रे
साल का सरसरी आकलन
सैयद
शहरोज़ क़मर की क़लम से
उजियारा
कभी, तो
कभी घुप्प अंधेरा। बात जब भी
होगी, तो
सवेरे की होगी, क्योंकि
रौशनी में हर वो चीज दिख जाती
है, जिसे
आप देखना चाहें या न चाहें।
पिछले...
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कथाकार गौरीनाथ
से संवाद व्हाया सैयद
शहरोज़ क़मर
हर
काल में हर लेखक या कवि तेवरवाला
नहीं हुआ है। अव्यवस्था और
विपरीतताओं को लेकर आक्रमकता
की तलाश हर रचनाकार में ढूंढना
सही नहीं होगा। कबीर और गालिब
युग...
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सुशील
उपाध्याय की 12 कविताएं
पिता
की आंखों में
मां
को याद करते हुए पिता
वक्त
को पीछे धकेलते हैं,
अतीत
में छूटे पलों को
स्मृतियों
की ताकत से ठेलते हैं।
फिर
ठहर जाते हैं
किसी
भावुक...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)