बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 29 दिसंबर 2015

2015 अलविदा खुश आमदीद 2016

गुज़रे साल का सरसरी आकलन

 



















सैयद शहरोज़ क़मर की क़लम से


उजियारा कभी, तो कभी घुप्प अंधेरा। बात जब भी होगी, तो सवेरे की होगी, क्योंकि रौशनी में हर वो चीज दिख जाती है, जिसे आप देखना चाहें या न चाहें। पिछले दिसंबर में हम 2015 का सूरज देख रहे थे। जिसके सफर के साथ हमने कई मंजिलें तय कीं। इसमें सियासत की कलाबाजियां थीं, तो विकास का दौड़ता रथ भी। जगह-जगह बनते खून के बादल थे, तो उस बारिश से बचने के लिए गंगा-जमनी संस्कृति की बरसों पुरानी हमारे पास छतरी भी थी। माइक से जगह-जगह असिहष्णुता के प्रचारक थे, तो मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना गाने वाली टोलियां भी थीं। इनमें कलमकार थे, तो फनकार भी। कल-कारखानों के मजदूर थे, तो आम अवाम भी। इस दौरान मुल्क की करीब सभी जबानों में लाखों किताबें आईं। उनमें इतिहास, भूगोल, समाज और साहित्य समेत कई अनछुए विषय हमारे सामने आए। राष्ट्रीय और अंतररराष्ट्रीय इनामों से लेखकों और शायरों को नवाजा गया। लेकिन कहीं-कहीं सांप्रदायिकता की आग की लपटों ने उनके संवेदनशील मन को प्रभावित किया। कईयों ने भावुकता में आकर बरसों पहले मिले इनामों-एकराम को लौटाने का एलान किया। वहीं असिहष्णुता के खिलाफ जगह-जगह प्रदर्शन हुए। यह दिगर है कि इसमें नामवर न हुए। न कोई मनव्वर हो सका। रानाई अपनी जगह कायम रही। इसका असर यह हुआ कि सरकार को भी सांप्रदायिकता के खिलाफ कड़े कदम उठाने पड़े। हालांकि इसमें मुल्क की इल्मो-मोहब्ब्त का कंट्रीब्यूशन सबसे ज्यादा रहा।


बिस्मिल अजीमाबादी की मशहूर गजल सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, की नेक नियत आजादी की जंग के वक्त हर हिंदुस्तानी के दिल में जोर मारा करती थी। इसमें उर्दू के सहाफी और अखबार भी थे। लेकिन आज उर्दू सहाफियों की हालत बदतर है। हालांकि रोजनामों और हफ्तारोजा अखबारों की कमी नहीं। पर उसमें खूनजिगर एक करने वाले परेशान हाल हैं। इस साल उर्दू पत्रकारों ने कई शहरों में कॉन्फ्रेंस और सेमिनार कर अपने दर्द को सरेआम किया।

इधर, दिल्ली से लकर रांची और पटना तक कई बुक फेयर लगे। जो मुल्क में तहजीबी और अदबी फिजा बरकरार रखने के बायस बने। तालीमी बेदारी का कारवां भी स्कूली बच्चो से लेकर युनिवर्सीटियों में लोगों के जेहन का मरकज बना। डिजिटल इंडिया की चमक गांवों में भी इस साल पहुंची। राजस्थान के रेगिस्तान हों या झारखंड के सारंडा। नौजवानों में इल्मो-हुनर की हरियाली फैली। वहीं वजीरेआजम नरेंद्र मोदी के सफाई मिशन का सिला यह हुआ कि लोग सड़कों पर कूड़ा-कचरा फेंकने से परहेज करने लगे हैं। शहर की स्लम बस्तियों और गांवों में हाजत के लिए अब औरतों और बुजुर्गों को झाड़ या पेड़ के झुरमुटों या सूरज ढलने का इंतजार खत्म हुआ। सरकार ने जगह-जगह पब्लिक टॉयलेट बनवाने शुरू किए हैं। औरतों के लिए बैंकों में खाते खुलवाए जा रहे हैं, यह कदम भी आने वाले दिनों में सुनहरी सुबह की तरफ गामजन होगा। औरतों को लकर मर्दों का नजरिया आज भी दकियानूसी है। वजह जो भी रही हो, उनका जिस्मानी इस्तहसाल खूब बढ़ा। रेप की खबरें साल भर सुर्खिंयां बनती रहीं। लेकिन जाते-जाते 2015 ने इस सिलसिले में सख्त कानून दे दिए। अब ऐसे मामले में 16 साल तक की उम्र सजा के लिए तय कर दी गई। साल की खुशखबर यह भी रही कि भारत के मंगलयान का सफर जारी है ही, चंद्रयान 2 को भी कामयाबी मिली। सेमी बुलेट ट्रेन का ट्रायल हुआ, कामयाब रहा। कुछ बड़े शहरों में ग्रीन कॉरीडोर जैसी पहल मरीजों के लिए ऑक्सीजन बनी। दरअसल इमरजेंसी केसों में मरीजों को वक्त पर अस्पताल पहुंचाने में अक्सर रोड की रश ट्रैफिक जानलेवा होती है। लेकिन कुछ शहरों में एक सायरन के बाद लोगों ने एंबुलेंस को जाने के लिए ट्रैप्िक रोकने की शुरुआत की। इससे कई लोगों की जानें बचीं। कई खतरनाक ऑपरेशन वक्त पर हो सके।


हालांकि गुजरे साल में ऐसी शख्यियतें भी हमसे बिछुड़ गईं। जिनका होना, हिंदुस्तानियत की शिनाख्त थी। डॉ. अबुल पाकिर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम जिन्हें मिसाइल मैन का लकब मिला, नहीं रहे। वे मुल्क के सदर भी रहे। लेकिन अवामी सदर के नाते उन्हें शोहरत मिली। वहीं आम आदमी को पहचान देने वाले और कॉमनमैन को हीरो बनाने वाले कार्टूनिस्ट रसिपुरम कृष्णस्वामी अय्यर लक्ष्मण (आर.के. लक्ष्मण) साल की शुरुआत में ही हमसे जुदा हो गए। उनके कार्टून ने भारत की दुनिया में अलग पहचान बनाई। आम इंसान की बात चली है, तो मदर टेरेसा का जिक्र जरूरी समझता हूं। उनके ही गरीब-मजदूर बेसहारा बच्चों को सहारा देने वाली मिशनरीज ऑफ चैरिटी की चीफ सिस्टर निर्मला जोशी का इंतकाल भी इसी साल हो गया। आउटलुक के बानी शोहरतयाफ्ता सहाफी विनोद मेहता की रहलत भी मुल्क की अमनो-सलामती में एक झटका की मानिंद है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी रहे अमीर--शरीअत मौलाना सैयद निजामुद्दीन भी आखिरी सफर पर कूच कर गए। उनकी कमी बरसों तक उनके चाहने वाले महसूस करते रहेंगे।


सड़क और रेल हादसों में कई जानें हलाक हुईं। लेकिन आइंदा इनमें कमी आए इसके लिए सरकार ने कई प्लान बनाए। अब रेलवे एक तयशुदा अवकात के साथ जीरो हादसा मिशन शुरू करेगा।इसका मकसद हादसों को टालना और मौतों की तादाद को रोकना है। इसके लिए रेलवे को हाइटेक किया जाएगा। इन खुशनुमा खबरों के दरम्यान कइ्र सूबों में कुर्सियां बदलती रहीं, सुबह-शाम जलसे-जुलूस होते रहे। आम आदमी लुटता रहा, खास जेबें भरती रहीं। हाईवे बने, तो कई सड़कें गउ़ढों में तब्दील भी हुईं। कारों ने कहीं फर्राटे भरे, तो कहीं गाड़ियां रह-रहकर उछलती भी रहीं। भ्रष्टाचार की तोंद तंदरुस्त होती रही, तो वहीं कइयों को इसके इल्जाम में जेलों की चक्कियां भी पीसनी पड़ रही हैं।

खिलाड़ी देश का नाज़ होते हैं। दुनिया के कोने-कोने में जाकर मुल्क का नाम रोशन करते हैं। इस साल भी टेनिस सितारा सानिया मिर्जा और बैडमिंटन स्टार शइना नेहवाल ने इस मिथ को मटियामेट किया कि लड़कियां पीछे रहती हैं। सानिया ने ग्रैंड स्लैम, तो शाइना ने पहली मर्तबा टॉप पर पहुंची। शानदार प्रदर्शन के लिये टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को खेल का सबसे बड़ा सम्मान मुल्क के सदर ने दिया। हॉकी एशिया कप (जूनियर) में भारत ने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 6-2 से हराकर खिताब अपने नाम किया।


बुजुर्गवार कह गए हैं, बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेय। 2015 की बिदाई पर आप हाथ हिलाएं या तालियां बजाएं। पर खोया-पाया का हिसाब न लगाएं। जो बुरा हुआ, उसे भूल जाएं। जो अच्छा हुआ, उसे ताकत बनाएं। कुछ सीख लें, तो कुछ सीख दें। नए साल का इस्तकबाल करें। नया सूरज आपके लिए कई सौगातें लेकर आ रहा है। जल्द ही शहर से गांवों तक 24 घंटे बिजली मिलने लगेगी। वहीं इस पॉवर का इस्तेमाल तेज रफ्तार बुलेट ट्रेन में आप करेंगे।

नेक तमन्नाओं से भरी अपनी इस दुआईया नज्म के साथ आपसे इजाजत चाहूंगा:


सब की फरियाद हो
गांव शाद-बाद हो
इरादा चट्‌टान हो
खुला आसमान हो।

जिंदगी खुशहाल हो
ऐसा नया साल हो।


हर होठ पे गुलाब हो
पके आम सा शबाब हो
खूबसूरत मकान हो
मुट्‌ठी में जहान हो।

जिंदगी खुशहाल हो
ऐसा नया साल हो।


हर गाल पे गुलाल हो
रिश्ता न महाल हो
मां का ख्वाब हो
आंगन शादाब हो।

जिंदगी खुशहाल हो
ऐसा नया साल हो।

कोयल का साज़ हो
सब की आवाज़ हो

मसला न सवाल हो
हर हाथ में कुदाल हो।

जिंदगी खुशहाल हो
ऐसा नया साल हो।

नदी की रवानी हो
न कभी बदगुमानी हो
वक्त न होलनाक हो
हर सोच ताबांक हो।


जिंदगी खुशहाल हो
ऐसा नया साल हो।


रांची आकशवाणी से यह मक़ाला 25 दिसंबर की सुबह 9:30 बजे प्रसारित हुआ।








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- अल्लामा जमील मज़हरी

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