पांच
शिफ्ट में 22 सालों
से संचालित है तालीमी आशियाना
सैयद
शहरोज़ क़मर की क़लम से
पांच शिफ्ट में संचालित महज चार कमरे वाले किसी स्कूल के बारे में आपने शायद कम ही सुना होगा, जहां नर्सरी से लेकर मैट्रिक तक के स्टूडेंट्स पढ़ते हों। वो भी नि:शुल्क। ये वो बच्चे हैं, जो कहीं काम करते हैं, या उनके माता-पिता मजदूरी कर गुजर-बसर चलाते हैं। यहां से पढ़ चुके कई छात्र इंजीनियर और अधिकारी तक बन चुके हों। यह कहानी हिंदपीढ़ी मुजाहिद नगर की आजाद गली स्थित रिजवाना के केयूजी स्कूल की है। उनके साथ हैं छह टीचरों की टीम। सवाल उठना लाजिम है कि सब कुछ होता कैसे है। एमए और बीएड कर चुकीं रिजवाना कहती हैं कि वे देर रात तक संपन्न परिवारों के बच्चे को ट्यूशन पढ़ाती हैं, उससे प्राप्त आय से वह टीचरों को नाम मात्र का मुआवजा देती हैं। अलग-अलग शिफ्ट में अलग-अलग टीचर सेवा देती हैं। इसलिए बाकी समय वे दूसरे स्कूलों में पढ़ाने चली जाती हैं, ताकि उनका खर्च चल सके। वहीं इसी स्कूल की कभी स्टूडेंट रही ये टीचर रिजवाना के जज्बे को ऊर्जा देती हैं। बच्चों के इस तालीमी आशियाना की शुरुआत जून 1993 में की गई थी।
सुबह
6 बजे से
रात 10 बजे
तक पढ़ाई
सुबह
होने के साथ ही गली में चहल-पहल
शुरू हो जाती है। ये कक्षा
नौवीं से दसवीं तक के छात्र
हैं, जिनकी
क्लास 06 बजे
से 09 बजे
तक चलती है। इसके बाद 09
से 11 बजे
तक 5वीं
से 8 वीं
तक के बच्चे पढ़ते हैं। इसी
तरह 11 से
01 बजे तक
नर्सरी से चौथी, 02 बजे
से 08 बजे
रात तक फिर नौवीं से दसवीं और
08 बजे से
10 बजे रात
तक 06 वीं
से 07 वीं
तक की कक्षाएं यहां संचालित
होती हैं। कमरों की कमी के
कारण कक्षाएं शिफ्ट में लगती
हैं।
250 स्टुडेंट्स
के लिए हैं 6 टीचर्स
रिजवाना
के तालीमी हौसले को स्कूल की
टीचर्स बढ़ावा देती हैं। स्कूल
के 250 बच्चों
को पढ़ाने के लिए नेहा परवीन,
शबनम निसा,
शबनम परवीन,
रूबी परवीन,
शमा परवीन और
मो. अर्शद
अपनी सेवा देते हैं। ये बतौर
मुआवजा हजार रुपए से अधिक नहीं
लेतीं। वहीं कुछ की ममता कभी-कभी
इन बच्चों के लिए कॉपी-पेंसिल
और टॉफी भी ले आती है। वहीं
कुछ अभिभावक स्कूल की मदद के
प्रति छात्र बतौर 20 रुपए
मासिक शुल्क भी अदा कर देते
हें।
एक
किताब से पढ़ते हैं दो से तीन
बच्चे
रिजवाना
कहती हैं कि सबसे बड़ी दिक्कत
बच्चों के लिए किताब और कॉपी
की उपलब्धता की है। इसलिए एक
किताब से दो से तीन बच्चे पढ़ते
हैं। कभी-कभार
समर्पित फाउंडेशन और वीकर
सोसायटी जैसी एक-दो
संस्थाएं और संपन्न लोग बच्चों
के लिए किताब-कॉपी
स्कूल में आकर दे जाते हें।
लेकिन सरकार की ओर से आज तक
स्कूल या यहां पढ़ रहे बच्चों
की कभी किसी तरह की सहायता
नहीं मिली। दो कमरे बिना छत
के थे। लोगों की मदद से उसे छा
दिया गया है।
दैनिक भास्कर रांची के संस्करण में 15 दिसंबर 2015 के अंक में प्रकाशित
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