दो
अदालती फ़ैसले और कुछ शंकाएं
भवप्रीतानंद
की क़लम से
जेल में बैठे
संजय दत्त सोच रहे होंगे कि
वह चूक गए। जयललिता और सलमान
खान के मामले में हाईकोर्ट
ने दशकों पुराने मामले में
जैसी जल्दबाजी दिखाई,
वैसी
परिस्थितयों को पैदा करने
में शायद संजय दत्त के वकीलों
से चूक हो गई। वह जज को आरोपियों
की शोहरत और अकूत धन के आभामंडल
में हिप्नोटाइज करने में सफल
नहीं हो सके। कर्नाटक हाईकोर्ट
के जज न्यायमूर्ति सीआर कुमार
स्वामी ने जयललिता के आय से
अधिक संपत्ति के मामले में
11
मई को
मात्र दस सेकंड में फैसला सुना
दिया। उन्हें क्षणभर में दूध
का धुला बताकर भ्रष्टाचार
मुक्त बता दिया। यह केस 19
साल
पुराना था। वैसे,
हमारे
यहां के न्यायालयों में न्याय
पाने में व्यक्ति के जवान से
बूढ़े हो जाने की कहानी आम है।
एक सामान्य
इंसान की तरह सोचें तो हमारे
तर्कों को भोथरा करने में
माननीय वकीलों को मिनट भी नहीं
लगेगा। पर सलमान खान,
जयललिता
आदि नेम-फेम
वाले लोगों को जब उनके पक्ष
में फैसला जाता दीखता है,
तो एक
क्षण के लिए बंबइया मूवी की
वह पंक्ति,
जिसे
कई फ़िल्मों में बार-बार
दुहराया गया है,
कहने
का मन करता है:
न्याय बिका हुआ है। न्यायाधीश बिके हुए हैं। जिस न्याय को पाने के लिए आम आदमी के जूते घिस जाते हैं, उसको बड़े लोग सेकंडों-मिनटों में प्राप्त कर लेते हैं। जबकि वह केस दशकों पुराना है। दशकों से जुटाए सबूत-गवाह क्षण भर में खारिज कर दिए जाते हैं। एक वकील की बात याद आती है जिसने कहा था कि कोर्ट में प्रस्तुत सैकड़ों पन्ने की बात जज के पास जाकर एक लाइन की हो जाती है। बात दमदार थी। न्याय के कटघरे में यही होता है। पर जज उस एक लाइन में ईमानदारी से डोल जाएं तो!
जयललिता राजनीति
से पहले तमिल फ़िल्मों की
जानी-मानी
हिरोइन थीं। जाहिर के उनके
पास धन की कमी नहीं होगी। उनके
पास भौतिक वस्तुओं की भी कमी
नहीं होगी। सैकड़ों जोड़ी कपड़े,
सेंडल
होना सामान्य बात होनी चाहिए।
इसलिए जब वह राजनीति में आई
और नब्बे के दशक के शुरू में
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री
बनने का बहुमत मिला,
तो
उन्होंने दरियादिली दिखाते
हुए मात्र एक रुपए,
मतलब
टोकन मनी सेलरी लेने की घोषणा
की थी। वाकई यह आम लोगों के
दिलों में जगह बनाने वाला
स्टेप था। पर सत्ता के पांच
सालों में जयललिता के पास 66
करोड़
रुपए कैसे आ गए। 1996
में
उनके घर में छापा पड़ा। 28
किलो
सोना,
896 किलो
चांदी के अलावा हजारों की
संख्या में साड़ियां,
सैकड़ों
की संख्या में जूते बरामद किए
गए।
एक पूर्व
जानीमानी तमिल फ़िल्मों में
काम करने वाली हिरोइन के घर
से यह सबकुछ बरामद होता,
तो आम
आदमी यह सोचकर मानसिक रूप से
अपने को मना लेता। चलो हिरोइन
के घर से यह सबकुछ निकलना कोई
बहुत मायने नहीं रखता है। पर
राजनीति के आने के बाद मात्र
पांच वर्षों में इतनी बड़ी
मात्रा में गहनों का निकलना
कई शंकाओं को तो जन्म देता ही
था। बहुत संभव है कि उन्हें
पांच वर्षों के मुख्यमंत्रित्व
काल में यह सब बतौर गिफ्ट मिला
होगा। चूंकि वह पूर्व हिरोइन
थीं तो गिफ्ट देने वाले सोने-चांदी
का नेग चढ़ाने के बाद ही बात
आगे बढ़ाते होंगे। और वही सब
जमा होते-होते
इतना जमा हो गया होगा। जयललिता
के व्यक्तित्व को देखकर इस
निष्कर्ष पर आसानी से पहुंचा
जा सकता है। पर तर्क की कसौटी
तो यही कहना चाह रही है कि यहां
एक रुपए सेलरी लेने वाली सादगी
कहां चली गई थी!
अभियोग लगाने
वाले पक्ष का कहना था कि उन्हें
हाईकोर्ट में अपनी बात रखने
का पूरा मौका नहीं दिया गया।
याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम
स्वामी हाईकोर्ट के इस फैसले
को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
दे सकते हैं। पर निचली अदालत
ने उनपर दस साल चुनाव नहीं
लड़ने का भी फैसला सुनाया था।
अब हाईकोर्ट के फैसले आने के
बाद जयललिता चुनाव लड़ सकती
हैं। दस महीने बाद तमिलनाडु
में विधानसभा चुनाव है। जयललिता
के भक्त और मुख्यमंत्री
पन्नीरसेलवम कुर्सी पर जयलिलता
की चरण पादुका रखकर,
एक-एक
बात पूछकर सत्ता चला रहे थे।
वह भी मनो-टनों
विनम्रता और भक्ति के साथ
जयललिता को उसी कुर्सी पर
सत्ता सौंपेंगे जो उनके जाने
के बाद से ही सुरक्षित रखी हुई
है।
संवेदना और भक्ति के क्रूर बैर रखने वाले इस युग में जयललिता के भक्तों को नाचते और पूजा करते देखते यह प्रश्न कौंधता रहता है कि क्या यह इसी युग के कार्यकर्ता हैं या फिर सत्ता में बने रहने के लिए जयललिता ही उनके तुरुप का पत्ता हैं।
ठेठ बंबइया
फिल्म के हीरो सलमान खान पर
भी हाईकोर्ट ने जिस तेजी से
फैसला सुनाया वह कॉमन मैन के
गले नहीं पच पाया। उनपर भारतीय
दंड संहिता के तहत जो धाराएं
लगीं थी,
पक्का
विश्वास है अगर वह सलमान खान
नहीं होकर कोई सामान्य अपराधी
रहता,
तो
जेल के भीतर होता। सोशल मीडिया
पर चली एक बात पर यहां गौर करना
समीचीन होगा। इसमें कहा गया
है कि निचली अदालतों का आईक्यू
लेवल इतना ही कम है जो उनका
फैसला रद्द ही होना है तो उन्हें
बंद ही क्यों नहीं कर दिया
जाता है। वाकई वर्षों से जुटाए
सबूतों और गवाहों को सुनने
और मगजमारी करने के बाद जो
फैसले यह निचली अदालतें देती
हैं उनकी औकात ऊपर की अदालतें
चंद सेकंड में बता देती हैं।
हम सलमान के
मामले को थोड़ा भावनात्मक रूप
से भी सोचने को विवश हैं। वह
सेलिब्रेटी हैं। शराब पीकर
गाड़ी चला रहे हैं। फुटपाथ पर
दीनहीन-घर
विहीन लोगों को कुचलते हुए
निकल गए। जब उन्हें अपराध का
भान हुआ,
तो
घायलों को अस्पताल पहुंचाने
की बजाय अपने घर में दुबक गए।
निचली अदालत को एक सारगर्भित
प्रश्न यह भी पूछना था कि अगर
सलमान खान निर्दोष थे,
वह
कार नहीं चला रहे थे तो दुर्घटना
के बाद वह भागे क्यों। क्या
उनमें इतनी भी संवेदना नहीं
थी कि उनकी कार से एक्सीडेंट
हो गया है और और वह घायलों की
खोज-खबर
लेने की बजाय भागकर अपने घर
जाना उचित समझा। बाद में जब
उन्होंने मृतकों और घायलों
की सहायता भी की तो व इतनी कम
थी वह इलाज में ही चुक गई।
एक्सीडेंट में अधिकांश अपंग
हुए लोग किसी काम के नहीं रह
गए हैं। उनके लिए इतनी तो
व्यवस्था वह कर ही सकते हैं
जिससे कि जिंदगी कट सके। बाद
में कोर्ट को मानवीय कार्यों
में लगे रहने का हवाला देना
मात्र दिखावा ही है। वह हंसने
के तर्क के अलावा कुछ और सोचने
को विवश नहीं करता है। कहते
हैं,
ईश्वर-अल्लाह
के घर देर है,
अंधेर
नहीं। पर प्रश्न यह भी है कि
जब वही नियामक हैं तो यह अदालत
किस लिए!
(लेखक-परिचय:
जन्म :
3 जुलाई,
1973 को लखनऊ
में
शिक्षा
:
पटना से
स्नातक,
पत्रकारिता
व जनसंचार की पीजी उपाधि,
दिल्ली
विश्वविद्यालय से
सृजन
:
देश की
प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं
में लेख एवं कहानियां
संप्रति :
दैनिक
भास्कर के रांची संस्करण के
संपादकीय विभाग से संबद्ध
संपर्क
:
anandbhavpreet@gmail.com )
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- अल्लामा जमील मज़हरी