इंसानों
में
जानवर
रहता
है
वसीम
अकरम त्यागी की क़लम से
हादसा बहुत पुराना है। तब कि मेरा जन्म भी न हुआ था। लेकिन बचपन से अबतक उस दुर्घटना को इतनी बार सुना कि मानो उसे देखते-देखते ही मैं बड़ा हुआ हूं। घटना यह थी कि हमारे गांव में मेरे पड़ोसी के घर रात को चोर आ गये थे। अधखुली नींद में जैसे ही मेरे बड़े अब्बा शोर सुनकर उठकर भागे, तो चोरों के गिरोह में शामिल किसी एक चोर ने उनको गोली मार दी, जिसकी वजह से वे एक हाथ से अपहिज हो गये। जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, मैंने इस दास्तान को सुनता गया। हजारों बार अपने बड़े अब्बू के अपाहिज होने की कथा लोगों से सुनीं और अपने किसी दोस्त के मालूम करने पर उसे भी सुनाई।
मगर
एक सवाल
था,
जिसका
जवाब
आज तक
नहीं
मिल
पाया।
अक्सर
वह सवाल
मुझे
परेशान
कर देता
है कि
जिसने
भी बड़े
अब्बू
को गोली
मारी
थी,
वह
भी तो
इंसान
था।
बड़े
अब्बू
भी
इंसान
थे फिर
एक
इंसान
ने
दूसरे
पर गोली
क्यों
चलाई
?
बचपन
में
घर वाले
जंगली
जानवर
का डर
दिखाया
करते
थे मगर
यह कैसे
इंसान
थे,
जिन्होंने
ज़रा
सी देर
में
एक
हंसते-खेलते
इंसान
को
अपाहिज
बना
दिया।
कई बार
सोचा
फिर
महसूस
किया
कि
इंसान
के अंदर
ही
जानवर
बसता
है।
जो
इंसानों
की तरह
ही खाता
है,
रहता
है,
बोलता
है।
मगर
काम
एसे
करता
है,
जैसा
जानवर
भी नहीं
कर
पाते।
टीवी
पर
समाचार
सुन
रहा
था,
तो
लड़कियों
से
जुड़ी
दो
ख़बरें
सामने
आईं।
एक
तेलंगाना
की थी,
जहां
पर
मासूम
बच्चियों
को बेचा
जाता
है।
दूसरी
पश्चिम
उत्तर
प्रदेश
के
शामली
जनपद
के एक
गांव
की थी,
जहां
एक
मंदबुद्धि
लड़की
के साथ
बलात्कार
किया
गया।
जिसके
बाद
पीड़ित
परिवार
ने उस
युवती
को
जंजीरों
से बांध
दिया
ताकि
वह घर
से बाहर
न जाये
और उसके
साथ
वैसी
हैवानियत
फिर न
दोहराई
जाए।
मगर
सवाल
तो उठता
है कि
उपरोक्त
तीनों
घटनाऐं
इंसानों
ने ही
अंजाम
दी हैं
और
इंसानों
के साथ
अंजाम
दी हैं।
फिर
इन्हें
इंसान
कहलाने
का हक
क्यों
है ?
शर्म
आती
है कि
हम एसे
लोगों
को
इंसान
कहते
हैं
जिन्होंने
जानवरों
से भी
बदतर
काम
किये
हैं।
जिन्होंने
उस
मंदबुद्धि
बालिका
के साथ
बलात्कार
किया
क्या
वे
इंसान
कहलाने
के
काबिल
हैं ?
जो
मासूम
बच्चियों
को बेच
रहे
हैं
क्या
वे
इंसान
कहलाने
लायक
हैं ?
जो
उन
बच्चियों
को पैदा
करके
बेचने
के लिये
छोड़
जाते
हैं
क्या
वे
इंसान
कहलाने
के
काबिल
हैं ?
कहां
गई आखिर
इंसानियत
?
कुछ
तो जवाब
मिले।
सड़कों
पर
चलते-फिरते
रोजाना
इंसानियत
मर जाती
है।
अभी
हाल
ही में
जंतरमंतर
पर भी
इंसानियत
मरी
है,
जहां
एक
किसान
ने
हजारों
लोगों
के
दरमियां
खुदकुशी
कर ली।
क्या
इस
दुनिया
में
इंसानियत
सिर्फ
इतनी
ही है
जितनी
पेड़
पर
झूलती
हुई
उस
गजेंद्र
की लाश
ने बताई
है कि
एक
व्यक्ति
मर रहा
है और
दो युवक
उसे
बचाने
के लिये
पेड़
पर चढ़
रहे
हैं।
बाकी
वीडियो
बना
रहे
हैं,
फोटो
क्लिक
कर रहे
हैं।
हजारों
की भीड़
में
एसे
कितने
इंसान
होंगे
जिन्होंने
मौत
के इस
लाईव
टेलिकास्ट
को
देखकर
एक वक्त
का खाना
नहीं
खाया
होगा
?
जिनकी
आंखों
में
गजेंद्र
की लाश
तैर
रही
होगी।
चलते-फिरते
हुए
सभी
लोग
इंसान
हैं,
मगर
इंसानियत
कहां
है ?
इसका
भी तो
पता
मिले।
क्यों
एक
मंदबुद्धि
बच्ची
के साथ
बलात्कार
हो जाता
है ?
और
हम महज
एक खबर
की तरह
उसे
सुनते
हैं
फिर
आगे
की तरफ
बढ़
जाते
हैं ?
हम
खुद
से
क्यों
यह सवाल
नहीं
कर पाते
कि
इंसानों
के
दरमियां
जो
हैवानियत
पसरी
है,
उसका
खात्मा
क्यों
नहीं
होता
?
आये
दिन
इंसानियत
को
शर्मशार
कर देने
वाली
घटनाओं
की
संख्या
बढ़ती
ही जाती
है।
किसी
शायर
ने कहा
है:
किसे दफ्न करूं किसको जलाने जाऊंवह तो हर रोज ही मुश्किल में डाल देता है।हर रोज सुब्ह यह अखबार बांटने वालामेरे घर पर न जाने कितनी लाशें डाल देता है।
जाहिर
है,
शायर
का
इशारा
रोजाना
दम
तोड़ती
इंसानियत
की तरफ
रहा
होगा,
तभी
उसने
अखबार
को
लाशें
बताया।
जिसमें
कोई न
कोई
खबर
एेसी
रहती
है,
जिससे
इंसानियत
शर्मशार
होती
है।
एसी
खबरों
का
घटनास्थल
अलग
हो सकता
है,
देश
अलग
हो सकता
है।
मगर
मरनेवाले
और
मारनेवाले
तो
इंसान
ही हैं।
फिर
चाहे
वह
शामली
की
मंदबुद्धि
युवती
के साथ
बलात्कार
का
मामला
हो या
फिर
तेलंगाना
में
बच्चियों
की
खरीद-ओ-फरोख्त
का
मामला
है।
यह एसी
घटनाऐं
हैं,
जो
बताती
हैं
कि
इंसानियत
धीरे
– धीरे
मर रही
है।
और हम
लोग
उसके
जनाजे
को
कांधा
दे रहे
हैं।
(रचनाकार-परिचय:
जन्म
:
उत्तर
प्रदेश के जिला मेरठ में एक
छोटे से गांव अमीनाबाद उर्फ
बड़ा गांव में 12
अक्टूबर
1988
को ।
शिक्षा
:
माखनलाल
चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता
व संचार विश्वविद्यालय से
पत्रकारिता में स्नातक और
स्नताकोत्तर।
सृजन
:
समसामायिक
और दलित मुस्लिम मुद्दों पर
ढेरों रपट और लेख विभिन्न
पत्र-पत्रिकाओं
में प्रकाशित ।
संप्रति
:
मुस्लिम
टुडे में उपसंपादक/
रिपोर्टर
संपर्क
:
wasimakram323@gmail.com )
0 comments: on "इंसानियत का जनाजा़ है, ज़रा धूम से निकले!"
एक टिप्पणी भेजें
रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी