त्रिपुरारीशरण
श्रीवास्तव व्यंग्यश्री
किरण तिवारी विद्याभारती
वामा सम्मान से सम्मानित
आजादी के बाद के समय को जानने के लिए हरिशंकर परसाई से लेकर मौजूदा व्यंग्य लेखकों को पढ़ना चाहिए। तब जिस महान भारत की कल्पना महात्मा गांधी ने की थी, आज देश पतन की ओर है। बाजारवाद का दैत्य, तो भ्रष्टाचार का दानव सामने खड़ा है। महंगाई डायन बन चुकी है। ऐसी प्रतिकूल स्थितियों से प्रतिकार करने को व्यंग्य जैसी अस्त्र-विधा जरूरी है। यह बातें मशहूर व्यंग्यकार व लेखक गिरीश पंकज ने शनिवार को रांची में कहीं। वह होटल ली लैक में आयोजित लीलावती फाउंडेशन के दूसरे सृजन सम्मन समारोह में बोल रहे थे। मौके पर गिरीश पंकज (रायपुर)को रामदास तिवारी सृजन सम्मान से नवाजा गया। उन्हें पुरस्कार स्वरूप स्ृति चिन्ह, सम्मान पत्र व 25 हजार रुपए मानद राशि सौंपी गई। उन्हें यह सम्मान उनके समग्र साहित्यिक अवदान के लिए मिला है।
समारोह
में त्रिपुरारीशरण श्रीवास्तव
व्यंग्यश्री व किरण तिवारी
विद्याभारती वामा सम्मान से
सम्मानित की गईं। शशिकांत
सिंह भी पुरस्कृत किए गए। सभी
सम्मानित रचनाकारों को स्मृति
चिन्ह,
सम्मान
पत्र व मानद राशि दी गई। स्वागत
भाषण बालेंदुशेखर तिवारी ने
दिया। संचालन संपदा पांडेय
ने,
जबकि
अध्यक्षता दूरदर्शन के महानिदेशक
शैलेश पंडित ने की। कार्यक्रम
में अशोक प्रियदर्शी,
विद्याभूषण,
श्रवणकुमार
गोस्वामी,
माया
प्रसाद,
अशोक
पागल,
दिलीप
तेतरवे,
जंगहादुर
पांडेय,
कामेश्वर
प्रसाद निरंकुश,
ललन
चतुर्वेदी,
रामअवतार
चेतन,
प्रशांत
गौरव,
नरेश
बंका,
शिल्पी
कुमारी,
सुशील
अंकन,
यशोदरा
राठौर व अरुण कुमार समेत ढेरों
लेखक व संस्कृतिकर्मी मौजूद
थे।
व्यंग्य
का रीतिकाल:
प्रेम
जनमेजय
दिल्ली
से आए वरिष्ठ व्यंग्यकार
प्रेम जनमेजय ने बतौर मुख्य
अतिथि कहा कि व्यंग्य का
इनदिनों रीतिकाल चल रहा है।
लेखकों की नई पीढ़ी के समक्ष
कई तरह की चुनौतियां हैं।
मोबाइल व नेट के दौर में
संवादहीनता की स्थिति है।
इससे आपसी रिश्तों पर गहरा
असर पड़ा है। पूंजीवाद अपने
लक्ष्य में सफल हुआ है कि
व्यक्ति महज अपने बारे में
सोचे। उन्होंने कहा कि जो
रचना सवाल न करे,
उसे
वे नपुंसक रचना कहते हैं।
शिखर
की खोज का लोकार्पण
मौके पर काव्य-संग्रह शिखर की खोज का लोकार्पण अतिथियों ने किया। इसका संपादन मधुसूदन साहा और डॉ. कृष्णकुमार प्रजापति ने किया है। पुस्तक का उपशीर्षक साधना के सप्तरथी भाग-2 है। इसमें नचिकेता, बालेंदुशेखर तिवारी, गिरीश पंकज, अनिल कुमार, कुलजीत सिंह, मधुसूदन साहा और कृष्णकुमार प्रजापति की रचनाएं संगृहीत हैं। क्लासिकल पब्लिशिंग, नईदिल्ली से प्रकाशित इस संग्रह की कीमत चार सौ रुपए है।
रांची
भास्कर में 10
मई के
अंक में प्रकाशित
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