बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 9 मई 2015

महँगा पड़ा दबंग सलमान से भिड़ना










असमय कैसे मर गया केस का प्रमुख गवाह रवींद्र पाटिल

संजीव खुदशाह की क़लम से

पिछले दिनों सलमान खान के हिट एड रन केस का निर्णय आने के बाद, सलमान की चर्चा चारों ओर होने लगी। लेकिन इन चर्चाओं में उनकी आवाज़ कहीं खो गई, जो इस केस में जुड़े थे और बर्बाद हो गये। अक्‍सर ऐसा होता है किसी पहुंच वाले व्‍यक्ति के सामने एक आम आदमी की आवाज़ नक्‍कार ख़ाने की तूती की तरह दबा दी जाती है। खास कर ऐसे लोगों के सामने तन कर खड़े होने वाले लोगों की जिन्‍दगी दबंगों के जूते तले रौंद दी जाती है इसका ताजा उदाहरण है रवींद्र पाटिल।

मैं इस केस के मुख्‍य गवाह पुलिस कांस्‍टेबल रवींद्र पाटिल की बात कर रहां हूँ, जो उस समय सलमान खान का अंगरक्षक था और वारदात के दौरान उनके साथ कार में पीछे की सीट पर बैठा था। आपको बता दें कि सलमान पर आरोप है कि उन्होंने 2002 में अपनी कार एक दुकान से टकरा दी थी, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और चार अन्य घायल हो गए थे. यह घटना 28 सिंतबर 2002 की है. सलमान खान को कोर्ट में अपना पक्ष रखने का मौका मिला. एक मजिस्ट्रेट द्वारा इस मामले में गैर इरादतन हत्या का आरोप जोड़े जाने के बाद सत्र अदालत में नए सिरे से सुनवाई हुई . इस मामले में फैसला आ चुका है और सलमान खान को दोषी करार दिया गया है। बता दें, इस मामले में सलमान खान पांच साल के जेल की सजा हुई है, जबकि 25 हजार जुर्माना लगाया गया है। लेकिन बाद में हाइ्रकोर्ट ने सलमान की सजा को रद्द करते हुए मामले की सुनवाई बढ़ा दी।

यह घटना 13 साल पुरानी है। बहरहाल, इस पूरे केस में 4 ऐसे चश्मदीद गवाह हैं, जिन्होंने समय-समय पर इस केस को मोड़ दिया है। ग़ौरतलब है की इस मुआमले में 4 चश्मदीद गवाह थे- पहले चश्मदीद- नौजवान रवींद्र पाटिल अभियोजन पक्ष के गवाह थे। दुर्घटना के बाद इन्होंने ही सलमान के खिलाफ ए‍फआईआर दर्ज कराई थी। उन्होंने सलमान पर शराब पीकर गाड़ी चलाने का आरोप लगाया था। रिपोर्ट के मुताबिक, वे दुर्घटना के समय सलमान के साथ गाड़ी में मौजूद थे। दूसरे चश्मदीद सलमान के अच्छे दोस्त कमाल खान गायक हैं। इस मामले में वे मुख्य गवाह रहे। दुर्घटना के वक्त वे सलमान के साथ गाड़ी में मौजूद थे। कमाल ने पुलिस को बयान दिया था कि गाड़ी सलमान ही चला रहे थे। तीसरे चश्मदीद- अशोक सिंह इस पूरे मामले में ये एक ऐसे चश्मदीद रहे, जो साल 2015 में सामने आये कोर्ट में उन्होंने बयान दिया था कि गाड़ी सलमान नहीं, वे चला रहे थे। बता दें, अशोक सिंह ने कहा था कि,'ड्राइविंग मैं कर रहा था और यह दुर्घटना टायर फट जाने की वजह से हुई।' चौथे चश्मदीद- रामआसरे पांडे इस केस में सबसे महत्वपूर्ण गवाह माने जा सकते थे, लेकिन ऐन वक्त पर ये मुकर गए। जब एक्सिंडेंट हुआ तो रामआसरे पांडे बेकरी के सामने सो रहे थे। इस मामले में पहले जहां रामआसरे ने कहा था कि सलमान ड्राइविंग सीट की ओर से बाहर आए थे। वहीं बाद में उन्होंने कहा कि उन्होंने सलमान को गाड़ी चलाते नहीं देखा।

यदि सलमान के गवाह अशोक सिंह को छोड़ दें तो बाकी गवाहों पर ब्‍यान बदलने का जबरदस्‍त दबाव था। खास कर पुलिस कांस्‍टेबल रवींद्र पाटिल पर दबाव इतना था कि खुद पुलिस विभाग ने उनका साथ छोड़ दिया। भारतीय न्‍याय व्‍यवस्‍था का काला सच देखिये कि जिस जेल में आरोपी सलमान खान को होना था, उस जेल में आवेदक रवींद्र पाटिल को बंद कर दिया गया। उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा। बावजूद इसके पाटिल ने अपना बयान नहीं बदला जिसके बदले उसे कई परेशानियां, टॉर्चर और डिप्रेशन से गुजरना पड़ा। कुछ लोग बताते है कि पाटिल अपने अंतिम समय में मुबई रेल्‍वे स्‍टेशन में में भीख मांगा करते थे। दुर्घटना में महज पांच साल बाद 2007 में उनकी टीबी से मौत हो गई।

ये कई लोगों के लिए काफी शॉकिंग खबर थी कि जिस व्यक्ति ने कोर्ट में सलमान खान के खिलाफ गवाई दी थी, अब खुद उसी के खिलाफ पुलिस ने वारंट निकाल दिया है। कारण, वो कोर्ट की किसी भी सुनवाई में हाजिर नहीं रहा था। हालांकि दबी जुबान से ये भी कहा जा रहा है कि एक निडर आम आदमी बॉलीवुड के बड़े आदमी के विरोध में खड़े होते हैं तो अक्सर ऐसा ही होता है। और खासकर तब, तब बात सलमान खान की हो।

दरअसल भारतीय सफेद पोश का ये असली चेहरा है जहां एक ओर सलमान खान की ह्यूमन बीइंग एनजीओ की तारीफ करते मीडिया नहीं थकती, तो अनकी पाली हुई बहन को सर आंखों पर बैठाने उसकी शादी करवाने की खबरें मीडिया में दिन भर तैरती रहतीं। वहीं एक ओर दम तोड़ती निरीहों की जिन्‍दगी को क्‍या एक कलम का भी सहारा नसीब नहीं हो सका। दुर्घटना में जो हुआ सो हुआ। लेकिन पाटिल की मौत का जिम्‍मेदार आखिर कौन है, उसके आरोपियों को सजा कौन देखा। आज भारत में ऐसे रवींद्र पाटिलों की संख्‍या बहुत है जो न्‍यायालय से उम्‍मीद करने के भी काबिल नही रह गये है। आज ऐसे दबंगों की भी कमी नहीं है, जो गवाहों को कत्‍ल करने के बाद भी अपने को बे-दाग सिद्ध करने में तुले हुये हैं। बलात्‍कार के आरोपी संत आशाराम के कई गवाहों के कत्‍ल को इसी चश्‍मे से देखा जा सकता है। सारी व्‍यवस्‍था सच का दामन पकड़ने वालों की जिन्‍दगी के साथ खिलवाड़ करने से नहीं चूकती है। यदि रवींद्र के मुआमले में देखें तो खुद उसका पुलिस विभाग, न्‍याय विभाग और मीडिया ने न केवल बहिष्कार किया बल्कि मौत के अंजाम तक पहुंचाया। सारी व्‍यवस्‍था दबंग के साथ खड़ी दिखती है। कब ये दबंग इन न्‍यायधीशों की जान पर बन जाएंगे कहना कठिन नहीं है। अभी भी मौका है इस व्यवस्‍था को सुधारने का व्यवस्‍था के झंडाबरदार और मीडिया इसमें अपना महत्‍वपूर्ण रोल निभा सकती है। क्‍या रवींद्र जैसे हजारों लोगों की जिन्‍दगी बचाई जा सकती है।

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(रचनाकार-परिचय:
जन्म : 12 फरवरी 1973 को बिलासपुर छत्तीसगढ़ में।
शिक्षा : एम.. एल.एल.बी.
सृजन : देश की लगभग सभी अग्रणी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं। सफाई कामगार समुदाय एवं आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग नामक दो पुस्तकें प्रकाशित। इनका मराठी, पंजाबी, एवं ओडिया सहित अन्य भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।
सम्मान: कई पुरस्‍कार एवं सम्मान
संप्रति : राजस्व विभाग में प्रभारी सहायक प्रोग्रामर बिलासपुर
संपर्क : sanjeevkhudshah@gmail.com )





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1 comments: on "महँगा पड़ा दबंग सलमान से भिड़ना "

Swapnil Srivastava ने कहा…

apne bebak ray de..safedposho ke hath lambe hote hai..ve gavaho ko khared lete hai.sabse kharab bhomika mediya ke hai. mediya to usee varg ka hai aur unhee ki bhasa bolega hi..

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