तुम कुछ भी हो मुसलमान नहीं हो सकते!!!
घर पर टीवी नही रखता .ये मुझे दस सालों से हम आम लोगों को बेवकूफ समझता है, साथ ही साथ हमारी भावनाओं और विश्वास के साथ भी समय-समय पर खिलवाड़ करता रहता है.विशेष कर समाचार चैनल।
इन्हें सिर्फ़ रहस्य चाहिए, रोमांच और सेक्स इनकी टीआर पी बढ़ाता है.खैर ये अलग बहस का मुद्दा है.बात टी वी की कर रहा था.शाम मेल चेक करने बैठा तो अम्रीका में फिलहाल, ब्लोगर-मित्र बहन प्रज्ञा की खिड़की खुली.और जब पता चला कि राजधानी में सिलसिलेवार बम धमाका करने में देशद्रोही फिर सफल हो गए हैं. और अब तमाम खबरिया चैनल पिल पड़े हैं अपनी -अपनी दूकान के साथ....
उन्हें पता चल चुका है , इसके मास्टर माईंड का आयी बी एन सेवेन पर प्रबल प्रताप सिंह ने आक्रामक और विश्वास के साथ कहा कि सुभान उर्फ़ तौकीर इसका मास्टर माईंड है।
मुझे लगता है कि सरकार को इन चमकीले समाचार प्रस्तोताओं से खुफिया का काम ज़रूर लेना चाहिए।
खैर मास्टर माईंड सुभान हो या तौकीर न उसको देशवासी बख्स सकते हैं और न ही उनका अल्लाह और रसूल।
चाहे वो सीमी के हों या इंडियन मुजाहदीन के।
पैगम्बर मोहम्मद ने जिहाद में भी औरतों, बूढों,मासूम बच्चों की हिफाज़त की बात कही है।
उन्होंने ऐसे मुसलमान की आलोचना की है जो बेक़सूर ही गैर-मुस्लिमों पर ज़ुल्म ढाए और आपने अल्लाह की अदालत में उन बेक़सूर गैर-मुस्लिमों की वकालत करने का वादा किया है।
ऐ इस्लाम के नाम पर लड़ने वालों और बेगुनाहों कि जान लेनेवालों कान खोलकर सुन लो।
अल्लाह कहता है:
धर्म के विषय में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है -२:२५६
और ऐ ईमान वालों ये लोग जो अल्लाह के सिवा जिनको पुकारते हैं उन्हें गालियाँ न दो -६:१०८
अल्लाह अपने नबी से संबोधित है : और हे नबी, भलाई और बुराई समान नहीं है.तुम बुराई को उस नेकी से टालो, जो उत्तम हो.तुम देखोगे कि जिसका वैर था वोह आत्मीय मित्र बन गया है.-४१:३४
ईमान और मोमिन शब्द जिस मूल धातु से बने हैं अर्थार्त अ-म-न उसका उच्चारण अमन ही है. इस प्रकार इश्वर पर पूरा विश्वास, जो ज़ुल्म से मुक्त हो, शान्ति का कारण और गारंटी है.शान्ति और वास्तविक सम्मान की रक्षा ईमान वाले का फ़र्ज़ है.
ऐ मुजाह्दीनों तुम कुछ भी हो सकते हो मुसलमाँ तो हरगिज़-हरगिज़ नहीं हो सकते.
इस लरजते रूह और दिल से निकली दुआ है, जिस ने भी ये खूंरेजी की है वो जहन्नुम की आग में इस से भी बुरी तरह जले.
क्योंकि :
ये सोच-सोच कर परीशाँ है क़मर यारो
ऐ मुजाह्दीनों तुम कुछ भी हो सकते हो मुसलमाँ तो हरगिज़-हरगिज़ नहीं हो सकते.
इस लरजते रूह और दिल से निकली दुआ है, जिस ने भी ये खूंरेजी की है वो जहन्नुम की आग में इस से भी बुरी तरह जले.
क्योंकि :
ये सोच-सोच कर परीशाँ है क़मर यारो
कटेगा कौन सा सब अपना सर लगे है मुझे
चित्र:बी बी सी से
37 comments: on "अब फिर दिल्ली...हाय-हाय मुजाहिदीन!"
bilkul sahi likha hai.is haadse k saranjaam jisne bhi diya ho uske liye bad-duaa k siwa kya aur kuch nikal sakta hai.
काश उनको भी यह समझ आती जो मजहब का अर्थ अपने ही हिसाब से ही निकालते हैं ।
अफसोसजन..दुखद...निन्दनीय!!
बडे भाई, बहुत अच्छा लगा यह पढकर । आपकी बेबाक प्रस्तुति के लिये आभार ।
काली अंधियारी रातो का द्वेष
उर उजियारे में फैलाता क्लेश
नफ़रत का ये घौर अँधेरा
ना तेरा है ना ही मेरा
कब जागे बुद्धा की बाते
ह्रदय बीच उनके कण कण में ......
aapne bilkul sach baat likhi hai..koi bhi mazhab kisi ko bhi begunah logon ki jaan lene ka hak nahi deta..main aapki baaton se poori tarah sehmat hun
aaj subah uthte hi is khabar se mera saamna hua. darasal main US mein rehti hun, lekin mool roop se bhartiya hun. mere bahut se dost DU mein padhte hain aur main jaanti hun ki wo sabhi CP aur karol bagh jaate rehte hain, kuch der ke liye to main sann reh gayi...phir sabse poocha ki sab theek hain ya nahi...
logon mein darr failake yeh log apni takat dikhana chahte hain, main kehti hun ki inse bade kayar maine nahi dekhe...takat ki aajmaish tab ho jab baaton ke balboote pe yeh log apna paksh duniya ke saamne rakhein..lekin yeh bhi kahan aisa kar payenge, inke to siddhant hi uljhe hue hain..
देल्ही के दहलाने वालो शर्म-शर्म करो. क्रुसेड (जेहाद) के नाम पर आतकंवाद को धर्म से जोड़ने वालो क्यो कर रहे हो आल्लाह के उपदेशो से बलात्कार ? आतंकवादीओं का न कोई धर्म होता न ही मज़हब .......आज डेल्ही ,कल फिर कही और ....? बम बिस्फोट में मारे गए वे सैकडों निर्दोष का खून में उन,मजलूमों में क्या तुम्हारा बचपन नही दीखता ..अरे अजाजिलो क्यो इस्लाम को बदनाम कर रहे हो, पुरी दुनिया में इसलाम के नाम पर आतंकबाद को समर्थन करने वालो मुज़हिद्दीनो तेरे लिए दोज़ख में भी जगह नही ..........सहरोज जी अच्छी रिपोर्ट के लिए सुक्रिया.....बस इस शव्द के साथ की
"यहाँ तो कातिल औ मुंसिफ के चहरे एक से है,
सरीफ आदमी किस- किस का एहतराम करे ...
Rakesh Pathak
उन्हें लगता है वह यह कर सकते हैं और बच सकते हैं, इस लिए उन का डर कम होता जा रहा है. आम आदमी के अलावा कौन है उन के ख़िलाफ़ इस देश में?
शाबाश शहरोज !
गज़ब का लिखते हो यार ! इस सामयिक लेख पर जो शहरोज़ लिख सकता है वह वज़न किसी की लेखनी में नहीं है ! अपने देश की सेवा आपसे अच्छा और कोई कर भी नही सकता !
"पैगम्बर मोहम्मद ने जिहाद में भी औरतों, बूढों,मासूम बच्चों की हिफाज़त की बात कही है।
उन्होंने ऐसे मुसलमान की आलोचना की है जो बेक़सूर ही गैर-मुस्लिमों पर ज़ुल्म ढाए और आपने अल्लाह की अदालत में उन बेक़सूर गैर-मुस्लिमों की वकालत करने का वादा किया है।"
आपके यह शब्द आँखे खोलेंगे हमारे उन गुस्साए भाइयों की जो गुस्से में अपना भाईचारा और विश्वास भूल गए हैं ! आपके लिखे यह शब्द बताएँगे कि आज के समय में देश को प्यार करने की बपौती केवल एक बच्चे की नहीं उन सब की है जो यहाँ जन्म लिए हैं, आज रमजान के मौके पर कुछ परिवार जिसमें हिंदू मुसलमान सब शामिल हैं, घर में चिराग जलाने लायक नही बचे ! यह दर्द हम सबका है और साथ साथ बाँटेंगे हम हिंदू और मुसलमान !
अंत में मेरी हाल में लिखी कुछ लाइने....
"तुम मासूमों का खून बहा
ख़ुद को शहीद कहलाते हो
औ मार नमाजी को बम से
इस को जिहाद बतलाते हो
जब मौत तुम्हारी आएगी,
तब बात शहादत की छोडो
मय्यत में कन्धा देने को,
अब्बू तक पास न आयेंगे"
मैं कुछ काम में लगा हुआ था, अचानक से मेरे प्रिय मित्र का जी नियूज से फोन आया और उसने ये पूरा वाकया बताया, तो मुझे यकीन हुआ, पर फ़िर इक पल में ही यकीन बाद गया. फ़िर मैंने तुंरत ख़बर को कवर किया. मैं भी जैसे जानके दहल गया. बहुत दुःख हुआ, मैं तो अपना आप ही जैसे खो गया...था, न जाने क्यों मैं गुस्से से भर गया था, किस पर...क्यों...तरह तरह के सवाल मेरे मन में उमड़ पड़े...फ़िर सारी रात बस इसी की चर्चा में नींद ने कुर्बानी दी. आतंकवाद बड़ा मसला है; गंभीरता से हम सबको इसके प्रति सतर्क रहना होगा.
apki baat se hum bilkul sahmat hai
'मजहब का अर्थ अपने ही हिसाब से ही निकालने वाले' हर धर्म में हैं । शाहरोज़ ने धार्मिक उद्धरण दे कर बहुत अच्छा काम किया है । हिन्दू-मुस्लिम एकता के साथ ही कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ तहरीक़ चलानी होगी ।
यहाँ कोई महाशय मेरे पूरे नाम syed shahroz quamar से टिपण्णी कर गए हैं.अवश्य ही ऐसा काम भी इक तरह का जुर्म ही है, किसी के नाम की मेल आई डी बना लेना.
मैं आहात हुआ हूँ.
और उन हज़रत को यहाँ आकर क्षमा-याचना करने मैं भी शर्म है.
वो जल्द से जल्द मेरे नाम का दुरूपयोग करना बंद करें.अन्यथा कानूनी कार्यवाही की आशंका बनी रहेगी.
mein aadil azad galti se syed shahroz qamar saheb ki id istamal kar liya tha ,jiske chalte shahroz saheb ki id se message chala gay
i hope u dnt mind.aur shahroz saheb bhi bura nahi manenge
tc
regards
aadil
शहरोज भाई !
शायद नहीं निश्चित रूप से आप सही कह रहे हैं , पर लगता है की क्या वह कोई दूसरी तरह की धार्मिक पुस्तकें पढ़ रहे हैं क्या? दर-असल यह आतंकवाद हमारी कमजोरी बन गया है / अब तो यह हमारी कोई नीति न होने का ही दुस्परिनाम है/ सभी आहटों की आत्मा को शान्ति !
कृपया उपरोक्त टिपण्णी में दुस्परिनाम को "दुष्परिणाम" व आहटों को "आह्तों" पढने की कृपा करें /
hmmmmm
mazhab ko har baat main beech main lana bhaut galat baat hai
aatnakvadi na to muslim hai na hindu na hi sikh na koi aur dharam ka.
jo log dharam se judh jate hain wo log khud se judh jate hain samvedansheel hote hain
shanti priy hote hain wo log kabhi koi khoon baha nahi sakte .
aatankwadi koi aur nahi bus
ye log sirf sawarthi hai andhe hai aur bimaar hai
sawarth main andha hokar usne apne rishton pyaar aur samaaz ki bhalayi ko nahi dekha hai
aur bimari ke josh main aakar usne galat kadam uthaya hai
dua yahi hai ki log khoob padhe aur padhkar duniya ko samjhe
kyuki jaise jaise anpadhta duniya se mitegi waise waise dimag ke darwaze khulenge aur atankwaad khatam ho jaayega
halaki apvaad yaha bhi hai
kuch khurafati dimaag zayada padhne par bhi andhe ho jate hai
bhagwan se parthna hai ki logon ko sadbuddhi den
भैया, कैसे हैं आप
आप ने कहा की बम धमाकों पर अपने विचार दूँ......
3 साल होने को आये ऐसे कॉलेज मॆं पढ़ते हुए जिसे एक मुस्लिम ट्रस्ट चलती हैं.. जिस होस्टल मॆं रहता हूँ वहां खाना अख्तर चाचा बनाने हैं, परोसती खैरुल बजी हैं, इधर कुछ दिनों से मेरे मोबाईल मॆं सुबह 3:15 का अलार्म बजता हैं क्यों कि ग्यारवीं मॆं पढने वाले शाहरुख़ और छटी मॆं पड़ने वाले जावेद को सहरी के लिए उठाना होता हैं.....
अगर आज मॆं ये कह सकता हूँ कि मॆं साहित्य पढता हूँ तो इसका श्रेय श्रधेय गुरु अहमद बद्र और याहिया इब्राहीम को जाता हैं ......
इन्सबसे मैंने जितना सिखा हैं वह ये हैं कि इस्लाम चाहे जो भी कहता हो औरतों और बचों के खून तो उसे बुल्कुल पसंद नही.....
भैया उन्हें कुरान नही तेजाब दिखाईये भैया, कैसे हैं आप
आप ने कहा की बम धमाकों पर अपने विचार दूँ......
3 साल होने को आये ऐसे कॉलेज मॆं पढ़ते हुए जिसे एक मुस्लिम ट्रस्ट चलती हैं.. जिस होस्टल मॆं रहता हूँ वहां खाना अख्तर चाचा बनाने हैं, परोसती खैरुल बजी हैं, इधर कुछ दिनों से मेरे मोबाईल मॆं सुबह 3:15 का अलार्म बजता हैं क्यों कि ग्यारवीं मॆं पढने वाले शाहरुख़ और छटी मॆं पड़ने वाले जावेद को सहरी के लिए उठाना होता हैं.....
अगर आज मॆं ये कह सकता हूँ कि मॆं साहित्य पढता हूँ तो इसका श्रेय श्रधेय गुरु अहमद बद्र और याहिया इब्राहीम को जाता हैं ......
इन्सबसे मैंने जितना सिखा हैं वह ये हैं कि इस्लाम चाहे जो भी कहता हो औरतों और बचों के खून तो उसे बुल्कुल पसंद नही.....
भैया उन्हें कुरान नही तेजाब दिखाईये भैया, कैसे हैं आप
आप ने कहा की बम धमाकों पर अपने विचार दूँ......
3 साल होने को आये ऐसे कॉलेज मॆं पढ़ते हुए जिसे एक मुस्लिम ट्रस्ट चलती हैं.. जिस होस्टल मॆं रहता हूँ वहां खाना अख्तर चाचा बनाने हैं, परोसती खैरुल बजी हैं, इधर कुछ दिनों से मेरे मोबाईल मॆं सुबह 3:15 का अलार्म बजता हैं क्यों कि ग्यारवीं मॆं पढने वाले शाहरुख़ और छटी मॆं पड़ने वाले जावेद को सहरी के लिए उठाना होता हैं.....
अगर आज मॆं ये कह सकता हूँ कि मॆं साहित्य पढता हूँ तो इसका श्रेय श्रधेय गुरु अहमद बद्र और याहिया इब्राहीम को जाता हैं ......
इन्सबसे मैंने जितना सिखा हैं वह ये हैं कि इस्लाम चाहे जो भी कहता हो औरतों और बचों के खून तो उसे बुल्कुल पसंद नही.....
भैया उन्हें कुरान नही तेजाब दिखाईये भैया, कैसे हैं आप
आप ने कहा की बम धमाकों पर अपने विचार दूँ......
3 साल होने को आये ऐसे कॉलेज मॆं पढ़ते हुए जिसे एक मुस्लिम ट्रस्ट चलती हैं.. जिस होस्टल मॆं रहता हूँ वहां खाना अख्तर चाचा बनाने हैं, परोसती खैरुल बजी हैं, इधर कुछ दिनों से मेरे मोबाईल मॆं सुबह 3:15 का अलार्म बजता हैं क्यों कि ग्यारवीं मॆं पढने वाले शाहरुख़ और छटी मॆं पड़ने वाले जावेद को सहरी के लिए उठाना होता हैं.....
अगर आज मॆं ये कह सकता हूँ कि मॆं साहित्य पढता हूँ तो इसका श्रेय श्रधेय गुरु अहमद बद्र और याहिया इब्राहीम को जाता हैं ......
इन्सबसे मैंने जितना सिखा हैं वह ये हैं कि इस्लाम चाहे जो भी कहता हो औरतों और बचों के खून तो उसे बुल्कुल पसंद नही.....
भैया उन्हें कुरान नही तेजाब दिखाईये
bahut accha likha hai.
वोट बैंक नाराज ना हो जाये, इस डर से कितने सही फैसले थे जो लिए जाने चाहिए थे पर नहीं लिए गए और जो नहीं होना था वो होता रहा.. नेता देश को गर्त में धकेलते चले गए... और अब टी आर पी के डर से ये न्यूज़ चैनल उसी राह चल पड़े हैं. एक सुर्खी और ब्रेकिंग न्यूज़ और उसका प्रस्तुतीकरण बरबस राह में मजमा लगाये मदारी की याद दिला देता है.
किसी भी धर्म के नाम पे बेगुनाहों का खून बहाने वाले ये जानते ही नहीं की धर्म क्या है..
rajneeshvaid@yahoo.com
दर्दनाक है इस तरह के सभी हादसे.
ज़बान गुंग और दिमाग कुंद हो जाता है.
पीड़ित के प्रति हमदर्दी जताते हुए शर्मिंदगी रहती है (कि इन हादसों कि जिम्मेदारी भी मेरे ही नाम जैसे कुछ लोगों पर आनी है जो इस्लाम कि आड़ में न जाने किस धर्म का परचम बुलंद करना चाहते हैं. इस्लाम का तो हरगिज़ नहीं क्योंकि इस्लाम इस तरह के खून-खराबे कि इजाज़त देता ही नहीं है).
hamaree sarkaar hijron ka jhund hai.aam logon ki jaan ki kimat kuch bhi nahi hai, ye sab syasati khel hai jise mazhab ke saath joR kar chand log apna uloo seedha karte hain. lekin avaam ko ab ye sab samjhna chahiye.
insanyat pahle hai, mazhab baad me.
कोई आतंक ना हिन्दू ना मुस्लिम होता है
बस अलगाव विध्वंसात्मक बुध्धि के लोग होते हैं
जिनके पास दिल नहीं होता और खबरिया चैनल को और क्या चाहिए !
अब तो यही आलम है
"यहाँ हर शाख गिरवी है
परिंदे पर कटे से हैं
यहाँ किस दोस्त की,किस मेहरबान की बात करते हो?
(कवि का नाम फिलहाल याद नहीं आ रहा)............
सुभान अल्लाह
शहरोज़ भ्ह
शहरोज़ भाई मेरा हिन्दू लिखने का मतलब हिन्दू या मुस्लिम नही था,मेरा हिन्दू हिन्दुस्तान मे रहने वाला हर आदमी है,जो बेगुनाह मर रहा है।मेरा गुस्सा आतन्क्वादियों के खिलाफ़ था,आपको गलत लगा तो मै माफ़ी चहता हु ।उम्मीद है आप मेरी भावनाओ को समझेन्गे।
सही कहा आपने आतंक फैलाने वाला कोई भी व्यक्ति धार्मिक नहीं हो सकता।
इस विचारोत्तेजक पोस्ट के लिए बधाई।
इतना ही कहूगा दोस्त...
दस्तूर किसी मजहब का ऐसा भी निराला हो
इक हाथ में हो इल्म दूजे में निवाला हो....
एक सच्चे दिल से लिखी गई पोस्ट को मेरा सलाम
आपकी बातो से पुरा सारोकार है जनाब लेकिन कुछ प्रश्न अब भी जेहन मे तैर रहे है बम फ़ोडा किसी अपराधी ने और पुरे हिन्दुस्तान मे यहा तक ब्लाग मे भी तुरंत हिन्दु और मुसलमान पैदा हो गये । यही तो मुज्जाहिद्दीन चाहता है कि भारत मे हिन्दु मुस्लीम रहे पर भारतीय ना रहे ।जब भी हम हिन्दु-मुस्लीम भुलकर भारतीय होने लगते है वह हमे बम फ़ोड कर याद दिलाता है और हम तुरंत हिन्दु और मुस्लीम बन जाते है । किसी ने सच कहा है
क्या क्या बनाने आये थे ,क्या क्या बना बैठे ।
कही मंदिर बना बैठे तो कही मस्जिद बना बैठे।
हम से भली तो इन परिंदो की जात है ।
कभी मंदिर मे जा बैठे तो कभी मस्जिद मे जा बैठे ।
वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में अपनी बेबाक राय और निष्पक्ष लेख लिखने के लिए बधाई हो...
...रवि
www.meripatrika.co.cc/
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/
घटना पर आपका बेबाक नजरिया प्रशंशनीय ही नहीं वल्कि अनुकरणीय भी है ! ग़लत को ग़लत कहने के लिए भी साहस चाहिए और इतनी टिप्पणियाँ गवाह हैं इस बात की कि हर एक वतनपरस्त आपसे इत्तिफाक रखता है !
आपका ब्लॉग पढ़ा, बहुत अच्छा लगा,
आपने हर घटित होती घटना का यथार्थ चित्रण किया है अपने ब्लॉग में......
हर बात जो घटित होती है उस पर आपने अपनी कलम से अपने विचार प्रकट किये है......
हर बात के सम्पूर्ण सच को गहराई से लिखा है आपने..
मैंने भी कुछ विषयो पर लिखा है पर कभी कही पर प्रकाशित करने का मोका नहीं मिला........
क्यूंकि वो सिर्फ मेरे विचार है.........उस पर जन्सहमती भी होने ज़रूरी है.,
आपकी कलम हालात के सच से रूबरू करवाती है.....
जाने क्यूँ लोग हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई आदि धर्मो को भूल कर
इंसानियत के धर्म को क्यूँ नहीं अपनाते?
आज इंसान ही इंसान का दुश्मन बना हुआ है.......
रिश्ते अपनी पहचान खो चुके है.......
भाई चारे के नाम पर सिर्फ बातें ही बची है.......
बाकि सब ख़त्म हो चूका है......
bahut badhiya likha aapne. esi vishay per ek baar versha jee ka blog likhdala.blogspot.com zaroor padhen. shukriya aapka
bhaijaan
kya article likha hai,bilkul islam ka sahi paygam diya hai.islam teaches us peace dat is in u r article.gud keep it up.
भाई गुन्जेश कुमार के विचार जान कर और शहरोज़ के लेख पढ़ कर अच्चा लगा \ हमज़बाँ एक बेहतरीन मंच है
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी