बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2008

अब पत्रकार निशाने पर


अभी हम सब लगातार हुए बम-विस्फोटों की तबाहियों और मासूमों की असामयिक मौत से पूरी तरह उबर भी नहीं पाये थे कि कंधमाल और कर्णाटक में दहशतगर्दों(जिन्हें पुलिस और मीडिया उग्र भीड़ कहती हैजबकि अरविन्द शेष जैसा प्रबुद्ध तबका कुछ और )के तांडव से रूबरू हुए.कंधमाल में अब तक ५० आदिवासी-दलित ईसायिओं को धर्म-परिवर्तन करने का सबक सिखाया गया है.अर्थात वो सारे चमकते त्रिशूल-तलवार का शिकार हो चुके हैं.कईयों को ज़िंदा जलाए जाने तक की ख़बर है।
इक नन के साथ कई लोगों ने बलात्कार किया फिर उसे नंगा घुमाया गया।
असम में छोटी-सी बात को लेकर बोडो के लोग मुसलमानों पर टूट पड़े.जिन्हें ये बँगला देशी कहते हैं।
सरकारी आंकडे के अनुसार दो दिन में ३६ लोग मारे गए।
वहाँ से लौटे स्वयं-सेवी संगठनं के लोगों ने बताया कि मामूली-सी बात इक बहाना थी.ख़ास मानसिकता के लोग और उनका संगठन बहुत दिनों से बोडो संगठन को बरगला रहा था।
अब मालेगाँव, धोलिया, थाने जैसे महाराष्ट्र के कस्बे दंगे की चपेट में हैं।
कई दुकाने और जानें जा चुकी हैं।
गाज अब भी लटक रही है.लेकिन प्रशाशन कभी लिखी गई हमारी ही दो पंक्ति का ब्यान है:
तालाबों से लाश मिली है
शहर लेकिन अमन में है
लेकिन सबसे खतरनाक है पत्रकारों को सताया जाना ।
मध्य प्रदेश पुलिस प्रताड़ना नसीब हुई युवा-पत्रकार नदीम अहमद को.लेकिन थाने के बुजुर्ग-पत्रकार (उम्र:७० साल) सलमान माह्मी का कुसूर क्या है कि वहाँ की पुलिस उन्हें गिरफ्तार करना चाहती है धरा ३०० के तिहत.उनपर मिटटी का तेल छिड़क कर फसादी जला रहे थे.उनके घर पर हमला हुआ था.और उनका कुसूर यही था कि उन्हों ने पुलिस में मामला दर्ज करवा दिया था।
हिन्दुस्तान टाईम्स के पत्रकार आफताब खान ने अपने अखबार के ७ अक्टूबर के अंक में अपनी रुदाद दर्ज की है ।
वो धुले रिपोर्टिंग के लिए पहुंचे हैं.कर्फियु लगा है.वो कलेक्टर के दफ्तर से महज़ आधा किलो मीटर स्थित खड़े हैं.अब उनकी जुबानी :
और मौत छूकर गुज़र गई
मैं हालत का जायज़ा ले रहा था। रिपोर्ट लिख रहा था.और साथ ही तस्वीरें भी खींच रहा था, जोकि एक संवाददाता
का मामूल होता है। वहाँ पर दूसरे संवाद दाता भी मौजूद थे, इसलिए घबराने और परेशान होने की कोई बात नहीं थी। लेकिन अचानक एक आदमी ने मुझ से सवाल किया, क्या तुम पत्रकार हो? मैं ने कहा, हाँ तो उसका अगला सवाल था कि मेरे ख्याल में इस फसाद में किस सम्प्रदाय के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए होंगे। हिंदू या मुसलमान? ये एक गैर-डिप्लोमैटिक सवाल था.मैं जानता था कि मुसलमान सबसे ज्यादा प्रभावित हुए होंगे । लेकिन मैं ने ख़ुद को तटस्थ रखना ही उचित समझा। शायद इस लिए कि अपनी रिपोर्ट में ज्यादा से ज्यादा सचाई लिख सकूं।
जब उन्हों ने जवाब जान ने की जिद की, तो मैं ने गैर-जानिबदारी का सबूत देते हुए कहा, मेरे ख्याल से दोनों सम्प्रदाय के लोगों का बराबर नुकसान हुआ होगा। सामान्यत: इस प्रकार के दंगे में ऐसा ही होता है। है कि नहीं?
यह एक ऐसा जवाब था जो वहाँ पर मौजूद किसी भी व्यक्ति को पसंद नहीं आया। मेरा जवाब सुनते ही वहाँ की फ़िज़ा में अचानक तनाव सा पैदा हो गया। हथित्यारों से लैस वहाँ पर मौजूद एक समूह मेरे पास आने लगा। यह लोग मेरी शर्ट में पिन से लगे कर्फियु -पास में मेरा नाम पढने की कोशिश करने लगे.और जैसे ही उन्हों ने मेरा नाम आफताब खान पढ़ा अपने-अपने हथियारों को हवा में लहराने लगे।
इन में से एक व्यक्ति ने आधे-अधूरे शब्दों में कहा, तुम चाहे जो कर लो ......चारों तरफ़ से मेरे साथ धक्का-मुक्की की जाने लगी। मुझे ऐसा लगा कि मेरी ज़िन्दगी का आखिरी दिन आ पहुँचा है। पहले तो यह ख्याल किया कि यह लोग मुझे मार-पीट कर छोड़ देंगे। लेकिन जब इनके हाथों में चाकू देखा तो यकीन हो गया कि यह लोग मेरी हत्या कर देंगे।
लेकिन ठीक इसी समय वहाँ पुलिस वाले आ गए । उन्हों ने हमलावरों को रोका । पुलिस वालों की उनसे कहा-सुनी चल ही रही थी कि मोटर सयकिल पर सवार एक स्थानीय पत्रकार सुनील बहलकर तेज़ गाड़ी चलाता हुआ भीड़ के बीच पहुँचा , उसने पुलिस वालों और दंगाईयों से कहा कि वोह मुझे पहले से जानता है। और मुझे मोटर साइकिल पर बिठाकर वहाँ से निकल गया।

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18 comments: on "अब पत्रकार निशाने पर"

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

फ़ासिस्ट गिरोहों से और क्या उम्मीद की जा सकती है। वे सिर्फ़ वही सुनेंगे जो सुनना चाहते हैं। पुलिस ने आपको बचाया ये तारीफ़ की बात है और ताज्जुब की भी। वरना आजकल तो कई बार पुलिस भी दर्शक बनी रहती है।

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

हमारा सबसे बड़ा क़ुसूर यही है कि हम मुसलमान हैं...लेकिन कुछ तो बात है कि आज हुसैन का इस्लाम दुनिया भर में परचम लहरा रहा है...हमें इस बात पर नाज़ है कि हम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम के उम्मती हैं और उस इस्लाम को मानने वाले हैं जिसके लिए हुसैन ने सजदे में अपना सर कटा लिया था...मायूस होने कि ज़रूरत नहीं...दुनिया में इंसानियत अभी क़ायम है...मुल्क के मुट्ठी भर लोग ही ऐसे हैं...जो मुसलमानों से हर वक़्त दुश्मनी निकालते रहते हैं...दरअसल आज सेकुलर सियासी पार्टियों और दूसरे संगठनों को मिलकर अल्पसंख्यकों पर होने वाले ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी होगी...दुःख और अफ़सोस की बात तो यह है कि अपने ज़ाति फ़ायदे के लिए कुछ अपने ही लोग अपने भाइयों का गला काट रहे हैं और मुसलमानों के कातिलों के जूतों में पानी पी रहे हैं... खैर...इन लोगों पर 'फ़ातिहा' पढ़ना ही बेहतर है...

RAJ SINH ने कहा…

Dr.amar jyoti ji,

fasiston ko aap sahee dekh rahe hain .doosaree aankh bhee kholiye jehadee aur goree gaznee bhee dikhayee denge.bharat iske pare hai lahoo luhan.'YE KISKA LAHOO HAI KAUN MARA'

AAP AAYINAA HAIN ULTA HEE DIKHA SAKTE HAIN,MULK KO DIL SE JARA SACH BHEE BATATE CHALIYE !

RAJ SINH ने कहा…

BHAYEE MERE AZAMGARH ME YAHEE BAT GAIR MUSLIM PATRAKARON KE SAATH HUYEE.hamlavar musalman the.aur jo jehadee khud ko shan se jehadee kah rahe the unhe vah muslim bheed bhole bhale bachche kah rahee thee.

main har hinsa ko asahneeya manta hoon par dono aankhon se dekhna chahta hoon,bina kisi chasme ke aur jo chasmevale hain unka chasma hatana chahta hoon.

desh gahre aur khatarnak vibhajan ka shikar ho raha hai.dikhayen vibhajan kya hai aur kaisa hai.baant kaun raha hai aur kyon.BHEED CHAHE HINDU KI HO YA MUSALMAN KEE BHEED HOTEE HAI AUR USKA BHEED TANTRA HOTA HAI.ANDHA AUR KUTSIT.

बेनामी ने कहा…

पता नहीं, आपको इसमें क्यों अचरज हो रहा है. अपने आसपास देखना आपने बंद कर रखा है क्या ? या देखना नहीं चाहते ? सब जगह तो एक जैसा मंजर है, हर कदम पर.....!

आलोक पुतुल
www.raviwar.com

Anil Pusadkar ने कहा…

भीड की कोई जात नही होती,दहशतगर्द भी बोतल मे बंद जिन्न की तरह होते है,बाहर निकल आने पर कुछ भी कर लो वापस अंदर नही जाते। ये जब-जब बाहर निकलते हैं खून ही पीते हैं और खून का तो रंग एक ही होता है ना,उन्हे क्या पता ये किसका खून है उन्हे तो खून पीने से मतलब होता है।कुछ गलत कह गया हूं तो माफ़ करना।वैसे पानी की मांग कर रहे किसानो के आंदोलन के उग्र हो जाने पर मैं लखौली गांव मे फ़ंस चुका हूं।बहुत ही कठिन होता है भीड से बचना।बस ऐसा लगता है बच जायेण तो पत्रकारिता छोड पान दूकान चला लेंगे,और हां आपने लिखा बहुत सही है,सलाम आपको।

rakhshanda ने कहा…

हमारा देश एक बेहद खतरनाक स्थिति में फँस चुका है, जो कुछ हो रहा है अगर इस पर लगाम नही लगाई गई तो देख लीजियेगा अंजाम अच्छा नही होगा, एक तरफ़ तो बेगुनाह मारे जारहे हैं और दूसरी तरफ़ खुलेआम कत्ल-ऐ-आम करने वाले आजाद घूम रहे हैं...ये सरकार की कमजोरी है, कमजोरी कहें या शायद वो भी यही सब चाहती है, वरना इस तरह बेगुनाहों को कत्ल करने वाले कब के अपना हश्र देख चुके होते लेकिन यहाँ रूल्ज़ ही अजीब हैं...खैर ऐसे हालात में वाकई एक अल्प संखयक पत्रकार का काम जान हथेली पर लेकर करने वाला हो गया है...खुदा ही उनकी हिफाज़त करेगा...

नीलोफर ने कहा…

ब्लाग बहुत अच्छा लगा। लेकिन अपना तआर्रूफ खुद कराते तो बेहतर था। ये दो गुमनाम वकील क्यों लगा रखे हैं।

Unknown ने कहा…

आपके जो हुआ बहुत ही दुखद घटना । भारत को जाति के नाम पर बाटा जा रहा है । आम इंसान को शिकार बनाया जा रहा है जो कि इन सब बातों से दूर है । आखिर क्या किया जायें।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बिगड़ते महौल्म की सही तस्वीर पेश की है
और सिवा दुःख व्यक्त करने के कोई कुछ नहीं कर पा रहा.....अपनी सोच को पुख्ता कर रहे हैं,सत्य तो रो रहा है,लाशों की ढेर पे सो रहा है !

राज भाटिय़ा ने कहा…

भाई हम तो इतना ही कहेगे, की अब घर मै आग लगी है, जितनी जल्दी हो इसे बुझाओ, सब मिल कर, ओर यह आग किसी बाहर वाले ने लगाई है, अगर वक्त रहै अभी भी न इसे काबु मे लिया तो फ़िर ..... ना हम रहेगै, ओर ना तुम ही रहोगै, यहा इस जमीं पर फ़िर से गुलाम रहै गै, ओर गुलाम का कोई धर्म नही होता, इस लिये छोडो यह धर्म की लडाई, ना आप का धर्म छोटा ना मेरा धर्म बडा, अरे हम सब एक ही दाता के है, फ़िर क्यो चिल्लते है मेरा रब बडा मेरा रब बडा, क्या पा लोगे उस रब के खिलोनो को तोड के...... मेरे रब का परचम चाहे ना लहराये, लेकिन मै उस के नाम से कभी भी खुन नही बहाऊगा , क्यो कि मेरा रब इतना कमजोर नही कि एक कपडे के टुकडे के फ़हराने से उस की वाह वाह हो जाये, ओर ना ही इतना निर्दयी है कि मासुमो के खुन से रंगी जमीन देख कर, ओरतो की आबरु लुटती देख कर, लोगो को बेघर करके खुश हो,अगर इस से मेरा दाता खुश हो तो वो मेरा दाता, मेरा रब कहलाने के काबिल नही फ़िर उस मै ओर एक शेतान मै क्या फ़र्क,
आओ हम सब मिल कर अपने अपने रब का नाम रोशन करे, उसे बदनाम ना करे, हमारे गलत काम करने से उसे ठेस पहुचती है, ओर वो हमे कभी भी माफ़ नही करेगा.
धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

फिरकावाराना हरकतों द्वारा व्यापक स्तर पर माहौल बिगाड़ने की कोशिश शुरु हो चुकी हैं । इन ताकतों का मुकाबला मुस्तैदी से करना होगा और प्रमुख तरीका होगा देश की जनता के सामने इनके राष्ट्र-तोड़क तौर-तरीकों और मंसूबों को बेनकाब करना । आपने हिन्दुस्तान टाइम्स के अखबार नवीस की आप-बीती यहां दे कर भला किया। इनसे मुकाबले की पहली शर्त होगी - निर्भय होना ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सारा भारत जल रहा है,
दंगे फसाद रोजमर्रा की जिंदगी बनते जा रहे हैं
ये कोई बड़ी साजिश है
सबको साथ मिल कर ही कम करना होगा

श्रद्धा जैन ने कहा…

hum log chingari par jaa baithe hain
kab koun jawalamukhi ki tarah fat padega koi nahi jaanta
aakrosh bhar raha hai bad raha hai
bhagwan mailk hai

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

एक शेर आपकी पोस्ट को समर्पित करता हूं कि
काश तुम ये जानते कि शहर अंधा हो गया
दरपणों की फेरियां अब तो लगाया ना करो
--योगेन्द्र मौदगिल
yogindermoudgil.blogspot.com
kalamdanshpatrika.blogspot.com
haryanaexpress.blogspot.com

समीर यादव ने कहा…

ये बात तो कुछ इसी तरह की हो गई शहरोज भाई,

ये कश्मकश की जंग है
मैं इधर भी मैं उधर भी हूँ
कर तलाश थक चुका जिसे
वह इधर भी वह उधर भी है

बेनामी ने कहा…

koi kuchh nahi kar sakta...logon ko bhukh aam rojmarra ki jaruraton se bhulane ka isase achha tarika or kya ho sakta hai ki unke wyaktigat ladaai or kuntha ko kisi dange ki aad me nikalwao kyunki isase we tumse roti or nokari nahi mangenge or tum apne rangmahalo me chain se so sakoge...ek sonchi samjhi rananiti ke tahat capitalist or fundamentalist forces kam kar rahi hai...or ham hijron ki tarah dekh rahe hai...mujhe muktibodh yad aata hai???
...sukomal kalpnik tal par nahi hai dwand ka uttar...

सुधांशु ने कहा…

koi kuchh nahi kar sakta...logon ko bhukh aam rojmarra ki jaruraton se bhulane ka isase achha tarika or kya ho sakta hai ki unke wyaktigat ladaai or kuntha ko kisi dange ki aad me nikalwao kyunki isase we tumse roti or nokari nahi mangenge or tum apne rangmahalo me chain se so sakoge...ek sonchi samjhi rananiti ke tahat capitalist or fundamentalist forces kam kar rahi hai...or ham hijron ki tarah dekh rahe hai...mujhe muktibodh yad aata hai???
...sukomal kalpnik tal par nahi hai dwand ka uttar...

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- अल्लामा जमील मज़हरी

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