बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 17 मई 2015

शानी तुम्हें याद करते-करते

होते, तो 82 साल के होते   सुनील यादव की क़लम से ‘शानी’ भाईजान आज आप होते, तो 82 साल के होते। 16 मई, 1933 को जगदलपुर में आपका जन्म हुआ था। देश के सबसे बड़े जिले बस्तर, जो तब एक रियासत हुआ करता था। और जगदलपुर उसकी राजधानी।...
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गुरुवार, 14 मई 2015

बंद कब होगा चश्मे से देखना आतंकवाद

फ़राह शकेब की क़लम से विकराल रूप धारण कर समस्त विश्व के लिए आतंकवाद निश्चित ही चुनौती बन चुका है। देश, समुदाय, जाति, धर्म इत्यादि से हट कर इसकी निंदा की जानी चाहिए। यह इस्लाम के नाम पर हो या हिंदुत्व के नाम पर। जिहाद...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)