बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

विधायक से सांसद बना मुनीश्वर बाबू पर गोलियां चलाने वाला

मुनीश्वर बाबू अपनी लाडली बिटिया
प्रीति (लेखिका) के साथ



स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता

मुनीश्वर प्रसाद सिंह पर उनकी बेटी का संस्मरण-3

प्रीति सिंह की क़लम से

मां-बाप बच्चों के रहते मौसम के बदलते रंगों का कोई असर बच्चों पर नहीं होता। लेकिन जब ये छत न रहे तब अहसास होता है कि गर्मी की कड़क धूप, सर्दी की हाड़ कंपाने वाली ठंड और बरसात की मूसलाधार बारिश कैसे हमारे तन-मन को घायल कर देती है। जब अपने पास हों तो हम उनकी ओर से लापरवाह हो जाते हैं और जब वो दूर चले जाते हैं तो हम उनसे मिलने के लिए ईश्वर से फरियादें करते हैं। आज अगर मुझसे कोई पूछे कि तुम अगले जन्म में क्या बनना चाहती हो, तो मैं बेसाख़्ता बोलूंगी, बाबूजी। मुझे हैरत होती है कि दूसरों की बड़ी-से-बड़ी गलतियां वह कैसे माफ कर देते थे। चाहे वो अपने हों या गैर। उनके अपनों ने ही उन्हें कई बार धोखा दिया। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने ऐसे लोगों से रिश्ता नहीं तोड़ा। बल्कि घर आने पर उनके आतिथ्य सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ी। उनकी ये बात घर के अन्य सदस्यों के साथ मुझे भी बुरी लगती थी। लेकिन उनका कहना था कि अपनों को तो सभी माफ कर देते हैं। लेकिन इंसान वही है जो गैरों के गलत व्यवहार को भी भुला कर उसे क्षमा कर दें। क्योंकि क्षमा करने वाला हर हाल में बड़ा होता है।

चुनाव के बाद दोपहर का सन्नाटा
साल 1995 के गर्मियों के दिन थे। चुनाव खत्म हो गया था और बाबूजी दोपहर में आराम कर रहे थे। लेकिन घर में बच्चों के शोर ने उन्हें जगा दिया और वो दरवाजे पर बैठने चले गए। उनके साथ वहां उनके पार्टी के साथी, वर्तमान में डीलर एसोसिएशन के अध्यक्ष श्रीकांत लाभ, मेरा छोटा भईया और गांव के कुछ और लोग थे। बाबूजी और लाभ चाचा वोटिंग प्रतिशत पर चर्चा कर रहे थे। चुनाव खत्म होने और गर्मी की दोपहर का असर था कि गांव में सन्नाटा पसरा हुआ था। लोग घरों में आराम कर रहे थे। चिलचिलाती गर्मी में सड़क पर कई मोटरसाइकिलें बार-बार आ-जा रही थीं। जिस ओर किसी का ध्यान नहीं गया।

बरसाईं गोलियां, पटके बम
बाबूजी दरवाजे के एकदम सामने वाली कुर्सी पर बैठकर बातें कर रहे थे। वो हमेशा वहीं बैठते थे। उस जगह से दरवाजा सीधा नजर आता था। अचानक दो-तीन गाड़ियों और 8-10 मोटरसाइकिलों पर सवार लोग दरवाजे के सामने की सड़क पर आकर रुक गए और बाबूजी का नाम लेकर उन्हें नहीं हिलने की चेतावनी दी। दरवाजे पर मौजूद लोग बाबूजी को अपनी जगह से हट जाने को कहने लगे। लेकिन उन्होंने कायर की तरह वहां से हटने से इनकार कर दिया और कहा कि गोली चलाना है तो चलाओ। उधर निशानेबाज ने गोली चलाई और इधर मेरे छोटे भाई ने फुर्ती दिखाते हुए बाबूजी की कुर्सी को पीछे से पलट दिया। उन हत्यारों को लगा कि गोली बाबूजी को लगी और वो घर पर अंधाधुंध गोलियां और बम चलाते हुए भाग निकले।

रोने लगे बच्चे, अपराधियों को दौड़ाया युवाओं ने
गोलियों की आवाज सुनकर हमलोग घर के अंदर से दौड़े। घर से निकलकर मैं जब दरवाजे की तरफ भाग रही थी तो मैंने देखा कि बड़े भईया और दीदी बाबूजी को जबरदस्ती पकड़कर अंदर ला रहे थे। सबने मिलकर उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया और मां को दरवाजा नहीं खोलने का कहा। मां को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। क्योंकि घटना के समय वो दूसरे आंगन में सो रही थी और बाबूजी दरवाजा नहीं खोलने पर अंदर से नाराज हो रहे थे। मैं बौखला कर रोने लगी और दरवाजे की ओर जाने लगी। लेकिन गांव के कुछ लोगों ने हम सभी बच्चों को एक कमरे में बंद कर दिया। उधर बड़े भईया और दीदी उनलोगों के पीछे बहुत दूर तक दौड़े। लेकिन वो लोग घटना को अंजाम देकर आराम से चलते बने। हमारे एक ड्राईवर रंजीत ने तो बिना किसी हथियार और साथी के ही कई किलोमीटर तक उनलोगों का पीछा गाड़ी से किया। लेकिन एक जगह जाकर वो लोग रंजीत को चकमा देकर आगे निकल गए। गांव के एक बुजुर्ग पंडित जी ने भी मोटरसाइकिल सवारों का पीछा किया और मोटरसाइकिल का कैरियर पकड़कर लटक गए। लेकिन कुछ दूर जाने के बाद वो गिर पड़े और अपराधी आराम से चलते बने।

खदेड़ कर पकड़ाबाबूजी ने बचाई उनकी जान
गोलियों और बमों की आवाज से तब तक गांववाले आ जुटे थे। सबने मिलकर 4-5 मोटरसाइकिल वालों को खदेड़ कर पकड़ा। हालांकि तब तक शॉर्प शूटर भाग चुका था। उस शॉर्प शूटर अशोक सम्राट को खासतौर पर दूसरे जिला से बाबूजी पर गोली चलवाने के लिए बुलावाया गया था। इस कांड को अंजाम देने के पीछे उस बाहुबली के मन में ये खौफ था कि जब तक ये बुजुर्ग जीवित रहेंगे वो यहां से चुनाव नहीं जीत पायेगा। उधर.. पकड़े गए मोटरसाइकिल सवारों को जब गांववाले मारने लगे, तो बाबूजी ने लोगों को उनलोगों को न मारने की अपील की और शांत रहने को कहा। बाबूजी ने पकड़े गए युवकों को गुमराह बताकर गांववालों के गुस्से को शांत किया और उन्हें सबके आक्रोश से बचा लिया। अगर उस दिन बाबूजी ऐसा नहीं करते तो गांववाले उनलोगों को पीच-पीटकर मार डालते।

एफआईआर दर्ज करवाने से किया मना
देखते-ही-देखते पुलिस के आलाधिकारी मौके पर पहुंच गए। बाबूजी के अंगरक्षकों को भी डांट पड़ी। लेकिन बाबूजी ने उनका बचाव किया। पुलिस के आलाधिकारियों के सामने भी बाबूजी ने किसी के व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने से मना कर दिया। हालांकि घटना किसने और क्यों की थी। ये बात हर कोई जानता था। लेकिन बाबूजी ने किसी का नाम नहीं लिया। नाम नहीं लेने के पीछे कोई डर नहीं था। बल्कि उन्होंने इस मामले को इतना तूल देना ही बेकार कहा। वो नहीं चाहते थे कि ऐसे लोगों को भी पुलिसिया कार्रवाई को झेलना पड़े जिन्होंने उनके साथ छल किया है। ऐसे थे मेरे बाबूजी। हर किसी को माफ कर देने वाले और मुंह से एक बददुआ तक नहीं देने वाले। वो सब कुछ ऊपरवाले पर छोड़ देते थे।

विधानसभा में उठा मामला, सुरक्षा लेने से इंकार
हालांकि इस घटना ने काफी तूल पकड़ा। रेडियो, अखबार और टीवी के साथ-साथ ये मामला एक बार फिर विधानसभा में पुरजोर तरीके से उछला। बाबूजी को स्कॉर्ट पार्टी जबरदस्ती दी गई। क्योंकि हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने किसी भी तरह की सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया था। लेकिन इस घटना ने उनके अंतर्मन पर गहरा घाव किया। जिस गांव और क्षेत्र को उन्होंने जान से ज्यादा चाहा था, जिसके विकास के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व झोंक दिया था, जिस क्षेत्र के लिए उन्होंने संसद जाने से इनकार कर दिया था। उन्हीं अपनों ने उनके साथ विश्वासघात किया। ये दर्द वो अपने सीने में दबाकर बैठ गए।

राजनीति से मोहभंग, गीता बनी सहारा
दो-एक दिन में ही वो पटना लौट आये। इस मुश्किल घड़ी में उनका संबल बनी गीता। कई दिनों तक चुपचाप उन्होंने गीता का अध्ययन किया और खुद को संभाला। इस पूरी घटना में उनके कई विश्वस्त साथियों का नाम सामने आया जिन्होंने इस कांड की योजना बनाई थी। अपनों का ये धोखा उनके मन में इतने गहरे चुभ गया कि बाबूजी ने धीरे-धीरे खुद को सक्रिय राजनीति से दूर कर दिया। पद और पैसे की लालसा तो उनके मन में कभी थी ही नहीं। इस घटना ने उनके मन में संसार के प्रति विरक्ति भी पैदा कर दी।

बाहुबली नेता ने तीन बार मांगी माफी
इधर, घटना के बाद बाबूजी पर गोलियां चलवाने और उन्हें मारने के लिए शॉर्प शूटर को बुलवाने वाले बाहुबली ने तीन बार बाबूजी के पैरों को पकड़ कर उनसे माफी मांगी। हर बार बाबूजी ने उन्हें यही कहा कि मैंने तो तुम्हें उसी वक्त माफ कर दिया था। अब भी तुम्हें माफ कैसे कर सकता हूं। क्योंकि तुम्हारे लिए तो मैं उसी वक्त मर गया था जब तुमने ऐसी बात सोची थी। ये जवाब सुनकर एयरकंडीशंड कमरे में भी उस शख्स के चेहरे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा रही थीं। आज वो इंसान बिहार का बड़ा नेता है और विधानसभा से अब संसद की छलांग लगा चुका है।

यहां ये बताना जरुरी है कि जब बाबूजी 1990 से लेकर 1995 तक विधायक थे। इस बीच में लगातार उन्हें धमकी भरे पत्र और फोन आ रहे थे। लेकिन इन सबके बावजूद बाबूजी ने किसी भी तरह की सरकारी सुरक्षा लेने से साफ इंकार कर दिया था। गोलयां चलने के बाद बाबूजी के कई साथियों ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया। विधानसभा अध्यक्ष और कई अन्य नेताओं ने कई बार बाबूजी को अंगरक्षक साथ रखने को कहा। लेकिन उन्होंने हर बार मना कर दिया। हालांकि घर, मित्रों और शुभचिंतकों के बार-बार आग्रह के आगे बाबूजी झुक गए और अपने साथ दो अंगरक्षक रखने के लिए तैयार हो गए।


अवांतर उवाच

ईमानदार पिता की संतान होना
हर कदम पर ईमानदारी की कीमत नेताओं के परिवारों को ही देनी होती है और बदले में उन्हें समाज का तिरस्कार मिलता है। ये सुनने को मिलता है कि जिन्होंने अपने लिए कुछ नहीं किया वो क्या समाज के लिए करेंगे? यहां ‘कुछ करने’ का तात्पर्य सामने वाले को रुपये कमाने देने की छूट से होता है। मैं कई ऐसे विधायकों और सांसदों को जानती हूं जिनके बच्चे आज जैसे-तैसे जीवन गुजारने को विवश हैं। क्योंकि उनके पिता ने ईमानदारी का जीवन जीना पसंद किया। उन्होंने न कोई संपत्ति बनाई, न ही अपने बच्चों को अच्छी जगह पढ़ा सके। बच्चों के लिए कोई सरकारी पद भी नहीं जुगाड़ किया। कई ईमानदार नेताओं की बेटियों की अच्छे घर में शादी महज इसलिए नहीं हुई क्योंकि वो बड़ी और मोटी रकम देने में असमर्थ थे।
कर्तव्य लाइक से शुरू कमेंट तक ख़त्म
ऐसे परिवार किस स्थिति में हैं, ये जानने की फुर्सत किसको है? लेकिन दीपिका पादुकोण ने कौन सी ड्रेस पहनी है और विराट कोहली किसके साथ घूम रहे हैं? ये जानना अब ज्यादा जरूरी है। यहां भगत सिंह को कोने में फेंक दिया जाता है और उनके खिलाफ गवाही देने वाले परिवार को सिर-आंखों पर बिठाया जाता है। हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद की विधवा दूसरों के घरों में जूठे बर्तन साफ करती हैं। फेसबुक पर हम उनके फोटो को लाइक कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। याद रखियेगा जो वक्त पड़ने पर दूसरों के लिए खड़ा नहीं होता। उसकी जरूरत के समय कोई उसके लिए भी खड़ा नहीं होता। क्योंकि दुनिया ईमानदारों से कम और बेईमानों से ज्यादा भरी हुई है।
तो क्या ये अच्छा नहीं होगा कि हम सब मिलकर ईमानदारी और बेईमानी की इस खाई को कम करने की कोशिश करें? सोचिए और अपनी ओर से एक छोटी सी पहल कीजिए। तभी दुनिया हमारे सपनों जैसी सुंदर बन सकेगी।

(रचनाकार-परिचय:
जन्म: 20 मई 1980 को पटना बिहार में
शिक्षा: पटना के मगध महिला कॉलेज से मनोविज्ञान में स्नातक, नालंदा खुला विश्वविद्यालय से पत्रकारिता एवं जनसंचार में हिन्दी से स्नाकोत्तर
सृजन: कुछ कवितायें और कहानियां दैनिक अखबारों में छपीं। समसायिक विषयों पर लेख भी
संप्रति: हिंदुस्तान, सन्मार्ग और प्रभात खबर जैसे अखबार से भी जुड़ी, आर्यन न्यूज चैनल में बतौर बुलेटिन प्रोड्यूसर कार्य के बाद फिलहाल आकाशवाणी में अस्थायी उद्घोषक
संपर्क: pritisingh592@gmail.com)






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हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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