बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 30 अप्रैल 2015

माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया

  कितने बदनसीब हैं जो करते हैं मां को नाराज़ वसीम अकरम त्यागी की क़लम से अक्सर शनिवार को मैं अपने गांव चला जाता हूं। इस बार भी गया था। बीच में हाशिमपुरा पड़ गया वहां लोगों से मिलने के लिये रुक गया, फिर शाम को चौधरी...
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बुधवार, 29 अप्रैल 2015

चाहती तुम्हारी प्रेम कविताओं में शब्द भर होना

प्रोमिला क़ाज़ी की कविताएं   1. मै तुम्हें प्रेम करना चाहती थी कुछ इस तरह कि तुम झूठ और सच का समीकरण इस रिश्ते में भुला देते पाप और पुण्य का झंझट कहीं पर दबा आते तुम न वो बनते, न यह बनते बस सहज...
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मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

विधायक से सांसद बना मुनीश्वर बाबू पर गोलियां चलाने वाला

मुनीश्वर बाबू अपनी लाडली बिटिया प्रीति (लेखिका) के साथ स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता मुनीश्वर प्रसाद सिंह पर उनकी बेटी का संस्मरण-3 प्रीति सिंह की क़लम से मां-बाप बच्चों के रहते मौसम के बदलते रंगों का कोई असर बच्चों...
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सोमवार, 20 अप्रैल 2015

ताल ठोक के बोलूंगी मर्द से बना दूंगी भू्रण

दामिनी यादव की 12 कविताएं ताल ठोक के आज फिर तुमने मेरा बलात्कार कर दियाऔर मान लिया कितुमने मेरा अस्तित्व मिटा दिया हैक्या सचमुच?तुम्हें लगता है कि तुम्हारी इस हरकत परमुझे रोना चाहिए,पर देखो, देखोमेरी हंसी है किरोके नहीं रुक रही है।मैं...
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