बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

किसको राहत देती हैं संघ की बातें

चित्र: गूगल से साभार

हमारी अतियों से माहौल और बिगड़ेगा ही
 
भवप्रीतानंद की क़लम से
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने जब हिंदू महिलाओं को कितने बच्चे जन्म दें के मुद्दे पर बीजेपी के कुछ सांसदों को अघोषित रूप से फटकार लगाई थी तो यह भान स्वभाविक था कि चीजों को तार्किक नजरिए से देखने की कोशिश की जा रही है। उसी के आसपास दिल्ली में चर्चों पर हुए हमलों के विरोध में पीएम नरेंद्र मोदी की स्पष्ट टिप्पणी भरोसा जगाने वाली लगी थी। पर पता नहीं क्यों बार-बार कुछ मुद्दों पर, जिसपर बोलने की आवश्यकता नहीं है और जिसका कोई तार्किक आधार हम प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं उसपर कुछ बेतुका बोल दिया जाता है। मदर टेरेसा में मन में लोगों को  ईसाई बनाने की भी मंशा थी, इसे पुष्ट करने के लिए हमारे पास कोई तथ्यात्मक सबूत नहीं है। खुद मोहन भागवत  के पास ऐसा कोई सबूत हो तो वे बताएं, और साबित करें। बाद में जब मीडिया में ऐसे बयान मुद्दे के रूप में व्याख्यायित होते हैं तो सफाई दी जाती है कि बयान को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया। यही सफाई बोलते  वक्त ध्यान में रखी जाए तो ऐसी नौबत ही नहीं आएगी। इससे होता कुछ नहीं है पर ऐसे-ऐसे वक्तव्यों को एक तार में जोड़कर यह साबित करने का  प्रयास किया जाता है कि आरएसएस की सोच इससे आगे बढ़ी ही नहीं है। अगर किसी पार्टी या संगठन में समस्या समाधान करने की सम्यक सोच है तो वह कश्मीर समस्या का समाधान क्यों नहीं कर देते हैं जो सर्वमान्य हो। बार-बार उन चीजों को कुरेद कर जिसका कोई इतिहास हमारे पास उपलब्ध नहीं है, उसपर बयानबाजी से क्या होगा।

जब मुसलामानों और ईसाइयों के लिए घर वापसी वाला बेतुका शोर वातावरण में घुल रहा है तो मोहन भागवत को यह स्पष्ट रूप से कहना चाहिए कि हिंदू धर्म में वह मुसलमान और ईसाई बने हिंदुओं को वापस लाकर ब्रह्मण का दर्जा देंगे। क्योंकि वह भागे ही इसलिए थे कि उन्हें हिंदू धर्म की अतियां जीने नहीं दे रही थीं। लतमारा की श्रेणी में रखे हुई थी। मैला ढुलवाती थी। गांव के अंतिम छोर पर उसके रहने के लिए झुग्गी मुकर्रर थी। उसकी छाया तक ब्रह्मण-राजपूत अपनी जमीन में पडऩे नहीं देता था। कोई भी हिंदुवादी संगठन खुलकर, इतिहास को ठीक से पढ़कर बताए कि किसी देशकाल में बड़ी संख्या में ब्रह्मण और राजपूतों ने धर्म परिवर्तन किए हैं।
सत्ताधारी पार्टी भाजपा के लिए यह सतत प्रक्रिया की तरह हो जााएगा कि कोई संघी जबतब कुछ बोल देगा और केंद्र सरकार यह कहकर किनारा करते रहेगी कि इस वक्तव्य का सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। आप से दिल्ली में करारी हार के बाद प्रधानमंत्री चर्चों के हमले पर बोलने के लिए मजबूर हुए नहीं तो शायद ही उनसे इस तरह की भाषा की अपेक्षा थी।  पता नहीं अपनी इस भाषा पर वह कालांतर में कायम रह भी पाएंगे या नहीं। मीडिया से वह जिस तरह की दूरियां बनाकर रखते हैं, वह चीजों को भड़काउ बनने का वक्त दे देती हैं। गुजरात के गोधरा कांड के बाद जो उन्होंने मीडिया से परहेज किया वह पीएम बनने तक जारी है। यह बहुत खतरनाक इस मायने में  है कि राष्ट्रीय स्तर के संवेदनशील मुद्दों पर प्रधानमंत्री का वक्तव्य ही मायने रखता है, क्योंकि उसे ही पार्टी लाइन कहा जाता है।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी बहुत कम लाइम लाइट में दिखते हैं। जरूरी होने पर ही बोलते और दिखते हैं। लेकिन उनका मन भी संघी आग्रह  कहां छोड़ पाता। एक आरोपी बलात्कारी आसाराम बापू को वह पूज्य संत कहने में एक जरा हिचक महसूस नहीं करते हैं तो शक होता है कि सत्ता के इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठे लोग क्या देश की संप्रभुतता से न्याय कर पाएंगे। उसकी विविध सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रख पाएंगे। 

अभी तो सत्ता के एक साल भी पूरे नहीं हुए हैं। ऐसी नकारात्मक चीजों से उन तत्वों को बढ़ावा ही मिलेगा जो दंगे करने में या फिर अराजक स्थिति पैदा करने में सहायक होते हैं। कांग्रेस ने भ्रष्टाचार में जिस तरह से अराजकता की स्थिति पैदा कर दी थी, वैसी ही स्थिति भाजपा के शासनकाल में समाज के स्तर पर बलवती होंगी तो इसके कई खतरनाक परिणाम हमें भुगतने पड़ेंगे। आरएसएस की धर्म से जुड़ी बयानबाजी में वह तत्व निराधार रूप से संपुष्ट होते रहते हैं कि मैं इस देश का असली वारिस, बाकी सब बाहरी। बाहरी को अगर रहना है तो मैंने जो तय किया उसके तहत रहो।
किसी को कोई शक नहीं पालना चाहिए, कांग्रेस की दुर्गति का मुख्य कारण है कि वह भ्रष्टाचारी और कालाबाजारी पर मजबूती से काबू नहीं रख पाई। उसने सत्ता को बेजा इस्तेमाल होने दिया। मनमोहन सिंह को कठपुतली की स्थिति में ला दिया। लगातार दस वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद अगर भ्रष्टाचारी और कालाबाजारी पर अंकुश लगा लिया गया होता तो देश की प्रगति की रफ्तार दूनी तो निश्चित ही होती। भाजपा के शासन का मूल्यांकन जल्दबाजी होगी, क्योंकि अभी एक वर्ष भी पूरे नहीं हुए हैं, पर एक जिस मोर्चे पर अभी से वह कमजोर दिखाई दे रही है वह है उसका संघ से, उसके विचारों से लाग-लपेट। बार-बार संघ की ओर से और पार्टी की ओर से इस मद्देनजर सफाई दी जाती है कि दोनों एक-दूसरे के कार्यों में दखल नहीं देते हैं। पर जब बिना लगाम की बातें निकलती हैं तो समाज में उसके बहुत अच्छे अर्थ नहीं जाते। और जब कोई एक ही प्रकृति की चीजें बार-बार होती रहती हैं तो वह कई मुश्किलें खड़ी करती हैं। कें्रद के लिए यह स्थिति असमंजसपूर्ण होती है। मेक इन इंडिया को यह सफाई देनी पड़ी है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणी से उनका कोई लेनादेना नहीं है। कल को गृहमंत्री जी भी सफाई देंगे।

अब जिला स्तर पर, राज्य के स्तर पर होने वाले हिंदू सम्मेलन को अधिक मीडिया कवरेज इसलिए मिलेगा क्योंकि भाजपा सत्ता में है। सम्मेलन करने में कोई गड़बड़ी नहीं है। पर वहां से कोई ऐसी  बात निकलकर समाज के आखिरी छोर तक नहीं पहुंचनी चाहिए जो बेवजह लोगों को उत्तेजित करती है। कोई भी धर्म, मथकर ही दुरुस्त और तार्किक होता है। विशुद्ध आस्था को भी तार्किकता की कसौटी पर कसा होना चाहिए, नहीं तो मुश्किलें पैदा होती हैं। इराक में आईएस की गतिविधियां इस्लाम की व्याख्या नहीं है। इस्लाम के नाम पर वह रोटी इसलिए सेंक पा रहे हैं कि चीजें सामाजिक स्तर पर बहुत विद्रूप रूप में पहुंची और लोगों को उत्तेजित करती गईं। और अब वह काबू से बाहर हो गईं हैं। किसी को जला देना, किसी को काट देना, मौत की सजा देने से पहले यह पूछना कि आपको मौत से पहले कैसा महसूस हो रहा है आदि जघन्यतम स्थितियां कोई एक दिन की उपज नहीं है। विद्रूप चीजों और विचारों के हावी होने और समाज में उसके  व्यवस्थित रूप ले लेने का कारण यह नासूर पैदा हुआ। हमें इससे बचना है किसी भी कीमत पर। फरवरी-मार्च के इस मौसम में अभी फुलवारी में एक साथ कई फूल खिले होंगे,  अपना-अपना स्पेस लेकर। हमें विचारों को स्पेस देना होगा। ऊंचे पद पर बैठे लोगों को न तो लट्ठमार भाषा शोभा देती है और न ही लट्ठमार स्वभाव।

 













(लेखक-परिचय:
जन्म: 3 जुलाई, 1973 को लखनऊ में
शिक्षा : पटना से स्नातक, पत्रकारिता व जनसंचार की पीजी उपाधि, दिल्ली विश्वविद्यालय से
सृजन : देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लेख एवं कहानियां
संप्रति: दैनिक भास्कर के रांची संस्करण के संपादकीय विभाग से संबद्ध
संपर्क : anandbhavpreet@gmail.com )

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1 comments: on "किसको राहत देती हैं संघ की बातें "

शेरघाटी ने कहा…

आंबेडकरवादी चिंतक कंवल भारती ने मेल पर अपनी प्रति क्रिया भेजी है:
मान लिया मदर टेरेसा धर्मपरिवर्तन कराती थीं. तो ईसाईयों की जनसंख्या क्यों नहीं बढ़ी?
उनका पता है kbharti53@gmail.com

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