पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे
सैयद एस.तौहीद की पेशकश
नए विकल्पों की तलाश में जब जांनिसार अख़्तर भोपाल से बंबई आए तो पत्नी सफ़िया वहीँ रुक गयी थी. आपके साथ आपके बच्चे सलमान एवं जावेद अख़्तर भी रह थे. सफ़िया हमीदिया कालेज में दी जा रही सेवाओं को जारी रखना चाहती थी. आप वहां पढाया करती थी. आप जांनिसार से बराबर खतो-किताबत करती रहती थी. कभी-कभार तो हफ्ते में दो खत लिखना हो जाता था. इन ख़तो में जज्बा-ए-मुहब्बत एवं हिम्मत बढ़ाने का दम था. अभी जान साहेब को रवाना हुए एक बरस भी नहीं गुजरा था जब सफ़िया सख्त बीमारी की शिकार हो गई. आपको गठिया एवं कर्क ने घेर रखा था. बीमारी से न घबराते हुए सर पड़ी मुसीबत का डट कर सामना किया. भोपाल में रहते हुए आप पर कई इम्तिहान आए लेकिन हिम्मत नहीं हारी. मुश्किल भरे उन दिनों लेखा-जोखा इन खतों में मिलेगा. उनसे गुजरते हुए लिखने वाले की अदबी जबान का का कायल होना होगा .इसे गमगीन ही कहा जाएगा कि सफ़िया के खतो को सिर्फ निजी ग़मों व परेशानियों का आईना माना गया. सफ़िया सिराजुल हक चालीस दशक की पढ़ी लिखी सेक्युलर महिला थी.प्रगतिशील विचारधारा को लेकर चलने वाली साफिया ने अपनी मर्जी का हमसफर चुना. फिर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आप मजाज की बहन थी. अदब में खत-किताबत को ग़ालिब से शुरू माना जाएगा क्योंकि आपने खतों को रचना की शिद्दत से लिखा.इनमें शायरी एवं गज़ल की गहराई का एहसास होता है. खतों में फिराक एवं वस्ल के पहलू के साथ मुश्किलों का हिम्मत से सामना करने का जज्बा मिलता है. साफिया के उन खतों में से एक ख़त आपके लिए..
(रचनाकार-परिचय:
जन्म: पटना बिहार
शिक्षा : जामिया मिल्लिया से उच्च शिक्षा
सृजन : सिनेमा पर अनेक लेख . फ़िल्म समीक्षाएं
संप्रति : सिनेमा व संस्कृति विशेषकर हिंदी फिल्मों पर लेखन।
संपर्क : passion4pearl@gmail.com )
सैयद एस.तौहीद को हमज़बान पर पढ़ें
सैयद एस.तौहीद की पेशकश
नए विकल्पों की तलाश में जब जांनिसार अख़्तर भोपाल से बंबई आए तो पत्नी सफ़िया वहीँ रुक गयी थी. आपके साथ आपके बच्चे सलमान एवं जावेद अख़्तर भी रह थे. सफ़िया हमीदिया कालेज में दी जा रही सेवाओं को जारी रखना चाहती थी. आप वहां पढाया करती थी. आप जांनिसार से बराबर खतो-किताबत करती रहती थी. कभी-कभार तो हफ्ते में दो खत लिखना हो जाता था. इन ख़तो में जज्बा-ए-मुहब्बत एवं हिम्मत बढ़ाने का दम था. अभी जान साहेब को रवाना हुए एक बरस भी नहीं गुजरा था जब सफ़िया सख्त बीमारी की शिकार हो गई. आपको गठिया एवं कर्क ने घेर रखा था. बीमारी से न घबराते हुए सर पड़ी मुसीबत का डट कर सामना किया. भोपाल में रहते हुए आप पर कई इम्तिहान आए लेकिन हिम्मत नहीं हारी. मुश्किल भरे उन दिनों लेखा-जोखा इन खतों में मिलेगा. उनसे गुजरते हुए लिखने वाले की अदबी जबान का का कायल होना होगा .इसे गमगीन ही कहा जाएगा कि सफ़िया के खतो को सिर्फ निजी ग़मों व परेशानियों का आईना माना गया. सफ़िया सिराजुल हक चालीस दशक की पढ़ी लिखी सेक्युलर महिला थी.प्रगतिशील विचारधारा को लेकर चलने वाली साफिया ने अपनी मर्जी का हमसफर चुना. फिर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि आप मजाज की बहन थी. अदब में खत-किताबत को ग़ालिब से शुरू माना जाएगा क्योंकि आपने खतों को रचना की शिद्दत से लिखा.इनमें शायरी एवं गज़ल की गहराई का एहसास होता है. खतों में फिराक एवं वस्ल के पहलू के साथ मुश्किलों का हिम्मत से सामना करने का जज्बा मिलता है. साफिया के उन खतों में से एक ख़त आपके लिए..
भोपाल
फरवरी 1952
बेशकीमत मुहब्बत
आपका ख़त मिला .मेरे बारे में इस कद्र फिक्र ना किया करें. आपने एक हिम्मत वाली ईरादे की पक्की लड़की को हमसफर चुना. तमाम इम्तिहान के बावजूद सफ़िया ने अब भी पुराना जज्बा नहीं खोया. हालांकि कभी कभी जिन परेशानियों से गुजर रही होती उनके बारे में बात निकल जाती है.जानती हूं आप भी परेशान हो जाते होंगे.लेकिन क्या करूं उन बातों को आपसे ने कहूं तो फिर किससे. दिसंबर में सेहत थोड़ी दुरुस्त थी .लेकिन अब तकलीफ फिर वही पहले की तरह आ रही. जितनी देरी तक मुमकिन होगा खुद से इन्हें संभाल कर चलूंगी.लेकिन इस सिलसिले में हमें कोई फैसला जल्द लेना होगा.इलाज की खातिर वक्त बे वक्त बराबर आपको आना होगा. कोई दूसरी सुरत नजर नहीं आती. आप ने कहा कि बम्बई छोड़कर आएंगे तो काफी नुक्सान होगा,रोजगार का सवाल खड़ा हो जाएगा. बेरोजगारी अपने साथ नई मुसीबतें लेकर आती है.उस चीज को लेकर आप जरूरत से ज्यादा फिक्रमंद हो जाते हैं. इन हालात में क्या कहना ? आप ही बताएं! कुल मिलाकर अब यही मालुम हो रहा कि इन हालातों से आपको समझौता करना होगा. मेरे खातिर जिस तरह आपके काम के साथ मुझे करना है. बच्चो की खातिर हमें मिलकर चलना होगा .हमें उनकी परवरिश में कमी नहीं रखनी.मां-बाप के नाते उनकी उम्मीदों साथ नाइंसाफी नही की जाएगी. इस 12 फरवरी तक आप यहां फुर्सत लेकर आएं ताकि हम परिवार के साथ थोडा ज्यादा वक्त गुजारें. दो हफ्ते
मुनासिब होंगे.
मिसदाक़ के आने पर जादू बहन से नोटबुक में एक कहानी लिखवाए बिना उसे रिहा नहीं करता.फिर वो उस लिखे के उपर अपनी बात रखता. कहानी को लेकर जादू की बातें मिसदाक़ को सोचने पर मजबूर कर जाती हैं. भाई की जहीन नवाजी के लिए उसके पास लफ्ज नहीं होते.अब तो जनाब ओवेस भी स्कुल जा रहे. जादू छोटे का खूब ख्याल रखा करता है. कल बीते दिन की बात सुनें कि ओवेस तीन गलतियों में उलझ गया था. एक जिसे समझाय जाना बेहद जरुरी था जिसमे वो स्कूल की घंटी बजने का मायने सिर्फ घर वापसी समझ रहा था. आपकी घर आमद की खबर को लेकर बच्चों में बेइंतेहा खुशी है. ऐसा क्या ख़्वाब दिखा दिया इन्हें कि रातों में नींद नहीं आती. हो सके तो एक खत इनके नाम भी लिख भेजिए. एक मरहले पर आपको इन बच्चों को भी लिखना चाहिए. अख्तर.. बीमारी को लेकर पूरी जनवरी परेशान रही.इंतेखाब की गहमा-गहमी ने अलग चिडचिडा बना दिया. बीमरी रह-रहकर तकलीफ का सबब हो रही. नहीं मालुम आगे क्या पेश आए. उस दिन का हमें मिलकर सामना करना है. इस वक्त कालेज में हूं तालिबों का आना जाना लगे होने से बातें छुट रही हैं. इसलिए सोचती हूं बाक़ी बाद के लिए मुनासिब होगा. घर पर इस तरह की परेशानी नहीं होगी.. बच्चे भी स्कुल में होंगे. सो वहीँ
पर इत्मिनान से आगे लिखूंगी. तब तक के लिए हजारों सलाम . भोपाल आमद की तारीख लिख भेजिए....
आपकी
सफ़िया
(रचनाकार-परिचय:
जन्म: पटना बिहार
शिक्षा : जामिया मिल्लिया से उच्च शिक्षा
सृजन : सिनेमा पर अनेक लेख . फ़िल्म समीक्षाएं
संप्रति : सिनेमा व संस्कृति विशेषकर हिंदी फिल्मों पर लेखन।
संपर्क : passion4pearl@gmail.com )
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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी