बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 31 अगस्त 2014

कभी सूली नफ़रत की कभी फंदा हिफ़ाज़त का

धीरेन्द्र सिंह की क़लम से 1.  उम्र भर बस यही इक उदासी रही आपके दीद को आँख प्यासी रही तुम गये बाद जाने के बस दो यही बेक़रारी रही,  बदहवासी रही याद करने से क्या कोई आये भला? एक उम्मीद थी जो ज़रा सी रही मिस्ले- नामा- ए-...
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शनिवार, 30 अगस्त 2014

रूट्स की खोज में झारखंड पहुंचा युवा फिल्मकार रंजीत उरांव

 कुडुख में बनाई पहली फीचर फिल्म पेनाल्टी कार्नर जब आप अपने परिवार और पुरखों के बारे में बात करते हैं, तो असल में आप पृथ्वी के सारे इंसानों के बारे में बात कर रहे होते हैं। ऐसा विश्वप्रसिद्ध उपन्यास ‘रूट्स’ के आदिवासी लेखक एलेक्स...
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बुधवार, 27 अगस्त 2014

ऋषभ @ कविताएं संगीत के दूसरे सात स्वर की तरह

अजित कुमार सिन्हा की कविताएं याद हवा के झोंके  की तरह तुम आये मेरे जीवन में कर दिया खुशबू से सराबोर मुझे उड़ा दिया हिचकिचाहट के परदे को हवा के झोंके की तरह बस गयी तुम्हारी महक साँसों में स्पर्श से तुम्हारे थरथराता रहा जिस्म छेड़ते...
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मंगलवार, 26 अगस्त 2014

पटना में कामकाजी स्त्री

तकिया और बस के सिवा कौन है उसका साथी  प्रीति सिंह की क़लम से सुबह का धुंधलका. रात की कालिमा को परे धकेलते हुए सूरज की हल्की-हल्की रोशनी बिखरने को तैयार थी. चिड़ियों का झुंड शोर मचाते हुए दाने की तलाश में निकल पड़ा हो. ओस की...
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शनिवार, 16 अगस्त 2014

संजय शेफर्ड की कविताएं

टूटने का मर्म    यक़ीनन जब भी कुछ टूटता है हमारे अंदर सबसे पहले यक़ीन टूटता है खुद का का, खुद से विश्वास करना मुश्किल हो जाता है स्वयं पर, स्वयं से महज़ एक बार टूटने के बाद से ही हमारा अनुभव...
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बुधवार, 13 अगस्त 2014

चरवाहा से कवि तक की यात्रा

संजय शेफर्ड का आत्मकथ्य लेखन और पाठन का सफ़र जीवन में काफी देर से जुड़ा, लेकिन घुम्मकड़ी की प्रवृति मुझमें जन्म के साथ ही मौजूद थी। उस समय जब लोगों का वक़्त लोगों की अंगुली पकड़कर उम्र के साथ- साथ चलता है। मेरे वक़्त ने मेरी उम्र...
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सोमवार, 11 अगस्त 2014

दावेदारी फिर अनुरोध

रजनी त्यागी की कविताएं तुम्हारी सदाशयता पर शक नहीं तुमने कहा, सुरक्षा लड़की ने सुना, क़ैद क्या सचमुच तुमने सुरक्षा कहा या सचमुच तुमने क़ैद कहा था नहीं ! तुम्हारी सदाशयता पर शक ठीक नहीं क्योंकि तुमने लड़की को धन भी कहा था और वो भी पराया फिर...
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रविवार, 10 अगस्त 2014

स्त्री को लड़ाई खुद लड़नी होगी

कानून पीड़िता को सुरक्षा कम देता है, डराता है अधिक फ़रहाना रियाज़ की क़लम से   टीवी चैनल्स और अखबारों पर नज़र डाली जाये तो आधे से ज़्यादा स्पेस महिला शोषण और अत्याचारों से भरे पड़े हैं | महिलाओं के साथ हो रहे इन हादसों को...
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गुरुवार, 7 अगस्त 2014

चटख़ धूप की दबीज़ चादर

  मृदुला शुक्ला की कविताएंपिताचौतरफा दीवारें थीभीतर घुप्प अँधेराएक खिड़की खुलीकुछ हवा आईढेर सारी रौशनीतुम चौखट हो गएआधे दीवार में धंसे सेआधे कब्जों में कसे सेये जो उजाला है नाखिडकियों के नाम हैचौखट तो अब भीडटी है दीवारों के सामनेअंधेरों...
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बुधवार, 6 अगस्त 2014

हवा में लहू की गंध है

शायक आलोक की कविताएं 1. एक पेड़ जो बूढा हो गया है आँधियों में जिसके उखड़ जाने का खतरा है जो हवाओं में चिंयारता है काठ कठोर आवाज़ में उस पेड़ के लिए लिखता हूँ मैं कविता मेरी चिड़िया बेटी गुनगुनाती है उसे. 2. विचारधारा को तुमने खून की...
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