शायक आलोक की कविताएं
1.
एक पेड़ जो बूढा हो गया है
आँधियों में जिसके उखड़ जाने का खतरा है
जो हवाओं में चिंयारता है काठ कठोर आवाज़ में
उस पेड़ के लिए लिखता हूँ मैं कविता
मेरी चिड़िया बेटी गुनगुनाती है उसे.
2.
विचारधारा को तुमने खून की तरह रखा
खून खौलता था
ठंडा होता था
जम जाता था खून
खून पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता था
जबकि यह सब बस कहने की बातें थीं
तुम्हें रखना था विचारधारा को पानी की तरह
खौला सकते थे पानी
ठंडा कर सकते थे
जमा कर बना सकते थे बर्फ
काम के जरुरी रंग भी मिला सकते थे.
3.
तुम्हारे समय का घाव
मेरे समय पर बचा हुआ दाग है
दाग में है तुम्हारे घाव की स्मृति
तुम्हारी स्मृति बचाऊं या कुरेद
लौटा लाऊं तुम्हारा समय
तय करो पिता !
4.
मेरी चाय को तुम्हारी फूंक चाहिए सादिया हसन
ये चाय इतनी गर्म कभी न थी
इसकी मिठास इतनी कम कभी न थी.
मैं सूंघता हूँ मुल्क की हवा में लहू की गंध है
कल मेरे कमरे पर आये लड़के ने पूछा मुझसे
कि क्रिया की प्रतिक्रिया में पेट फाड़ अजन्मे शिशु को मार देंगे क्या
बलात्कार के बाद लाशें फूंक जला देंगे क्या
हम दोनों फिर चुप रहे सादिया हसन
हमारी चाय रखी हुई ठंडी हो गई.
हम फूलों तितलियों शहद की बातें करते थे
हम हमारे दो अजनबी शहर की बातें करते थे
हम चाय पर जब भी मिलते थे
बदल लेते थे नजर चुरा हमारे चाय की ग्लास
पहली बार तुम्हारी जूठी चाय पी
तो तुमने हे राम कहा था
मेरा खुदा तुम्हारे हे राम पर मर मिटा था.
पर उस सुबह की चाय पर सबकुछ बदल गया सादिया हसन
एक और बार अपने असली रंग में दिखी
ये कौमें ..नस्लें .. यह मेरा तुम्हारा मादरे वतन
टी वी पर आग थी खून था लाशें थीं
उस दिन खरखराहट थी तुम्हारे फोन में आवाज़ में
तुमने चाय बनाने का बहाना कर फोन रख दिया.
मैं जानता हूँ उस दिन तुमने देर तक उबाली होगी चाय
मैंने कई दिन तक चाय नहीं पी सादिया हसन.
मैं तुम्हारे बदले से डरने लगा
क्रिया की प्रतिक्रिया पर अब क्या दोगी प्रतिक्रिया
इस गुजार में रोज मरने लगा
जब भी कभी हिम्मत से तुम्हें कॉल किया
बताया गया तुम चाय बनाने में व्यस्त हो
मैंने जब भी चाय पी आधी ग्लास तुम्हारे लिए छोड़ दी.
गुजरात ने हम दोनों को बदल दिया था सादिया हसन.
ठंडी हो गई ख़बरों के बीच तुम्हारी चिट्ठी मिली थी-
‘’ गुजरात बहुत दूर है यहाँ से
और वे मुझे मारने आये तो तुम्हारा नाम ले लूँगी
तुम्हें मारने आयें तो मेरे नाम के साथ कलमा पढ़ लेना
और मैं याद करुँगी तुम्हें शाम सुबह की चाय के वक़्त
तुम्हारे राम से डरती रहूंगी ताउम्र
मेरे अल्लाह पर ही मुझे अब कहाँ रहा यकीन ‘’
तुम्हारे निकाह की ख़बरों के बीच
फिर तुम गायब हो गई सादिया हसन
मैंने तुम्हारा नाम उसी लापता लिस्ट में जोड़ दिया
जिस लिस्ट में गुजरात की हजारों लापता सादियाओं समीनाओं के नाम थे
नाम थे दोसाला चार साल बारहसाला अब्दुलों अनवरों के.
हजारों चाय के ग्लास के साथ यह वक़्त गुजर गया.
मैं चाय के साथ अभी अखबार पढ़ रहा हूँ सादिया हसन
खबर है कि गुजरात अब दूर नहीं रहा
वह मुल्क के हर कोने तक पहुँच गया है
मेरे हाथ की चाय गर्म हो गई है
ये चाय इतनी गर्म कभी न थी
इसकी मिठास इतनी कम कभी न थी
सादिया हसन, मेरी चाय को तुम्हारी फूंक चाहिए.
5.
प्रार्थना से हम करते हैं
तुम्हारे प्रति हमारे अविश्वास की संस्तुति
और रखते हैं आँखें बंद कि
हमारे समक्ष होने में प्रकट
तुम्हें खुली आँखों से भय न हो ईश्वर !
और हम हाथ इसलिए जोड़े रखते हैं कि
तुम हो नहीं
जो होते तो थामते हाथ
कि हमारे एक हाथ को देता है ढाढस
हमारा ही हाथ दूसरा.
6.
आर्मेनिया में गुलाब को क्या कहते हैं अना अनाहित
और क्या कहते हैं फूल पत्ती चाँद तितली चिड़िया को
छोड़ो कहो प्यार को क्या कहते हैं
और क्या कहते हैं लाल ताशअमल को.
सबसे पुराने चमड़े के जूते को क्या कहते हैं
क्या कहते हैं स्कर्ट को
अना अनाहित, क्या तुम स्कर्ट पहनती हो.
अपने उनतालीस वर्णक्रम से
मेरे बावन अक्षरों के संवाद को जवाब दो
कहो अना अनाहित
आर्मेनिया की लड़की को ब्याह के लिए कैसा वर चाहिए.
7.
तुम मेरी बात सुनो
मैं मेरा समय तुम्हें सौंपना चाहता हूँ
मेरे समय के कई मुंह हैं
इसने हर मुंह से काटना सीख लिया है
दुनिया के किसी रसायन शाला में नहीं बना अभी
इसकी काट का जहर
इसलिए तुम्हें इसे पालना सीखना होगा
सहलाने पुचकारने की कला आजमानी होगी.
मेरे पूर्वजों ने मुझे अपना समय सौंपा था
मैं तुम्हें मेरा समय सौंपना चाहता हूँ
सुनो मेरी बात.
सुनो सुनो
या एक और इंतजाम करो
हथियार तलाश करो
मेरे समय का मुंह कुचल मार दो इसे.
8.
चींटियों को यकीन है आएगी बारिश
कौवे को यकीन आएगा आने वाला
लड़की को यकीन है पत्थर देवता ढूंढ लायेंगे अच्छा घर वर
पंडित को यकीन कि मरेगी बिल्ली और बरसेगा सोना.
मछलियों को यकीन है कि तालाब में रहेगा साल भर पानी
बगुले को यकीन एक रोज चुग लूँगा मन भर मछलियाँ
केकड़े को यकीन वह बचेगा हर सूरत में
घर को यकीन है लौट आएगा प्रवासी
सिपाही को यकीन है जल्द ही बुला लेगा घर.
सब यकीन में जी रहे हैं.
मुझे यकीन है कि अब बदल गया है समय
पुरानी बात रही नहीं
यकीन पर भरोसे लायक रही नहीं दुनिया.
(रचनाकार-परिचय:
जन्म : 11.01.1983 बेगूसराय, बिहार में
शिक्षा : इतिहास और मनोविज्ञान में स्नातक, स्नातकोत्तर (हिंदी साहित्य)
सृजन: कुछ कविताएं समावर्तन रेखांकित, जनसत्ता, कथादेश, शुक्रवार वार्षिकी आदि में छपीं
पहली कहानी निकट पत्रिका में.
संप्रति : सन्मार्ग अखबार, पटना में पोलिटिकल फीचर एडिटर के रूप में कार्य. आलेख और कॉलम लिखे. कस्बाई न्यूज़ चैनल सिटी न्यूज़ में कुछ दिनों पत्रकारिता बाद फ़िलहाल दिल्ली में रहकर स्वतंत्र लेखन और जीविका के लिए अनुवाद करते हैं.
संपर्क: shayak.alok.journo@gmail.com)
2 comments: on "हवा में लहू की गंध है "
एक सटीक शब्द नहीं सूझ रहा जिससे कि इन कविताओं के बारे में कम से कम शब्दों में प्रतिक्रिया दे सकूँ. बिना शीर्षक की इन कविताओं में वेदना, क्रोध, प्रेम, उम्मीद कितनी सारी चीज़ें एक साथ हैं. जो ग़लत हुआ, हो रहा है उसकी चुभन भी (मैं तुम्हारे बदले से डरने लगा/ क्रिया की प्रतिक्रिया पर अब क्या दोगी प्रतिक्रिया...., मैंने तुम्हारा नाम उसी लापता लिस्ट में जोड़ दिया...), उस पर गुस्सा भी (मेरे समय का मुँह कुचल मार दो इसे), प्रेम और उम्मीद भी (उस पेड़ के लिए लिखता हूँ मैं कविता/ मेरी चिड़िया बेटी गुनगुनाती है उसे, ..मेरी चाय को तुम्हारी फूँक चाहिए).
लेकिन कम से कम मुझे तो ये कवितायेँ सिर्फ वेदना, गुस्से या उम्मीद भर की नहीं लगीं, वैयक्तिक संवेदनाओं की तो बिलकुल भी नहीं. हर कविता का आसमान बहुत व्यापक और चिंताएं बहुत गंभीर हैं. बावजूद इसके वे अपने अंत में किसी मसले का समाधान सुझाने वाली कविताओं की तरह नहीं हैं. वे एक प्रश्न की तरह सामने खड़ी होती हैं. मसलन, अब बदल गया है समय/ पुरानी बात रही नहीं/ यकीन पर भरोसे लायक रही नहीं दुनिया ..... तो प्रश्न खड़ा है कि अब आगे क्या? हथियार तलाश करो/ मेरे समय का मुँह कुचल मार दो इसे.... फिर प्रश्न खड़ा है कि जो नया समय होगा वह क्या होगा?
जहाँ तक मेरी समझ है या जो मेरा मत है उसके मुताबिक जो रचनाएं सवाल खड़े कर सकती हैं, वे बेहतर ढंग से प्रभावित करती हैं. इस लिहाज़ से निश्चित ही बहुत उम्दा कविताएँ हैं. कवि को बधाई.
शायक आलोक की कविताओं में सपने, दर्द , भावनाएँ, गुस्सा , उम्मीद , सब कुछ मौजूद है अपनी एक लय के साथ। बहुत सी चीज़ें है जो हर दौर में एक कवि को मिलती हैं। शायक सचेत होकर अभिव्यक्ति का माध्यम चुनते हैं।
ये चाय इतनी गर्म कभी न थी / इसकी मिठास इतनी कम कभी न थी /सादिया हसन , मेरी चाय को तुम्हारी फूँक चाहिए।
इस कविता में एक पूरा वक़्त जादूई भाषा में मौजूद है।
एक पेड़ जो बूढ़ा हो गया है।
जमा कर बना सकते थे बर्फ / काम के ज़रूरी रंग भी मिला सकते थे।
फैन्टेसी के रूप में जो कुछ भी आता है यथार्थ ही तो होता है।
ज़िन्दगी में संभावनाएं ज़यादा है तो हिस्सा लेने वाले भी बहुत ज़्यादा हो गए हैं। खुद का अर्जित किया हुआ अनुभव, घटाव और पतन। हर कविता में एक सादापन है। कविताएँ असर छोड़ जाती है। अपने एक अलग रंग में।
एक टिप्पणी भेजें
रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी