बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

सोमवार, 21 जुलाई 2014

पंच को राहत देती फ़िलस्तीन में गूंजती मासूमों की चीख़















फ़राह शकेब की क़लम से

अपने ही देश में और अपनी ही मातृभूमि पर अजनबी और बेगानों की तरह रहने की तकलीफ आप शायद तब तक नहीं समझ सकते जब तक स्वयं आप दर्द की उन गलियों से गुज़रे न हों. अगर इस दर्द का जीवंत रूप देखना हो तो फ़िलस्तीन की तरफ एक बार नज़र उठाइये. छह दशकों से अधिक का समय बीत चुका है. 1948 में ब्रिटेन अमेरिका और कुछ अन्य यूरोपीय देशों की साम्राज्यवादी पूंजीवादी शक्तियों ने सत्ता और दौलत अहंकार के नशे में चूर हो कर अरब शहंशाहों की खामोश हिमायत के साथ ज्यूश ( यहूद ) को जबरन पूरी दुनिया से जमा कर के अरब की सरज़मीं पर अवैध रूप से क़ब्ज़ा कर बसा दिया. उस भू भाग को इस्राईल का नाम दिया गया.उस समय फ़िलस्तीन की कुल जनसंख्या नौ दस लाख के आसपास थी. इनमें से सात लाख से अधिक फ़िलस्तीनियों को उनके घर ज़मीन से बेदखल किया गया. आज भी उस समय के तक़रीबन पचास हज़ार लोग फ़िलस्तीन में मौजूद हैं. उसके बाद विगत 65 सालों से अधिक समय से अपनी ही धरती पर अत्याचार और ज़ुल्म का शिकार हो रहे हैं. जिसका सबसे बड़ा कारण शहर येरूशलम पर इस्राइलियों का कब्ज़ा है. येरूशलम यहूदी और ईसाई धर्मावलम्बियों का भी आस्था का केंद्र है. फ़िलस्तीनियों के द्वारा न केवल स्वतंत्र फ़िलस्तीन का अस्तित्व मायने रखता है बल्कि येरुशलम में मस्जिद-ए-अक़सा की हिफाज़त भी वो अपना दायित्व समझते हैं.

आज फ़िलस्तीन पर अवैध इस्राईली क़ब्ज़े के बाद वहां की तीसरी चौथी पीढ़ियां आसमान से बरसती मौत की छत्रछाया में ज़िन्दगी के कई बसंतों को देखते हुए जवान हो रही हैं. आज हर माँ अपने बच्चे को सबसे पहला सबक यही देती है की तू फ़िलस्तीनी है. फ़िलस्तीन तेरा वतन है. तुझे इसकी की इस्राइलियों से मुक्ति के नाम पर अपनी जान क़ुर्बान करनी है. माँ के पढ़ाये इस सबक का ही असर है कि तमाम विपरीत परिस्तिथियों के बाद भी फ़िलस्तीन के नागरिकों के लिए हर रात के बाद सुबह होती है और वो सुबह अपने उद्देश्य की दिशा में उन्हें एक नयी ऊर्जा और हौसला दिया करती है.


 9/11 के हमलों के बाद से अमेरिका स्वयं संस्कृतियों के टकराव और वार ओन टेरर के नाम मुस्लिम देशों से सलेबी जंग में व्यस्त है, तो इस्राईल अपने अमेरिका के संरक्षण में ग्रेटर इस्राईल  के अपने नापाक मंसूबों को अमली जामा पहनाने की कोशिश में लगा है. लेकिन गाज़ा पट्टी इस दिशा में सबसे बड़ी रुकावट है. फ़िलस्तीन की तीन चौथाई भूमि पर क़ब्ज़ा करने के बाद बाकी के हिस्सों पर भी उसका अधिपत्य किसी प्रकार हो जाए अब उसकी यही कोशिश है. अलग बात है कि विगत कुछ वर्षों से दुनिया भर में फ़िलस्तीनियों के प्रति सहानुभूति बढ़ रही है. हर वर्ष फ़िलस्तीन की स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना के लिए पिछले तीस साल से 30 मार्च को आयोजित होने वाले अर्ज़ दिवस का दायरा अब लेबनान शाम मिस्र की सीमाओं से निकल कर योरोपीय और एशियाई देशों तक भी पहुँच चुका है. यह इस बात की ज़मानत है कि दुनिया भर में इस्राईल और उसकी गुंडागर्दी के विरुद्ध जनसमर्थन और असंतोष लगातार बढ़ता जा रहा है.
 शेरे फ़िलस्तीन की संज्ञा पाने वाले यासिर अराफ़ात की संदिग्ध मौत के बाद स्वतंत्रता का परचम उनके द्वारा स्थापित संगठन अलफ़तह के हाथों से निकल कर खालिद मशअल और इस्माईल हानिया के नेतृत्व में 1987 में शेख अहमद यासीन द्वारा स्थापित संगठन हमास के हाथों में आ गया है. हमास ने स्थानीय चुनाव में अपनी कुशल रणनीति की बदौलत सबसे बड़ी कामयाबी सन 2006 में हासिल की थी लेकिन कुछ स्थानीय मुद्दों पर अलफ़तह और अन्य स्थाई संगठनों के साथ उसका मतभेद हो गया. जिस कारण फ़िलस्तीन में कुछ समय के लिए गृहयुद्ध हो गया था. इनके आपसी टकराव का इस्राईल ने पूरा पूरा फायदा उठाने का प्रयास किया. ग्रेटर इस्राईल एवं मस्जिद -ए-अक़सा पर हैकल सुलैमानी ( यहूदियों का पूजा स्थल ) निर्माण की दिशा में प्रयास तेज़ कर दिया.
दुनिया के सबसे बड़े स्वयंभू दादा अमेरिका के संरक्षण में हमास को उकसाने के लिए बमबारी की. 6 August 2006 को फ़िलस्तीन लेजिस्लेटिव काउन्सिल के स्पीकर डॉक्टर अज़ीज़ विवेक को इस्राईल के द्वारा उस बमबारी के विरुद्ध एक निंदनीय प्रस्ताव पारित करने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया और वास्तव में उसे गिरफ्तारी नहीं अपहरण कहा जा सकता है क्यूंकि वो बिलकुल ग़ैर कानूनी और नाजायज़ थी. इस्राईल को आशा थी की हमास की तरफ से हिंसक जवाबी कार्रवाई होगी और दुनिया के सामने उसे स्वयं को रक्षात्मक कार्रवाई करने का मौक़ा मिलेगा लेकिन उसकी उमीदों के विपरीत फ़िलस्तीन ने वैश्विक स्तर पर अपनी कुशल विदेशनीति और कूटनीति के साथ अपने लिए जनसमर्थन को व्यापक करने की दिशा में क़दम बढ़ाये. अपनी मंशा के विपरीत फ़िलस्तीनियों की खामोशी से इस्राइलियों को किसी ऐसी स्तिथि की आशंका होने लगी, जो उसके लिए नकारात्मक होती जा रही थी और अपने उसी झुंझलाहट में 2008 2009 में उसने फ़िलस्तीनियों की ज़मीन को जीव विज्ञान की प्रयोगशाला समझ कर एक ज़हरीले रसायन का परीक्षण किया. जिसके परिणामस्वरूप हज़ारों फ़िलस्तीनी हलाक हुए. 

 दुनिया में फ़िलस्तीनियों के हिमायतियों का दायरा बढ़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिका और इस्राईल कोशिशों के बावजूद उसके समर्थक देशों की संख्या बढ़ रही है. इस्राईल से संबंधित किसी मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ में वोटिंग होने पर फ़िलस्तीन को मिलने वाली वोटों की संख्या सैकड़ों में होती है तो इस्राईल को मिले मत तीस चालीस से अधिक नहीं होते. पूरी दुनिया में अमेरिका और इस्राईल की साम्राज्यवादी और पूंजीवादी नीतियों के विरुद्ध विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं और अब तक स्तिथि यहाँ तक हो चुकी है की खुद अमेरिका और इस्राईल की धरती पर फ़िलस्तीन समर्थकों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है. वहाँ अपने ही शासकों के विरुद्ध जनमानस में असंतोष पनप रहा है. दो वर्ष पहले CIA की ख़ुफ़िया रिपोर्ट में ये रहस्योद्घाटन हो चुका है कि इस्राईल का अवैध अस्तित्व अब और अधिक दिनों तक टिकने वाला नहीं है. इस रिपोर्ट पर खुद अमेरिका के पूर्व राजनायिक कार हेनरी कसेंजर ने भी विश्वसनीयता की मुहर लगाईं है और उसी रिपोर्ट के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय राजनितिक विश्लेषक क्यूंन पार्ट ने भी प्रेस टीवी की आधिकारिक वेबसाइट पर ऐसी ही लिखित टिप्पणी की है कि जिस रफ़्तार के साथ अमेरिका में यहूदियों के विरुद्ध वातवरण तैयार हो रहा है और अमेरिकियों के अधिकारों की यहूदी हितों की रक्षा नाम पर अनदेखी की जा रही है. उससे जो असंतोष अमेरिका वासियों के मन में घर कर रहा है वो अमेरिका के अंदर यहूदी लॉबी को और अधिक दिनों तक बर्दाश्त नहीं करेंगे.


अपने विरुद्ध बनते हुए इस नकारात्मक वातवरण से इस्राईल बौखलाया हुआ है. दुनिया के सामने खुद को पीड़ित और मज़लूम साबित करने के लिए मक्कारी और फरेब के साथ नित नई नई साज़िशें और हरकतों के साथ फ़िलस्तीन को हिंसात्मक कार्रवाई के लिए उकसाता रहता है. नवम्बर 2012 में भी इस्राईल ने ऐसे ही छेड़खानी कर हमास को कार्रवाई के लिए मजबूर किया और तब हमास ने ईरान द्वारा उपलब्ध करवाये गए अलफज्ऱ -5 रॉकेट के साथ इस्राइलियों को खदेड़ा था. उसके बाद से इस्राइलियों द्वारा कई अवसरों पर हमास को उकसाने के लिए हरकत की गयी कभी गाज़ा पट्टी में किसी फ़िलस्तीनी नौजवान को गाडी चेक पॉइंट के करीब गलत जगह खड़ी करने के लिए गोली मार दी गयी कभी फ़िदा मजीद नाम के नौजवान को तेज़ रफ़्तार गाडी चलाने के लिए मार दिया गया. जब इन घटनाओं के विरुद्ध लेबनान और शाम में प्रदर्शन हुए तो प्रतिशोधात्मक कार्रवाई में हमास के ठिकानों पर मिसाइल दागे गए. कभी रोम सागर में फ़िलस्तीनियों के जहाज़ को रोक कर उसकी तलाशी ली गयी और कारण ये बताया गया कि इन जहाज़ों में ईरान द्वारा फ़िलस्तीन को हथियार और गोला बारूद भिजवाये जा रहे हैं.

आज इस वक़्त इस्राईल की बौखलाहट केवल इसलिए चरम सीमा पर है कि अब फ़िलस्तीन के दो विभिन्न ग्रुपों  हमास एवं अलफ़तह ने हाथ मिला लिया है. इसी से घबराकर इस्राईल ने अपने तीन नागरिकों के हमास द्वारा अपहरण का इलज़ाम लगा कर फ़िलस्तीन पर हमला कर दिया है. पहले तो उसने सर्च ऑपरेशन चला कर हज़ारों फ़िलस्तीनियों को गिरफ्तार किया। औरतों के साथ घर में घुस कर इस्राईली फौजियों ने बदसुलूकी की और पांच नौजवानों को गोली मार दी और उसके बाद फिर गाज़ा पट्टी पर मिसाईली हमले शुरू कर दिए।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस अपहरण के सिलसिले में इस्राईल से प्रमाण मांगे हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ के आदेश को नकारते हुए फलस्तीन पर मौत बरसाने के अपने अतिप्रिय काम में सह्यूनियों नरपिशाच लश्कर मग्न हो चूका है न तो उसे 2012 में मिस्र के सालसि में होने वाले शान्ति समझौते का लिहाज़ है और न ही वैश्विक कानून का. इस्राईल अपनी हठधर्मी के साथ वैश्विक समुदाय संयुक्त राष्ट्र संघ और सुरक्षा परिषद को खुले आम चुनौती दे रहा है.

अब तक 4 सौ से अधीक फ़िलस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं. हज़ारों घर तबाह हो चुके हैं और पूरी दुनिया खामोश तमाशाई बनी बैठी है. इस वक़्त सबसे अधिक उदासीनता संयुक्त राष्ट्र संघ ने दिखाई है. संघ अब अप्रत्यक्ष रूप से पूंजीवादी साम्राज्य वादी शक्तियों के हितों की पूर्ति के लिए काम कर रहा है.लेकिन मानवाधिकार का परचम उठाने वालों के कानों में अब तक क्या उन मासूम फ़िलस्तीनी बच्चों की चीखें नहीं पहुंची. क्या इराक़ लेबनान मिस्र सीरिया यमन तेनवीस इत्यादि जैसे देशों में बर्बादी के किस्से नहीं पहुँच रहे हैं? क्या अरब देशों के शहंशाहों और सऊदी हुक्मरानों को अपनी ऐय्याशी से फुर्सत नहीं कि वो लहू होती सरज़मीं पर चीखती हुई इंसानियत के नज़ारे देख सकें ?? जब बच्चों औरतों बूढ़ों पर इस्राईल की मिसाइल गरज रही हैं तो उसी वक़्त मिस्र के राष्ट्रपति के साथ विशेष विमान में सऊदी बादशाह कौन सी बातचीत कर रहे हैं ये भी दुनिया जानना चाहती है...???

(लेखक परिचय:
 जन्म: 1 जनवरी 1981 को  मुंगेर ( बिहार ) में
 शिक्षा: मगध यूनिवर्सिटी बोधगया से एमबीए ( जारी )
 सृजन: कुछ ब्लॉग और पोर्टल पर समसामयिक मुद्दों पर नियमित लेखन
 संप्रति: अनहद से संबद्ध
 संपर्क: mfshakeb@gmail.com)


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- अल्लामा जमील मज़हरी

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