बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 6 जुलाई 2014

ख़ामोश लब की सदाएं













अनवर सुहैल की कविताएं


एक 
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मुझे
गाली और गोली से
लगता नहीं डर
क्योंकि
मेरे पास है
एक क़लम
एक सोच
एक स्वप्न
एक उम्मीद
और लाखों-लाख लोगों के
ख़ामोश लब की सदाएं ....

तुम्हारी
गालियाँ और गोलियां
मेरा कुछ भी बिगाड़ नही सकतीं....


दो
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जुर्म है
खून बहाने के लिए
धर्म-ग्रंथों की आड़ लेना

तुम पवित्र किताबों की
किन पंक्तियों के सहारे
करते हो मार-काट
बहाते हो नदियाँ खून की

मैं जानता हूँ
मेरी कविता में
ताक़त नही इतनी
कि रोक सके तुम्हें
क्योंकि मेरी कविता से भी
दर्दनाक हैं,
तुम्हारे हथियारों से हलाल होती आवाज़ें

इंसानियत को शर्मसार करने वालों
फिर भी तुम्हे यक़ीन है
कि जन्नत की खुशबूदार हवाएं
तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं....
अफ़सोस
सद-अफ़सोस....



स्त्री-देह
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कुछ चीज़ें ऐसी हैं
जो हमारे लिए
जी का जंजाल हैं
जिन्हें एक मुद्दत से
ख्वाह-म-ख्वाह ढो रहे हम
एक सलीब की तरह
अपने कमज़ोर कांधों पर
धरे-धरे घूम रहे हम...
और वही चीज़ें
तुम्हारे लिए हैं
हसरत, चाहत, हैरत का सबब
बोलो न क्या करें अब...!


चार
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अपने दुःख
अपने कष्टों को
रक्खो अपने पास
ख्वाह-म-ख्वाह, हमें न करो परेशान
अभी हमें करने हैं
तुम्हारी बेहतरी के लिए हज़ारों काम

तुम क्या सोचते हो
कि दुःख सिर्फ़ तुम्हारी जागीर है
ऐसा नही है भाइयों-बहनों
तुम्हारे दुःख तुच्छ हैं, शाश्वत हैं
लेकिन हमारी चिंताएं हैं विराट

सब्र करो....क्योंकि तुम्हे सब्र करना चाहिए...

[कवि-परिचय:
जन्म: 9 अक्टूबर, 1964 को नैला जांजगीर, छत्तीसगढ़ में
शिक्षा: डिप्लोमा इन माइनिंग इंजीनियरिंग
सृजन: कहानियों और कविताओं का प्रकाशन देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में ।
कुंजड़-कसाई, ग्यारह सितम्बर के बाद,चहल्लुम (कहानी संग्रह), और थोड़ी सी शर्म दे मौला! (कविता संग्रह), पहचान, दो पाटन के बीच (उपन्यास) इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
सम्प्रति: बहेराबांध भूमिगत खदान में सहायक खान प्रबंधक साथ ही साहित्यिक पत्रिका ‘संकेत’ का सम्पादन ।
संपर्क: anwarsuhail_09@yahoo.co.in ]

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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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