बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 20 जुलाई 2014

वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश पानी



नई पौध












 सरोध्या यादव की क़लम से

काश ये दुनिया मेरा कैनवास होता

मैं एक पेन्टर हूँ
अपनी कल्पना को कैनवास पर उतारती हूँ
मन के भाव कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लाइनों और रंगो से
कोरे कागज़ पर सपना सवारती हूँ

काश ये दुनिया मेरा कैनवास होता
मेरा ब्रश उसमें भी कोई नई कलाकारी करता
रंग-बिरंगे प्यादों को एक खूबसूरत से दृश्य में ढालता
सुंदर रंगो को चुन उसे और  बनाता मनमोहक
फ़िर उस पेंटिंग को फ्रेम में क़ैद कर अपनी वॉल पर मैं सजाती

2.
लहू अब जम  सा गया है
वक्त भी थम सा गया है
ज़िंदगी  से है मौत सस्ती
डराती है ये वीरान बस्ती

दोबारा बचपन चाहिए

बस थोड़ा सा खुलापन चाहिए
दोबारा मुझे अपना बचपन चाहिए

वो सुख में हंसी तो,  आँसू दुःख चाहिए
वो बेफिक्री का आलम चाहिए
वो गुड्डा- गुड्डी का खेल
वो छुक- छुक करती थी रेल
वो कागज़ की नाव
वो पानी ही ठांव
तितलियों को देख उछलना
आइसक्रीम को मन मचलना
वो रंग-बिरंगे गुब्बारे फुलाना
चंदा मामा का संग सुहाना

वो दादी- नानी की कहानी
वो छन से बरस्ता पानी
वो खिलखिलाता चेहरा
तुतलाहट का घन बसेरा
लाड़ को झूठ- मुठ का रोना
माँ की गोद में सोना
रोज़ अपना घर बनाना
दीदी को आने न देना

AB से बढ़ कर बीए में है जा पहुंचे
अब आसमान छूता मकान चाहिए
तब सखियों का रोना था कितना अपना
अब हरेक को अपना मक़ाम चाहिए

नहीां चाहिए हमको नहीं चाहिए
दौलत और  शौहरत नहीं चाहिए
बस थोड़ा सा खुलापन चाहिए
दोबारा मुझे अपना बचपन चाहिए



(रचनाकार-परिचय:
जन्म: 12 नवंबर 1990 को
शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा सिकंदराबाद के केन्द्रीय विद्यालय तिरुमालागिरी से| उसके बाद लोयला अकादमी डिग्री व पीजी.  कॉलेज से बीए. मास कम्यूनिकेशन डिग्री|
सृजन: बड़ी बहन संध्या यादव के साथ मिल कर लिखा गया उपन्यास  "आसमान को और फेलाने दो" प्रकशित
संप्रति: हैदराबाद में रहकर कनेक्शनस (Konnections) नामक PR एजेंसी में वरिष्ठ अकाउंट ऐज़ेक्यूटिव/ Sr. Account  Executive
संपर्क: sarodhya.u.d12@gmail.com)

 


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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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