बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

भाजपा पर ज्यां द्रेज बोले, निरमा से नमो तक

रांची में रविवार को विजय संकल्प रैली को भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया. रैली में जानेमाने अर्थशास्त्री व सोशल एक्टिविस्ट ज्यां द्रेज भी मौजूद थे. उन्होंने जो देखा, सुना और महसूस किया, पेश है उन्हीं की जुबानी. रांची में नरेंद्र...
read more...

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

अदीब पिता की कवयित्री बिटिया

         शहनाज़ इमरानी की कविताएं   बूँद भर एक ख़्वाब        बूँद भर एक ख़्वाब        पलकों की रिहाइश छोड़ कर        ...
read more...

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

बवंडर में एक उम्मीद का हिलना

पंकज साव की क़लम से तेजपाल-प्रकरण से  उपजी युवा चिंता अब से करीब 12 साल पहले ‘तहलका’ ने जिस शख्स के दम पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का राजनैतिक करियर खत्म कर दिया था, कहीं आज वह शख्स खुद पतन के कगार पर तो ...
read more...

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

विकल्पहीनता में देश यानी वाम-वाम समय

    अमित राजा की क़लम से दिल्ली और बाक़ी राज्यों के आम आदमी में फ़र्क़ जटिलताओं के देश भारत में राजनीति एक उलझी हुई डोर है। इस उलझी हुई डोर का एक सिरा दिल्ली में 'आप' नहीं-नहीं आम आदमी के हाथ लगा है। लेकिन डोर का दूसरा सिरा जबतक...
read more...

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

मंज़िल ढूँढता एक मुसाफिर गुमनामी में जी रहा हिंदी का लेखक

   सेहन में बैठे फणीन्द्र मांझी  डायरी से एक गीत सुनाते हुए ज़िंदगी चलती नहीं प्यारे धकेली जाती है :फणीन्द्र  मांझी चौक-चौराहे पर शहीद भगत सिंह या सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा देख  धरती  आबा का सुरक्षा कवच रहा डुमबारी...
read more...

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

सिर्फ़ आप ही नहीं, कर सकते हो तुसी भी कमाल!

फ़ोटो गूगल महाराज की कृपया से हालिया चुनाव पर कुछ इस तरह भी तो सोच सकते हैं तमाम तामझाम और बेशर्मी लांघती मीडिया रपटों के बावजूद लोकमानस को समझ पाने में हम लोग असमर्थ रहे. लेकिन ज़िद की लकीर का अहं अब भी मुंह नहीं चुरा  रहा है. दरअसल...
read more...

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

न रहा घर, न ही कोई आसरा, मां पहले ही गुज़र चुकी

पाइलिन में पिता और छोटा भाई खो  चुके पवन की  कहानी उसकी  आंखें लबालब हैं। मानो पाइलिन उतर आया हो। जबकि यह तूफ़ान तो अक्टूबर के  पहले सप्ताह आया था। मैं बात अरगोड़ा, रांची  के 22 साल के  पवन तिर्की की...
read more...

शनिवार, 30 नवंबर 2013

पटना ब्लास्ट के एक महीने बाद कितनी बदल गयी ज़िंदगी

 इस दुकान की बायीं तरफ़ पहले कैफे भी हुआ करता था, जिसे बंद कर अब निशा स्टोर को बढ़ा दिया गया है. फ़ोटो मीर वसीम   दहशत ने बनाया अपनों को संदिग्ध: कई शहर, तो कुछ स्कूल छोड़ने को तैयार,   बच्चों के लैपटॉप तक की होने लगी मॉनिट्रिंग ...
read more...

मोदी को बुलेट से नहीं बैलेट से दें जवाब: अहले हदीस मस्जिद के इमाम

इमाम ज़ियाउल हक़ फ़ैज़ी ने कहा बम या गोली मसले का हल नहीं मामला नाइंसाफी से जुड़ा हो या फौरी गुस्सा से उबली प्रतिक्रिया इस्लाम या अहले हदीस हिंसा की इजाजत नहीं देता। कुछ भटके हुए लोग जिहाद की गलत व्याख्या कर रहे हैं। जिहाद आतंकवाद नहीं होता।...
read more...

सोमवार, 25 नवंबर 2013

ईंट उठाने वाली मज़दूर बनी यूनिवर्सिटी टॉपर

गोल्ड मेडल पाकर  कहा, नौकरी मिल जायेगी न! पदक पाकर मुन्नावती रो पड़ी   चित्र: रमीज़ जावेद शहरोज़  @  मुन्नावती बरसों रेजा मजदूरी करते बचपन से युवा होने तक जो सपना देखा था, उसके साकार होने में मात्र कुछ ही घंटे बचे थे।...
read more...

शनिवार, 9 नवंबर 2013

शमा-ए-हरम हो, या दीया सोमनाथ का

       फोटो वसीम छठ पर्व पर बिखरी  परस्पर प्रेम की खुश्बू   साफसफाई, सजावट सहित फल वितरण  में मुस्लिम  रहे अव्वल सूर्य उपासना के महापर्व छठ के अवसर पर राजधानी के लेक रोड का...
read more...

गुजरात नरसंहार के बहाने

हिंसा  के तर्क और तर्कों की हिंसा: एक आलोचनात्मक  प्रयास      हिलाल अहमद  की क़लम से हिंसा, विशेषकर ' सामूहिक हिंसा’ को समझने के दो संभव तरीके हो सकते हैं। पहला तरीका घटनाओं और व्यक्तियों के...
read more...

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

ब्लास्ट का दोषी साबित होने पर कर दूंगा भाई का क़त्ल

फ़ोटो : मीर वसीम एक विचारधारा  ने कैसे बदल दिया रंग-रोगन करने वाले मज़दूर का रंग पटना ब्लास्ट के चार आरोपियों के गाँव हेड कोचा सिठियो से धुर्वा से लोदमा जानेवाली सड़क सोमवार को बेहद खामोश थी। जगह-जगह समूह में युवा व बुजुर्ग जरूर खड़े मिले।...
read more...
(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)