बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

ब्लास्ट का दोषी साबित होने पर कर दूंगा भाई का क़त्ल

फ़ोटो : मीर वसीम

एक विचारधारा  ने कैसे बदल दिया रंग-रोगन करने वाले मज़दूर का रंग

पटना ब्लास्ट के चार आरोपियों के गाँव हेड कोचा सिठियो से

धुर्वा से लोदमा जानेवाली सड़क सोमवार को बेहद खामोश थी। जगह-जगह समूह में युवा व बुजुर्ग जरूर खड़े मिले। पर किसी भी अनजान चेहरे को देख वह आपस में सिमट जाते। आंखों में बेचारगी और खौफ। उनकी आंखें इम्तियाज, तौफीक, तारीक और नुमान के प्रति उनके आक्रोश को बयां कर रही थी। लोदमा-कर्रा सड़क से दक्षिण की ओर कच्ची सड़क पर हेटकोचा है। आम लोग इसे नीचा मोहल्ला कहते हैं। सड़क के अंत में बने टी प्वाइंट के बायीं ओर सौ साल पुरानी मस्जिद है। यहां के इमाम हाफिज शौकत अली कहते हैं, 'इन लड़कों ने मजहब के साथ हमारे गांव को भी बदनाम कर दिया। खुदा जाने उन्हें रास्ते से भटकाने वाले कौन सा इस्लाम पढ़ाते हैं।'  दरअसल उनका इशारा एक कट्टरवादी विचारधारा की ओर था। जिसकी पुष्टि सरना स्थल के पास पान गुमटी पर खड़े युवाओं ने भी की।
एचईसी में मजदूर नसीम कहते हैं, चार सालों से इन लड़कों का मिलना-जुलना अहले हदीस के लोगों से था। वे अक्सर हमारी धार्मिक परंपरा-व्यवहार के विरोध में बातें करते। गांव में दो मस्जिद है, इनमें अधिकतर लोग देवबंदी स्कूल को मानने वाले हैं। कुछ लोग  बरेलवी विचारधारा के हैं। लेकिन इन लड़कों को कोई तीसरी विचारधारा के लोग प्रभावित करने में लगे थे। करीब तीन साल पहले जब गांव में बड़ा जलसा हुआ, तो मुख्य वक्ता मौलाना ताहिर गयावी से इन लोगों का वाद-विवाद भी हुआ था। जिसपर गांव के लोगों ने इम्तियाज की पिटाई भी की थी।
इन चारों लड़कों से गांववालों ने बातचीत बंद कर दी थी। वहीं उनके घरवाले भी उनसे कटे-कटे से रहने लगे। यहां तक के, जब सड़क दुघर्टना मे मारे गए संझले बेटे के इंश्योरेंस और दूसरे बेटों के पैसे से एचईसी से रिटायर्ड मो. कमालउद्दीन ने दो मंजिला मकान बनवाया, तो इम्तियाज को अलग कमरा दे दिया गया। कम उम्र का लड़का तौफिक इम्तियाज का ही सगा भतीजा है। गांव के स्कूल में ही आठवीं में पढ़ रहा है। अतीउलाह का कम उम्र बेटा तारीक और सुल्तान अंसारी का लड़का नुमान भी इनके गिरोह में शामिल हो गया।
कहने को इनमें से कुछ मकानों में रंग-रोगन, तो कुछ बिजली मिस्त्री का काम करते। लेकिन इनके दिलों-दिमाग को कोई और ही रंग रहा था। लेकिन घर व गांववाले समझते रहे कि यह लड़के उनकी अपेक्षा अरबी व उर्दू अधिक जानते हैं। इसलिए संभव है, धर्म की अधिक जानकारी रखते हों। कुछ लोगों ने उस कट्टरवादी विचारधारा के लोगों पर मासिक ढाई हजार रुपए देकर इन लड़कों को बिगाडऩे का आरोप भी लगाया। गांव के ज्यादातर लोगों से हुई बातचीत के बाद इस आशंका को बल मिलता हैं कि कहीं ये विचारधारा रांची में जिहाद के नाम पर युवाओं की एक नई बेल तो तैयार नहीं कर रही?

ग्राम प्रधान शंकर कच्छप कहते हैं कि उनके गांव में आदिवासी व मुसलमानों की लगभग बराबर आबादी है। लेकिन आज तक इनके बीच कभी कोई विवाद नहीं हुआ। फरार तारीक के बड़े भाई मौलाना तौफीक आलम मस्जिद कमेटी के सेके्रट्री हैं। वह कुछ भले न बोले। पर उनके ही भाई तौहीद आलम ने कहा, अगर सच में उनका भाई दोषी निकला, तो वे लोग उसे मार डालेगे। सदर हाजी हसन अली की चुप्पी भी इन लड़कों के कारण हुई गांव व कौम की शर्मिंदगी बता रही थी जबकि इम्तियाज के घर पर मातमी सन्नाटा था। समाजिक कार्यकर्ता साजिद अंसारी का कहना है कि गांव के लोग अब उस विचाधारा के लोगों को गांव में घुसने ही नहीं देंगे। उनकी बात का खुर्शीद अंसारी ने भी समर्थन किया।

भास्कर के लिए लिखा गया 29 अक्टूबर 2013 के अंक में सम्पादित अंश प्रकाशित   


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1 comments: on "ब्लास्ट का दोषी साबित होने पर कर दूंगा भाई का क़त्ल "

anwar suhail ने कहा…

अहले-हदीस की कारस्तानिया इस तरह दिख रही हैं...ये लोग अलग से कैसे पहचाने जाएंगे..इस पर भी एक लेख की गुंजाइश है...

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