बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 9 नवंबर 2013

शमा-ए-हरम हो, या दीया सोमनाथ का

       फोटो वसीम





छठ पर्व पर बिखरी  परस्पर प्रेम की खुश्बू   साफसफाई, सजावट सहित फल वितरण  में मुस्लिम  रहे अव्वल











सूर्य उपासना के महापर्व छठ के अवसर पर राजधानी के लेक रोड का दृश्य उर्दू शायर मीर के इस शेर को जीवंत करता है:
 उसके फरोगे हुस्न से झमके है सबमें नूर
शमा-ए-हरम हो, या दीया सोमनाथ का।

 संजय सोनी उर्दू लाइब्रेरी के सामने तोरण द्वार बनाने में लगे हैं। नीचे खड़े मो. मोइन जब उन्हें बल्ब की रंगबिरंगी लरियां हाथों से पकड़ाते हैं, तो दोनों की परस्पर मिलीं आंखों में उतरा सद्भाव का स्नेहिल उबाल देश की गंगा-यमुनी संस्कृति को मटियामेट करने की सारी साजिशों को बहा ले जाता है। संजय, मुन्ना जमाल, रवि और रब्बानी जैसे ढेरों युवा गुरुवार को लेक रोड को सजाने व संवारने में लगे रहे। संजय कहते हैं कि बिना मोईन के मैं छठ की कल्पना भी नहीं कर सकता। पास खड़ी उनकी मां की नजर दोनों पर ममत्व बरसाती रहीं। दरअसल वातावरण में ही छठ मइया की ममता झिलमिल है।

राइन स्कूल के पास नवशाही संघ सद्भावना समिति एक मंच बना रही है। यहां से व्रतियों का स्वागत किया जाएगा। वहीं राइन पंचायत की ओर से फल व अगरबती का वितरण होगा। पंचायत के सदर मो. एनामुल कहते हैं कि लेक रोड रांची का यह सबसे पुराना छठ तालाब का मार्ग है। बरसों से ही इसकी साफ-सफाई हिंदू-मुस्लिम मिलकर करते रहे हैं। समाजिक कार्यकर्ता हुसैन कच्छी की दृष्टि में यह देश का पहला पर्व है, जिसमें साफ-सफाई और शुद्धता का ध्यान रखा जाता है। इसमें महिलाओं की भागीदारी अधिक रहती है, इसलिए उन्हें विश्वास है कि इस पर्व की पाकीजगी हमेशा बरकरार रहेगी।

छता मस्जिद के पास मिले रब्बानी फूल की व्यवस्था में लगे हैं। कहते हैं कि व्रतियों की सुरक्षा व उनका सम्मान करना उनका धर्म है। हमलोग सड़क की सफाई के बाद इसे पूरी तरह धोते हैं, ताकि शुद्धता बनी रहे। वहीं व्रतियों की सुरक्षा व्यवस्था में भी सभी कार्यकर्ता तैनात रहते हैं। इधर लेक रोड से लगी हिंदपीढ़ी सेंकेंड स्ट्रीट के मुर्शिद अय्यूब और अनवर भी दिनभर गली की सफाई में लगे रहे। मो. मोईन के बकौल वे सार्वजनिक चंदी नहीं लेते। सभी दोस्त आपसी सहयोग से सब करते हैं। चाहे लाउडस्पीकर लगाना हो, या फूलों का स्वागत द्वार। छठ मार्ग के दोनों ओर सजी रंग बिरंगियां रोशनियां देश के परंपरागत सद्भाव को जगमग करती हैं। वहीं फूलों से उठती खुश्बू इस बात की परिचायक हैं कि देश की राजधानी दिल्ली की तरह हमारे राज्य की राजधानी रांची में भी फूलों की सैर होती है। ऐसी सैर जिसमें तुलसी, कबीर, बुल्लेशाह, रहीम और रसखान की आत्माएं गलबहियां करती हैं।

दैनिक भास्कर के 8 नवंबर 2013 के अंक में प्रकाशित



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- अल्लामा जमील मज़हरी

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