बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 30 नवंबर 2013

पटना ब्लास्ट के एक महीने बाद कितनी बदल गयी ज़िंदगी

 इस दुकान की बायीं तरफ़ पहले कैफे भी हुआ करता था, जिसे बंद कर अब निशा स्टोर को बढ़ा दिया गया है. फ़ोटो मीर वसीम  

दहशत ने बनाया अपनों को संदिग्ध: कई शहर, तो कुछ स्कूल छोड़ने को तैयार,   बच्चों के लैपटॉप तक की होने लगी मॉनिट्रिंग 



पटना सीरियल बम ब्लास्ट को एक महीने पूरे हो चुके हैं। लेकिन इसकी गूंज आज भी रांची में सुनाई पड़ रही है। इसमें दहशत, जिज्ञासा, चौकसी और अकारण उपजी परेशानी भी शामिल है। दरअसल इस मामले में एक के बाद कड़ी रांची से जुड़ती चली गयी है.
 पटना ब्लॉस्ट और उसके बाद की पुलिस और एनआईए की गतिविधियों रांची  के लोगों को झकझोर के रख दिया है। इस एक महीने में शहर के मुसलमानों को लेकर लोगों के नजरिये में, उनकी सोच में बदलाव देखने को मिल रहा है। यह बदलाव महसूस किए जाने वाले हैं। खुद मुस्लिम परिवार के लोग अपने बच्चों के कल को लेकर फिक्रमंद हैं। घर के किसी पीसी  लैपटॉप लेकर जब भी कोई लड़का बैठता है, तो घर के गार्जियन की नज़रें चौकन्नी हो जाती हैं. हंसी-ठिठोली में ही सही उनके मेल या सोशल साइट्स के अकाउंट की निगरानी इन बच्चों के लिए दहशत भरी होती हैं. कुछ परिवार तो मोबाइल तक की मॉनिट्रिंग करने लगे हैं. वहीँ शहर के कई इलाक़ों में नाम पूछकर स्टूडेंट्स को लॉज दिए जा रहे हैं.  दहशत और शक की सुई ने तालीम और कारोबार को भी बुरी तरह प्रभावित किया है.  वही एक खास विचारधारा  को लेकर भी लोगों में गुस्सा है. ब्लॉस्ट  के बाद रांची में आए बदलाव को हमने उनके बीच जाकर तलाशने का प्रयास किया है, ताकि उसकी बारीकियों को समझा जा सके।

कैफे बंद कर देना पड़ा
इरम लॉज से चंद दूरी पर निसा जनरल स्टोर है। यहां एक साइबर कैफे भी कुछ माह शुरू हुआ था। लेकिन अब उसे बंद कर दिया गया है। इसके संचालक मो. इरफान आलम ने बताया कि उन्होंने दहशत में कैफे को बंद करदेने का फैसला किया। हालांकि उससे उनकी आय पर भी असर पड़ा है। जबके मैं बिना पहचान पत्र के किसी को भी बैठने की अनुमति नहीं देता था। लेकिन कोई नेट का कैसा इस्तेमाल करेगा, इसकी मॉनिटरिंग मुश्किल है। साथ ही निजी आजादी पर हमला भी।

डर में जी रहा परिवार
बीते एक महीने में हमारी जिंदगी बदल गई है। पूरा परिवार डर में जी रहा है। घर के बाहर से कोई आवाज देता है, तो रूह कांप जाती है। किसी अनजाने नंबर से फोन आता है, तो लगता है कि एनआईए वालों का फोन होगा। यह कहना है मोजम्मिल के पिता मोइनुद्दीन अंसारी का। मोजम्मिल की बस गलती इतनी थी कि वह पांच लाख का इनामी आतंकी हैदर से ढ़ाई साल पहले मिला था। हैदर उस समय डोरंडा में ही रहा करता था। मोजम्मिल की अम्मी अल्लाह से दुआ करती हैं कि फिर दोबारा कहीं बम न फटे। वरना फिर से एक बार हमारा जीना दूभर हो जाएगा।

फीस नहीं भरी  तो बच्चों का स्कूल छूट जाएगा
उजैर की पत्नी फातिमा शानी ने बताया कि बीते महीने की 28 तारीख को पुलिस ने मेरे पति को फोन कर बुलाया। उसके बाद से वो कहां हैं मुझे पता नहीं बताया गया। न उनका फोन आया और न उनकी बाइक लौटाई गई। उजैर के साथ पुलिस ने मेरा भी पासपोर्ट जब्त कर लिया है। मेरे पास पैसे नहीं है। उधार के राशन से घर चल रहा है। इस महीने तो बच्चों की फीस तो किसी तरह भर दिया है, लेकिन दिसंबर में फीस के पैसे मेरे पास नहीं है। अगर फीस नहीं भरी,  तो बच्चों की पढ़ाई छूट जाएगी। फातिमा कहती हैं कि उनके पति आतंकी नहीं है। वो हमेशा जरूरतमंदों की मदद करते आए हैं। उन्हें खुदा पर भरोसा है, वो एक दिन बेगुनाह साबित होंगे।

पासपोर्ट बनाना हुआ मुश्किल
ब्लास्ट के बाद रांची में मुसलमानों के लिए पासपोर्ट बनवाना भी मुश्किल हो गया है। पहले आसानी से पुलिस और स्पेशल ब्रांच की वेरिफिकेशन हो जाया करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। इन दोनों एजेंसी के जांच के बाद भी डीएसपी लेबल के अधिकारी खुद से आमने सामने पासपोर्ट बनाने वाले से पूछताछ करने लगे हैं। इस वजह से पासपोर्ट बनाने में समय तो लग ही रहा है, साथ ही उसे मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ रहा है। घटना के बाद पहले सीठिओ के लोगों को दुकानदारों ने सिम बेचना बंद कर दिया था। अब रांची शहर के आम दुकानदार भी उन्हीं मुस्लिम लोगों को सिम कार्ड बेच रहे हैं, जिनसे उनकी जान पहचान है।

दिल करता है रांची छोड़ दें
मेरे छोटे बेटे की सिर्फ जान पहचान उजैर से थी। उजैर के पकड़े जाने के बाद दूसरे दिन एनआईए मेरे बेटे को पूछताछ के लिए ले गई। रात 10 बजे छोड़ा। दूसरे दिन फिर 10 बजे सुबह उसे बुला लिया। बेटा रात में घर लौटा। यह सिलसिला लगातार 13 दिनों तक चलता रहा। इस दौरान हम हर पल जीते मरते रहे। यह कहना है डोरंडा फिरदौस नगर में रहने वाले रईस खान का। कहते हैं कि उनका पूरा परिवार दहशत में है। पत्नी सदमे में है। बेटे की जिंदगी बदल गई। उसका घर से निकलना कम हो गया। घर से बाहर निकलने पर मुहल्ले के लोग ऐसे देखते हैं कि लगता है कोई अजनबी जा रहा हो। मैं पत्नी से बात कर रहा था कि रांची छोड़कर बड़े बेटे के पास रहने चले जाए।

किरायेदार पर निगारी करने लगी हैं
इरम लाज के पड़ोस में रहनेवाली यास्मीन बानो आज भी उस शाम को याद कर कांप जाती हैं। जब उनके ही पड़ोस में रहने वाले स्टूडेंट्स के कमरे से बम बरामद किया गया था। कहती हैं कि आखिर आदमी किस पर भरोसा करे। लॉज में रहने वाले सभी लड़के पढऩेवाले रहते हैं। रमजान में वे रोजा-नमाज भी किया करते हैं। उनके बीच कोई दहशतगर्द भी है, इसकी किसी ने कल्पना भी न की थी। अपने एक किरायेदार छात्र पर वे हर समय निगारानी करने लगी हैं।

अब चौकन्ने हैं पड़ोसी
इरम लॉज के दूसरी ओर मोहम्मद सईद की टेलरिंग शॉप है। महिलाओं के कपडे वे सिलते हैं। कहते हैं कि लॉज में हिंदू-मुस्लिम सभी छात्र रहते रहे हैं। इनमें कभी मनमुटाव की भी शिकायत नहीं मिली। लेकिन उस दिन शाम जब वह नमाज पढ़कर दुकान लौटे, तो भीड़ देखकर भौंचक रह गए। कहा गया कि लॉज से बम बरामद किया गया है। तब उन्हें बेहद हैरत हुई। यकीन ही नहीं हुआ कि ये पढऩेवाले बच्चे ऐसा भी कर सकते हैं। अब चौकन्ने हो गए हैं।

आलिमों की राय
पुलिस को ऐसे गिरोहों को चिन्हित करना चाहिए: शहर काजी
रांची के शहर काजी कारी जान मोहम्मद रज्वी ने कहा है कि सरकार, पुलिस और अवाम को चाहिए कि वे उन तत्वों की निशानदेही करें, जो आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं। क्योंकि एक इतिफाक है कि एक खास विचारधारा से जुड़े लोगों का नाम इस मामले में सामने आ रहा है। लेकिन उससे समूची मुस्लिम कौम बदनाम हो रही है। आलिमों व दानिश्वरों को मिलबैठकर इस मुद्दे पर बैठक करनी चाहिए।

एक जमायत शक के घेरे में : नाजिम इदारे शरीया
इदार-ए-शरीया झारखंड के नाजिम आला मौलाना कुतुबुद्दीन रिजवी ने कहा है कि पटना ब्लास्ट के इल्जाम में जितने भी लड़के रांची से पकड़े गए, वे सभी एक खास विचारधारा से जुड़े हुए थे। यह अफसोसनाक है। इसकी ईमानदारी से जांच होनी चाहिए। इसकी भी जांच होनी चाहिए कि इस जमायत को कहां से फंडिंग होती है। रांची में महज पंद्रह साल के अंदर इस जमायत का बहुत तेजी से फैलाव हुआ है। अवाम को भी इसपर सोचना होगा।

(साथ में आदिल हसन)

भास्कर के झारखंड संस्करण में 29 नवंबर 2013 के अंक में प्रकाशित 










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