बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 30 नवंबर 2013

मोदी को बुलेट से नहीं बैलेट से दें जवाब: अहले हदीस मस्जिद के इमाम













इमाम ज़ियाउल हक़ फ़ैज़ी ने कहा बम या गोली मसले का हल नहीं

मामला नाइंसाफी से जुड़ा हो या फौरी गुस्सा से उबली प्रतिक्रिया इस्लाम या अहले हदीस हिंसा की इजाजत नहीं देता। कुछ भटके हुए लोग जिहाद की गलत व्याख्या कर रहे हैं। जिहाद आतंकवाद नहीं होता। जिहाद तो अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना है। बुराई से बचना है। आतंकवादी गतिविधियों में पकड़े गए लोग अपने बचाव में अहले हदीस का नाम लेकर उसे बदनाम कर रहे हैं। यह बातें रांची स्थित अहले हदीस की प्रमुख मस्जिद के इमाम व खतीब ज़ियाउल हक़ फ़ैज़ी  ने सैयद शहरोज कमर से खास बातचीत में कही है। पेश है उसके प्रमुख अंश:

कहा जा रहा है कि अहले हदीस मुसलमानों के बीच कट्टरता के बीज बो रहा है?
 नहीं। ऐसा हरगिज नहीं है। अहले हदीस सिर्फ कुरआन व हदीस की रोशनी में समाज की सलामती व ईमान की सुरक्षा का प्रचार--प्रसार करता है। इस्लाम अमनो-अमां की बात कहता है. हमारे नबी ने मस्जिद और बाज़ारों में हथियार ले जाने की  मनाही की  है.  
फिर दहशतपसंदी के आरोप में अहले हदीस के लड़के ही क्यों पकड़े जा रहे हैं?
यह इत्तिफाक है कि पकड़े गए लोग अहले हदीस का नाम ले रहे हैं। यह हमारी जमायत के खिलाफ कोई साजिश भी हो सकती है।
इसे महज इत्तिफाक कैसे कह सकते हैं। जबकि हिरासत में लिए गए या इल्जाम में पकड़े गए लोगों का संबंध बजाब्ता अहले हदीस से रहा है?
हो सकता है। उनका झुकाव मेरी जमायत से रहा हो। लेकिन हमलोग ऐसी शिक्षा नहीं देते हैं। ट्रेनिंग की बात ही जुदा है। वे भटके हुए लोग हैं। मुमकिन है , बेरोजगार युवकों का किसी ने अहले हदीस को बदनाम करने और मुल्क में अशांति फैलाने के लिए इस्तेमाल किया हो। इससे इंकार नहीं कर सकते। अगर ऐसा होता तो, लक्खीसराय या झरिया से पकड़े गए लड़के गैरमुस्लिम नहीं होते।
कहा जाता है कि अहले हदीस को सऊदी अरब से फंडिंग होती है?
मैं बच्चों को ट़्युशन पढ़ाता हूं ताकि अपने बच्चों की ठीक से परवरिश कर सकूं। क्योंकि मुझे महज छह हजार रुपए ही तनख्वाह मिलती है। वहीं मस्जिद के खर्च के लिए चंदा किया जाता है। अगर सऊदी से मदद मिलती तो फिर न चंदा की जरूरत पड़ी, ना ही मैं ट्युशन करता।
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी की जान अहले हदीस क्यों लेना चाहता है?
यह सरासर इल्जाम है।
जितनी खबरें आ रही हैं या पटना ब्लास्ट मिसाल है।
मैंने पहले ही कहा कि ऐसी इजाजत न इस्लाम, ना ही अहले हदीस देता है। अगर किसी को मोदी से शिकायत है, तो जम्हूरियत है, उनका विरोध करें। उन्हें वोट न करें। सेकुलर मिज़ाज के लोगों को जिताएं।
गुजरात या हालिया मुजफ्फरनगर दंगे की प्रतिक्रिया हो या अन्याय के खिलाफ हो सकता है कि इन लड़कों को बरगला दिया गया हो?
हुजूर बहुत पहले कह गए हैं कि वतन से मुहब्बत करना ईमान का ही अंग है। अगर नाइंसाफी है, तो कानूनन लड़ाई करें। बम या गोली किसी मसले का हल नहीं है। उनकी मुख़ालिफ़त के नाम पर बेक़सूर बच्चों, औरतों, बुज़ुर्गों और नौजवानों को हलाक करना गुनाह है. ऐसा करने वालों की  जगह इस्लाम में नरक ही है. 
भास्कर के झारखंड संस्करण में 30 नवंबर 20 13 के अंक  में प्रकाशित
  

Digg Google Bookmarks reddit Mixx StumbleUpon Technorati Yahoo! Buzz DesignFloat Delicious BlinkList Furl

0 comments: on "मोदी को बुलेट से नहीं बैलेट से दें जवाब: अहले हदीस मस्जिद के इमाम "

एक टिप्पणी भेजें

रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.

न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)