बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

न रहा घर, न ही कोई आसरा, मां पहले ही गुज़र चुकी




















पाइलिन में पिता और छोटा भाई खो  चुके पवन की  कहानी

उसकी  आंखें लबालब हैं। मानो पाइलिन उतर आया हो। जबकि यह तूफ़ान तो अक्टूबर के  पहले सप्ताह आया था। मैं बात अरगोड़ा, रांची  के 22 साल के  पवन तिर्की की कर रहा हूं।  जिसके पिता और एक  छोटे भाई को  इस क़हर ने लील लिया।  अब वह  पंखे की तेज़ खड़-खड़ाहट  से भी कांप जाता है। घर तो रहा नहीं। अब उसका  पता है  , अशोक  नगर, रोड नंबर एक ।
पवन कहता है, दो दिन तक  तूफानी हवाओं के  साथ मुसलाधार बारिश होती रही । मज़दूरी कर तीन बच्चों को  पालने वाले बाबा गंदरू तिर्की  कभी इधर बाल्टी रखते, तो कभी उधर। हम तीनों भाई मैं  पवन, आकाश, पंकज बदन पर कथरी ओढ़े अपने बाबा की  मदद करते रहे। लेकिन खपरैल छत ने आसरा छोड़ दिया। दो अक्टूबर की  रात थकन ने हमें  दबोच लिया। जिसे जहां जगह मिली नींद के  आगोश में चला गया।  क्या पता था कि यह आखऱी नींद होगी।
पवन के  थरथराते होंठ से निकलता है, तब 12 बज रहा होगा। ज़ोर की  आवाज़ हुई। इतना शोर कभी न सुना था। मोहल्ले वाले बाबा का  नाम लेकर पुकार नहीं, मानो चीख रहे थे। मैं हड़बड़ा कर उठा।   वह कहते-कहते  चुप हो गया। खुद ही खामोशी तोड़ी। मैं जब उठा तो उसी स्थिति में रह गया अवाक । जैसे पूरे शरीर को  का ठ मार गया हो। हमारा मिटटी का घरोंदा हम सब पर मलबा बनकर सवार था। पड़ोसियों ने हम सभी को  बमुशकिल बाहर  निकाला। बाबा, आकाश और पंकज की हालत गंभीर थी। उनका कंठ  बंद था। सिर्फ आंखें उनकी  पीड़ा को  बयान कर रही थी। मोहल्ले वाले तीनों को  अस्पताल लेकर गए. जहां बाबा और आकाश ने दम तोड़ दिया।
अम्मा बहुत पहले ही गुजऱ गयी थी। बाबा से ही ममता और वात्सल्य मिलता था। घर भी तो न रहा। छोटे भाई पंकज को  लेकर मैं पड़ोसियों की भीख पर ज़िंदा हूं।  गरीबी ने पढऩे न दिया, लेकिन भाई को पढ़ाना चाहता हूं।  लेकिन  पडोसी कब तक  दया करते रहेंगे। मैं तो बस इतना चाहता हूं कि  सरकार वाजिब मुआवज़ा दे तो मैं कुछ कारोबार कर सकूं । घर बना सकूं । अब  पंकज का बाबा और अम्मा मैं हूं न!

यह है सरकार की  कहानी
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 15 अक्टूबर को  बुलाई आपदा बैठक  में पाइलिन से प्रभावित लोगों को  सात दिनों के  अंदर मुआवज़ा देने का  निर्देश दिया था  पवन ने 21 अक्टूबर को  डीसी और शहर अंचल कार्यालय में मुआवज़े के  लिए आवेदन दिया। लेकिन आज तक  उस पर कार्रवाई नहीं हुई है। महीने भर दफ्तरों का  चक्कर लगाकर यह आदिवासी युवक  हताश हो चुका  है। भाजपा व्यापार प्रकोष्ठ के ज्ञानदेव झा कहते हैं कि आदिवासी राज्य, आदिवासी  सीएम के  रहते आदिवासी युवक  की  गुहार जब अनसुनी है, दूसरों के  हित का  सोचना ही गलत है. जबकि  पवन बीपीएल कार्ड धारी  भी है।   

भास्कर रांची के 3 दिसंबर 2013 के अंक में प्रकाशित




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1 comments: on "न रहा घर, न ही कोई आसरा, मां पहले ही गुज़र चुकी "

रश्मि शर्मा ने कहा…

ऐसे लोगों को सरकार वक्‍त पर सहायता नहीं देगी तो फि‍र मोल क्‍या....

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