
बहनो! ड्रेस कोड की तलवार महज़ आप पर ही नहीं लटकती, भाई की नौकरी तक चली जाती है। तुमने दाढ़ी क्यों रखी? वामपंथी कहे जानेवाले कई कवि, पत्रकार, कथाकार और संपादक साथियों के इस सवाल से मुझे भी कई बार कोफ़्त हुई है। वरिष्ठ सहकर्मियों ने बार-बार सताया है...
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सिक्के का एक पहलू बेशक बहुत अच्छा, चमकीला और संतोषजनक है. लेकिन जिस तरह सिक्के के दुसरे पहलू को देखे बिना यह फ़ैसला नहीं किया जा सकता है कि वह खरा है या खोटा. हमें औरत के हैसियत के बारे में कोई फ़ैसला करना भी उसी वक़्त ठीक होगा जब हम उसका...
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ज़िन्दगी में आ गयी औरत
आदमी को खा गयी औरत
कौन है माँ-बाप.. भूले सब
इस तरह से छा गयी औरत
आदमी कमज़ोर है कितना
हां पता यह पा गयी औरत
चाह कर वो छूट न पाया
आ गयी फिर ना गयी औरत
रूप की ताकत समझती है.
बस यहीं उलझा गयी औरत
एक दिन जादू उतरता है
बन गयी अब माँ गयी औरत
--गिरीश पंकज
( कवि की आत्म-स्विकिर्ति मै औरतों का बहुत सम्मान करता हूँ. अच्छी...
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[माँ जैसा सुंदर और महत्वपूर्ण शब्द आज तक न हुआ. किसी फिल्म का संवाद मेरे पास माँ है! सब कुछ कह जाता है.यूँ तो इस विषय पर बहुत कुछ लिखा गया है और लिखा जाता रहेगा.लेकिन कवि कुलवंत सिंह की ये छंदबद्ध रचना अपनी बनावट और शिल्प में ध्यान अवश्य खींचती है.उन्हों...
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[आजकल सलीम खान नामक सज्जन से ढेरों लोग नाराज़ हैं!! भाई अविनाश ने तो महल्ला से ही उन्हें खारिज कर दिया! लेकिन उनका दर्द क्या है। एक शे'र ज़ेहन में उतर ता है:
तुमको मालूम नहीं है दिल को दुखाने वाले
यह जो मज़लूम हैं आहों में असर रखते हैं!
उनकी एक मेल मिली , जिसे पढ़कर मित्र-शायर 'अन्क़ा बरयारपुरी का शे'र बरबस याद आया:
जातिगत आधार पर छपती हैं रचनाएं...
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काफी दिनों से मैं अंतरजाल से दूर रहा. इन दिनों पुरानी मेल्स देख रहा हूँ। यहाँ मुझे बिहार अंजुमन नामक एक ग्रुप की मेल मिल गई.पेशे से पत्रकार और सशक्त हिन्दी कवि संजय कुंदन की इस रपट को आप लोगों के सामने लाना ज़रूरी इसलिए कि क्या ऐसा भी मुमकिन है!!!-सं.
संजय...
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शहर की बोलती इबारत
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फ़िल्म जागो के बहाने
मध्य- बिहार माओवादियों की हिंसक वारदातों के कारण हमेशा चर्चा में रहता है . शेरशाह सूरी मार्ग,जिसे अब एन.एच-2 कहा जाता है पर स्थित है मध्य -बिहार का प्राचीन शहर शेरघाटी.वैदिक काल...
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बीसवीं सदी की कहानियों का कई खंडों में संचयन करने के कारण चर्चित हुए, महेश दर्पण बहुत ही सुघड़ कथाकार भी हैं.गुन्जेश की कहानी पढ़ते हुए मुझे अनायास ही उनकी याद आ गयी.उनके कथा-तत्त्व भी कुछ इसी तरह के होते हैं.बिलकुल जाने हुए.लेकिन क्या ये कहानी भी...
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कविता का नया प्रेमी : सुधांशु फ़िरदौस
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कभी आपने कैलाश वाजपई की कविताओं को पढ़ा है.रहीम, खुसरो , जायसी और नानक के दोहों के साथ उतरे-डूबे हैं.यदि ऐसी पृष्ठ भूमि में मुक्तिबोध और निराला के दिग्दर्शन...
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भड़ास! नाम का एक ब्लॉग है और काफ़ी चर्चित भी.जिस किसी ने ये नाम रक्खा है कितना मौजूं है.दरअसल हम सब यहाँ अपनी-अपनी भड़ास ही तो निकालते हैं.जब कोई मंच न रह गया हो और अधिकाँश पत्र-पत्रिकाएं और चैनलों की रहबरी बाज़ार करे तो ये गूगेल महाराज की कृपा से ब्लॉग अच्छा माध्यम बन जाता है.कभी लघु-पत्रिकाओं ने अच्छा वैकल्पिक मंच उपलब्ध कराया था।
खैर। पिछले दिनों...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)