बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

सीने से चिपकाती है, हो कैसी भी संतान



[माँ जैसा सुंदर और महत्वपूर्ण शब्द आज तक न हुआ. किसी फिल्म का संवाद मेरे पास माँ है! सब कुछ कह जाता है.यूँ तो इस विषय पर बहुत कुछ लिखा गया है और लिखा जाता रहेगा.लेकिन कवि कुलवंत सिंह की ये छंदबद्ध रचना अपनी बनावट और शिल्प में ध्यान अवश्य खींचती है.उन्हों ने हमज़बान के लिए कविता दी, आभार !-सं. ]

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कवि-परिचय

जन्म : 11 January
रूड़की, उत्तरांचल

शिक्षा :
प्राथमिक एवं माध्यमिक : करनैलगंज, गोण्डा (उ. प्र.)
उच्च शिक्षा : अभियांत्रिकी, आई आई टी रुड़की (रजत पदक एवं 3 अन्य पदक)

सृजन : निकुंज (काव्य संग्रह), परमाणु एवं विकास (अनुवाद) प्रकाशित और कण - क्षेपण (प्रकाशनाधीन)
सम्मान : काव्य, लेख, विज्ञान लेखों, विभागीय हिंदी सेवाओं के लिए विभिन्न संस्थाओं
द्वारा पुरस्कृत
संप्रति : वैज्ञानिक अधिकारी, पदार्थ संसाधन प्रभाग, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र
मुंबई - 400085
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अमृत प्यार

माँ के प्यार की महिमा का, करता हूँ गुणगान,
कभी कमी न प्यार में होती, कैसी है यह खान ।
कष्ट जन्म का सहती है, फिर भी लुटाती जान,
सीने से चिपकाती है, हो कैसी भी संतान ।

छाती से दूध पिलाती है, देती है वरदान,
पाकर आंचल की छांव, मिलता है सुख बड़ा महान।
इसके प्यार की महिमा का, कोई नही उपमान,
अपनी संतति को सुख देना ही इसका अरमान ।

अंतस्तल में भरा हुआ है, ममता का भंडार,
संतानों पे खूब लुटाती, खत्म न होता प्यार ।
ले बलाएं वह संतति की, दे खुशियों का संसार,
छू न पाए संतानों को, कष्टों का अंगार ।

दुख संतति का आंख में बहता, बन कर अश्रुधार,
हर लेती वह पीड़ा सुत की, कैसा हो विकार ।
संकट आएं कितने भारी, खुद पर ले हर बार,
भाग्य बड़े हैं जिनको मिलता, माँ का अमृत प्यार ।

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3 comments: on "सीने से चिपकाती है, हो कैसी भी संतान"

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

कवि कुलवंत जी राष्ट्रीय स्तर के कवि हैं ....बहुत अच्छा लिखते हैं ....अक्सर पढ़ती रहती हूँ इन्हें ....माँ पर लिखी उनकी ये कविता भी सराहनीय है .....!!

kshama ने कहा…

Maa ke bareme naa jane kya,kya likha gaya hai,lekin phirbhi kam lagta hai..maa kee mahima aisee hai!

Bikhare sitarepe commentke liye tahe dilse shukriya!

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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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