तुमको मालूम नहीं है दिल को दुखाने वाले
यह जो मज़लूम हैं आहों में असर रखते हैं!
उनकी एक मेल मिली , जिसे पढ़कर मित्र-शायर 'अन्क़ा बरयारपुरी का शे'र बरबस याद आया:
जातिगत आधार पर छपती हैं रचनाएं यहाँ
यह नहीं उम्मीद थी इस दौर के अखबार से!
इस पीड़ा से कई गुज़रे हैं.हज़ार बार गुज़रे हैं।
मैं नदीम की मेल यहाँ साभार पेश कर रहा हूँ.जबकि उन्हों ने भी पोस्ट किया है.लेकिन ये सलाह ज़रूर दूँगा कि वोह नाहक़ परीशान न हों।
खून से लिखा हुआ भी बे-असर होता है अब
आप तो यूँ ही परेशां हैं स्याही के लिए
-शहरोज़ ]
एक बार एक बकरी किसी जगह फंस गयी थी और बहुत परेशान थी तभी वहां एक शेर आ गया. उस शेर को देखकर बकरी घबरा गयी और समझ गयी कि एक तो मैं मुसीबत में मुब्तिला हूँ, मुझे एक रक्षक की ज़रुरत थी लेकिन यह तो भक्षक आ गया! लेकिन शेर जब बकरी के नज़दीक पहुंचा तो उसने बकरी से कहा कि - बहन ! मैं तुम्हारी मदद करने आया हूँ. और इस तरह से उस शेर ने उस बकरी को उस जगह से निकाल लिया और अपनी पीठ पर बैठा कर उचित स्थान पर पहुंचा दिया.
इस पूरे घटनाक्रम को दूर बैठी एक चील देख रही थी उस चील को बहुत ज़्यादा आश्चर्य हुआ. वह सोचने लगी कि एक शेर जिसे उस बकरी को खा जाना चाहिए वह उसे खाने के बजाये उसकी मदद की! वह बकरी के पास पहुंची और शेर के द्वारा की गयी मदद का कारण जानना चाहा. बकरी ने कहा- उस शेर ने मेरी मदद इसलिए की क्यूंकि एक बार उसकी शेरनी ढूधमुहें बच्चे को छोड़ कर मर गयी थी और मैंने उस के बच्चे को ढूध पिलाया था!!! उस शेर को मेरा वह एहसान याद था जिसके बदले उसने मेरी आज जान बचाई.
चील को यह सब देख और सुन कर बड़ा अजीब लगा लेकिन वह इस घटनाक्रम से बहुत प्रभावित हुई और उसने भी अब यह सोच लिया कि वह भी ऐसा ही अब करेगी...इस पूरे घटनाक्रम को दूर बैठी एक चील देख रही थी उस चील को बहुत ज़्यादा आश्चर्य हुआ. वह सोचने लगी कि एक शेर जिसे उस बकरी को खा जाना चाहिए वह उसे खाने के बजाये उसकी मदद की! वह बकरी के पास पहुंची और शेर के द्वारा की गयी मदद का कारण जानना चाहा. बकरी ने कहा- उस शेर ने मेरी मदद इसलिए की क्यूंकि एक बार उसकी शेरनी ढूधमुहें बच्चे को छोड़ कर मर गयी थी और मैंने उस के बच्चे को ढूध पिलाया था!!! उस शेर को मेरा वह एहसान याद था जिसके बदले उसने मेरी आज जान बचाई.
एक बार एक खेत में नहर का बाँध टूट जाने से उसमें पानी आ गया और उसमें से बहुत से चूहे बिलों में से निकल निकल कर अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे थे। ऊँची जगह पर बैठी चील यह सब देख रही थी उसे उन चूहों पर बहुत दया आई और वह अपनी चोंच में उन्हें दबा कर ऊँची जगह पर ले आई। इस तरह से चील ने उन मरते हुए चूहों की मदद की लेकिन वे चूहे पानी में पूरी तरह भीग चुके थे, और काँप रहे थे यह देख चील ने उन्हें अपने दोनों पंखों के अन्दर ले लिया और उन्हें गर्मी देने लगी. कुछ देर में ही चूहे ठण्ड से निजात पा चुके थे. अब वह अपने स्वभावानुसार अन्दर ही अन्दर उस चील के पंख को काटने लगे और कुछ ही देर में उन्होंने उस चील को पंखहीन कर दिया.
फ़लस्वरूप चील अब उड़ने लायक़ भी नहीं रही और वहां से किसी तरह अपनी जान बचा कर उस बकरी के पास गयी और सारा माजरा सुनाया और उससे पूछा कि तुमने उस शेर पर एहसान किया था जिसके बदले में उसने तुम्हारी जान बचाई थी लेकिन मैंने उन चूहों की जान बचाई तो वे तो मेरी ही जान के दुश्मन बन गए!!!???
"एहसान भी ज़ात देख कर की जाती है" बकरी का जवाब था
"एहसान भी ज़ात देख कर की जाती है" बकरी का जवाब था
2 comments: on "खून से लिखा हुआ भी बे-असर होता है अब"
अच्छा व्यंग्य है. अल्लाह के फज़ल से आज तौऊ ने भी बिलकुल यही बात कही है.
dhanywaad~!
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी