आधुनिक वैश्विय सभ्यता में प्राचीन काल में नारी की दशा एवम् स्तिथियों की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप नारी की गतिशीलता अतिवादी के हत्थे चढ़ गयी. नारी को आज़ादी दी गयी, तो बिलकुल ही आजाद कर दिया गया. पुरुष से समानता दी गयी तो उसे पुरुष ही बना दिया गया. पुरुषों के कर्तव्यों का बोझ भी उस पर डाल दिया गया. उसे अधिकार बहुत दिए गए मगर उसका नारीत्व छीन कर. इस सबके बीच उसे सौभ्ग्य्वाश कुछ अच्छे अवसर भी मिले. अब यह कहा जा सकता है की पिछले डेढ़ सदी में औरत ने बहुत कुछ पाया है, बहुत तरक्की की है, बहुत सशक्त हुई है. उसे बहुत सारे अधिकार प्राप्त हुए हैं. कौमों और राष्ट्रों के उत्थान में उसका बहुत बड़ा योगदान रहा है जो आज देख कर आसानी से पता चलता है.
आईये देखें सिक्के का दूसरा पहलू...
उजाले और चकाचौंध के भीतर खौफ़नाक अँधेरे
नारी जाति के वर्तमान उपलब्धियां- शिक्षा, उन्नति, आज़ादी, प्रगति और आर्थिक व राजनैतिक सशक्तिकरण आदि यक़ीनन संतोषजनक, गर्वपूर्ण, प्रशंसनीय और सराहनीय है. लेकिन नारी स्वयं देखे कि इन उपलब्धियों के एवज़ में नारी ने अपनी अस्मिता, मर्यादा, गौरव, गरिमा, सम्मान व नैतिकता के सुनहरे और मूल्यवान सिक्कों से कितनी बड़ी कीमत चुकाई है. जो कुछ कितना कुछ उसने पाया उसके बदले में उसने कितना गंवाया है. नई तहजीब की जिस राह पर वह बड़े जोश और ख़रोश से चल पड़ी- बल्कि दौड़ पड़ी है- उस पर कितने कांटे, कितने विषैले और हिंसक जीव-जंतु, कितने गड्ढे, कितने दलदल, कितने खतरे, कितने लूटेरे, कितने राहजन और कितने धूर्त मौजूद हैं.
आईये देखते हैं कि आधुनिक सभ्यता ने नारी को क्या क्या दिया
व्यापक अपमान
- समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में रोज़ाना औरतों के नंगे, अध्-नंगे, बल्कि पूरे नंगे जिस्म का अपमानजनक प्रकाशन.
- सौन्दर्य-प्रतियोगिता... अब तो विशेष अंग प्रतियोगिता भी... तथा
- फैशन शो/ रैंप शो के कैट-वाक् में अश्लीलता का प्रदर्शन और टीवी चैनल द्वारा ग्लोबली प्रसारण
- कारपोरेट बिज़नेस और सामान्य व्यापारियों/उत्पादकों द्वारा संचालित विज्ञापन प्रणाली में औरत का बिकाऊ नारीत्व.
- सिनेमा टीवी के परदों पर करोडों-अरबों लोगों को औरत की अभद्र मुद्राओं में परोसे जाने वाले चल-चित्र, दिन-प्रतिदिन और रात-दिन.
- इन्टरनेट पर पॉर्नसाइट्स. लाखों वेब-पृष्ठों पे औरत के 'इस्तेमाल' के घिनावने और बेहूदा चित्र
- फ्रेंडशिप क्लब्स, फ़ोन सर्विस द्वारा दोस्ती.
- देह व्यापार, गेस्ट हाउसों, सितारा होटलों में अपनी 'सेवाएँ' अर्पित करने वाली संपन्न व अल्ट्रामाडर्न कॉलगर्ल्स.
- रेड लाइट एरियाज़ में अपनी सामाजिक बेटीओं-बहनों की ख़रीद-फ़रोख्त. वेश्यालयों को समाज और क़ानून या प्रशासन की ओर से मंजूरी.
- सेक्स-वर्कर, सेक्स-ट्रेड, सेक्स-इंडस्ट्री जैसे आधुनिक नामों से नारी-शोषण तंत्र की इज्ज़त-अफ़ज़ाई व सम्मानिकरण.
- नाईट क्लब और डिस्कोथेक में औरतों और युवतियों के वस्त्रहीन अश्लील डांस, इसके छोटे रूप में सामाजिक संगठनों के रंगरंज कार्यक्रमों में लड़कियों के द्वारा रंगा-रंग कार्यक्रम को 'नृत्य-साधना' का नाम देकर हौसला-अफ़ज़ाई.
- हाई-सोसाईटी गर्ल्स, बार-गर्ल्स के रूप में नारी यौवन व सौंदय्र की शर्मनाक दुर्गति.
यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)
- फब्तियों की बेशुमार घटनाएँ.
- छेड़खानी की असंख्य घटनाएँ, जिनकी रिपोर्ट नहीं होती. देश में सिर्फ दो वर्षों में (2005-06) 36,617 घटनाएँ.
- कार्य-स्थल पर यौन उत्पीड़न. (Women unsafe at work place)
- सड़कों, गलियों, बाज़ारों, दफ़्तरों, अस्पतालों, चलती कारों, दौड़ती बसों आदि में औरत असुरक्षित. (Women unsafe in the city)
- ऑफिस में नौकरी बहाल रहने के लिए या प्रमोशन के लिए बॉस द्वारा महिला कर्मचारी का यौन शोषण
- टीचर या ट्यूटर द्वारा छात्राओं का यौन उत्पीड़न.
- नर्सिंग होम/अस्पतालों में मरीज़ महिलाओं का यौन-उत्पीड़न.
यौन-अपराध
- बलात्कार- दो वर्ष की बच्ची से लेकर अस्सी साल की वृद्धा से- ऐसा नैतिक अपराध, जिसकी ख़बर अख़बारों में पढ़कर किसी के कानों में जूं तक नहीं रेंगती.मानों किसी गाड़ी से कुचल कर कोई चुहिया मर गयी हो.
- 'सामूहिक बलात्-दुष्कर्म' इतने आम हो गएँ हैं की समाज ने ऐसी दुर्घटनाओं की ख़बर पढ़-सुन कर बेहिसी और बेफ़िक्री का खुद को आदि बना लिया है.
- युवतियों, बालिकाओं, किशोरियों का अपहरण, उनके साथ हवास्नाक ज़्यादती, सामूहिक ज्यात्दी और हत्या भी...
- सिर्फ़ दो वर्षों (2005-06) आबुरेज़ी (बलात्कार) की 35,195 वाक़ियात. अनरिपोर्टेड घटनाएँ शायेद दस गुना ज़्यादा हों.
- सेक्स-माफिया द्वारा औरतों के बड़े-बड़े संगठित कारोबार. यहाँ तक कि विधवा आश्रम की विधवा भी सुरक्षित नहीं.
- विवाहित स्त्रियों का पराये मर्द से सम्बन्ध (Extra Marital Relations) इससे जुड़े अन्य अपराध हत्याएं और परिवार का टूटना-बिखरना आदि.
औरतों पर पारिवारिक यौन अत्याचार (कुटुम्बकीय व्यभिचार) व अन्य ज्यातादियाँ
- बाप-बेटी, बहन-भाई के पवित्र रिश्ते भी अपमानित.
- आंकडों के अनुसार बलात-दुष्कर्म में लगभग पचास प्रतिशत निकट सम्बन्धी आरोपी.
- दहेज़-सम्बन्धी अत्याचार व उत्पीड़न. जलने, हत्या कर देने आत्म-हत्या पर मजबूर कर देने, सताने, बदसुलूकी करने, मानसिक यातना देने की बेशुम्मार घटनाएँ. कई बहनों का एक साथ सामूहिक आत्महत्या दहेज़ के दानव की देन है.
कन्या भ्रूण-हत्या (Female Foeticide) और कन्या वध (Female Infanticide)
- बच्ची का क़त्ल उसके पैदा होने से पहले माँ के पेट में ही. कारण: दहेज़ व विवाह का क्रूर और निर्दयी शोषण-तंत्र.
- पूर्वी भारत में एक इलाके में यह रिवाज़ है कि अगर लड़की पैदा हुई तो पहले से तयशुदा 'फीस' के एवज़ में दाई उसकी गर्दन मरोड़ देगी और घूरे में दबा आएगी. कारण: वही दहेज़ व विवाह का क्रूर और निर्दयी शोषण-तंत्र और शादी के नाकाबिले बर्दाश्त खर्चे.
- कन्या वध के इस रिवाज़ के प्रति नारी-सम्मान के ध्वजावाहकों की उदासीनता.
समाधान:
नारी कि उपरोक्त दशा हमें सोचने पर मजबूर करती है और आत्म-ग्लानी होती है कि हम मूक-दर्शक बने बैठे हैं. यह ग्लानिपूर्ण दुखद चर्चा हमारे भारतीय समाज और आधुनिक तहज़ीब को अपनी अक्ल से तौलने के लिए तो है ही साथ ही नारी को स्वयं यह चुनना होगा कि गरीमा पूर्ण जीवन जीना है या जिल्लत से.
नारी जाति की उपरोक्त दयनीय, शोचनीय, दर्दनाक व भयावह स्थिति के किसी सफल समाधान तथा मौजूदा संस्कृति सभ्यता की मूलभूत कमजोरियों के निवारण पर गंभीरता, सूझबूझ और इमानदारी के साथ सोच-विचार और अमल करने के आव्हान के भूमिका-स्वरुप है.
लेकिन इस आव्हान से पहले संक्षेप में यह देखते चले कि नारी दुर्गति, नारी-अपमान, नारी-शोषण के समाधान अब तक किये जा रहे हैं वे क्या हैं? मौजूदा भौतिकवादी, विलास्वादी, सेकुलर (धर्म-उदासीन व ईश्वर विमुख) जीवन-व्यवस्था ने उन्हें सफल होने दिया है या असफल. क्या वास्तव में इस तहज़ीब के मूल-तत्वों में इतना दम, सामर्थ्य व सक्षमता है कि चमकते उजालों और रंग-बिरंगी तेज़ रोशनियों की बारीक परतों में लिपटे गहरे, भयावह, व्यापक और जालिम अंधेरों से नारी जाति को मुक्त करा सकें???
[हर लेखक या हर आम से लेकर ख़ास व्यक्ति के अपने-अपने विचार और अभियक्ति के पैमाने होते हैं.सहमती और असहमति के भी अंदाज़ और आंकलन तथा पठान-पाठन के भी अपने आग्रह-पूर्वाग्रह हैं.पाठक कृपया कर आलेख को पढने के बाद ही अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करें.फ़िज़ूल की बहस में अपना समय नष्ट न करें.समाज के निर्माण में कहीं न कहीं हमारा भी योगदान शामिल रहता है.भाई सलीम का आभार लेख हमज़बान में देने के लिए ..सं.]
6 comments: on "सलीम खान का नारी-विमर्श"
बहुत खूब हमें लगता है इसे पढकर हमारी रचना खाला भी खुश होजाएंगी, चाहे हैडिंग में किसी ज्ञानी या विज्ञानी का नाम भी क्यूं न हो, बधाई भी तब दूंगा जब उनका कमेंटस आजाएगा,
Satya ke kareeb le jate vichar.
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अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
sochne ko majboor karte mazameen hain!
औरत का शोषण हर जगह हो रहा है. अपने को विकसित कहने वाले देश आज औरत की आजादी के नाम पर उसका शोषण कर रहे हैं.
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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी