भड़ास! नाम का एक ब्लॉग है और काफ़ी चर्चित भी.जिस किसी ने ये नाम रक्खा है कितना मौजूं है.दरअसल हम सब यहाँ अपनी-अपनी भड़ास ही तो निकालते हैं.जब कोई मंच न रह गया हो और अधिकाँश पत्र-पत्रिकाएं और चैनलों की रहबरी बाज़ार करे तो ये गूगेल महाराज की कृपा से ब्लॉग अच्छा माध्यम बन जाता है.कभी लघु-पत्रिकाओं ने अच्छा वैकल्पिक मंच उपलब्ध कराया था।
खैर। पिछले दिनों जब खुशबू की चर्चा करते समय उनकी अनदेखी किए जाने का सवाल उठाया था तो कहीं अंतरे-कोने में भी किंचित ये भान-गुमान न था कि लोग इस और ध्यान देंगे.लेकिन हमज़बान के बाद साप्ताहिक के बाद अब मासिक आवृति में प्रकाशित हो रही पत्रिका आउटलुक , नवम्बर २००८ का अंक देख कर अच्छा लगा.संपादक नीलाभ मिश्र ने अपना स्तम्भ खुशबू को ही केन्द्र में रख कर लिख रक्खा था.इसी अरसे में इंडिया टुडे (हिन्दी) के असोसिएट कॉपी एडिटर सुदीप ठाकुर का फ़ोन आ गया.भाई, खुशबू का नम्बर दो!! टुडे के विशेष अंक में उन पर स्टोरी करनी है.हमज़बान पर खुशबू के बारे में पढ़ा। मैं उनका फोन नम्बर कहीं नोट नहीं कर पाया था.तुंरत पत्रकार-मित्र उर्दू दैनिक हिन्दुस्तान एक्सप्रेस के ब्यूरो- चीफ शिबली ने घंटे भर के अन्दर परेशानी दूर की और हमने इस तरह सुदीप जी को खुशबू का, उनके घर का फोन नम्बर मुहैय्या करा दिया.इंडिया टुडे के २६ नवम्बर के विशेषांक में आप चाँद को चूमती कामयाबी शीर्षक कथा -आलेख पृष्ठ २४ पर पढ़ सकते हैं.
3 घंटे पहले
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- अल्लामा जमील मज़हरी