हज
के नाम पर मुसलमानों से लिया
जाता दोगुना पैसा
सैयद
शहरोज़ क़मर की क़लम से
गैर-इस्लामिक बताते हुए हज सब्सिडी को समाप्त करने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 8 मई 2012 को दिया था। लेकिन तीन साल के बाद भी ऐसा नहीं हो सका। अब यह मांग झारखंड में बुलंद हो रही है। रांची एयरपोर्ट पर आप जाएं, तो इसका पता आजमीन-ए-हज से मिलकर हो जाता है। अधिकतर लोगों का कहना है कि सरकार सब्सिडी के नाम पर मुसलमानों को बेवकूफ बना रही है। हज के नाम पर हर यात्री से करीब 50 से 60 हजार अतिरिक्त ले लिए जाते हैं। इस प्रकार हर साल उनकी जेब से हर साल 750 करोड़ सरकार ले लेती है। जबकि कहा जाता है कि आपको सरकार प्रतिवर्ष 600 करोड़ रुपए से ज्यादा रियायत दे रही है। गौरतलब है कि हज कमेटी की ओर से हर वर्ष हज पर जाने वाले सवा लाख लोगों को सब्सिडी मिलती है। इसका लाभ निजी ऑपरेटर के जरिये जाने वाले करीब 50 हजार लोगों को नहीं मिलता।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस आफताब आलम और रंजना प्रकाश देसाई की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि दस सालों के भीतर हज सब्सिडी खत्म कर देनी चाहिए। सन् 2006 में विदेश परिवहन और पर्यटन पर बनी एक संसदीय समिति ने भी एक समय सीमा के भीतर इसे खत्म करने के सुझाव दिए थे।
बदनाम
करने की कोशिश बंद हो
कैलाश
मानसरोवर और ननकाना साहिब
गुरुद्वारा की यात्रा के लिए
भी सरकार सब्सिडी देती है।
लेकिन हज सब्सिडी के नाम पर
मुसलमानों को बदनाम करने की
कोशिश बंद होनी चाहिए। कोर्ट
के फैसले का सम्मान करते हुए
इसे बंद करना चाहिए।
नदीम
इक़बाल,
झाविमो
अल्पसंख्यक मोर्चा
लगातार
की जा रही हटाने की मांग
भारत
में मुसलमानों ने कभी हज के
लिए सब्सिडी की मांग की नहीं
है। बल्कि इसे हटाने की मांग
लगातार की जाती रही है। मुसलमानो
को हज के लिए सब्सिडी नहीं
चाहिए। यदि मुसलमानो के प्रति
हमदर्दी तो उनमें शिक्षा के
प्रचार-प्रसार
के लिए सार्थक योजना बने।
इरफ़ान
आलम,
युवा
मुस्लिम मंच
सब्सिडी
ऊंट के मुंह में जीरा
सरकार
एयर इंडिया को हर साल 200
से 300
करोड़
देती है। लेकिन सच यह है कि हर
आजमीन-ए-हज
को सब्सिडी के नाम पर मात्र
दस हजार की ही छूट मिलती है।
यह ऊंट के मुंह में जीरे के
समान है। सरकार इसे बंद करे
और इसके बहाने होती सांप्रदायिक
राजनीति पर रोक लगाए।
खुर्शीद
हसन रूमी,
प्रवक्ता,
राज्य
हज कमेटी
मूर्ख
बनाना बंद करे सरकार
आम
दिनों में हिंदुस्तान से
मक्का-मदीना
जाने वालों का खर्च 60
हजार से
अधिक नहीं पड़ता। वे इतने ही
खर्च में उमरा कर लौट आते हैं।
लेकिन सरकार इसके लिए हज के
समय तीन गुना पैसा वसूलती है।
उस पर तुर्रा यह है कि सब्सिडी
दी जा रही है। सरकार मूर्ख
बनाना बंद करे।
ज़बीउल्लाह,
हज
वोलेंटियर्स ऑरगेनाइजेशन
शरीअत
नहीं देती इजाजत
शरीअत
के मुताबिक हज उसी पर फर्ज है,
जो
साहिब-ए-निसाब
हो। यानी जिसपर जकात फर्ज है।
दूसरे लफ्जों में जिसकी आर्थिक
हैसियत अच्छी हो। इसलिए हज
के सफर में सब्सिडी के नाम पर
किसी तरह की मदद की रकम हासिल
करना सही नहीं है। इससे इबादत
में खलल ही पैदा होगा।
क़ारी
जान मोहम्म्द रज्वी,
शहर क़ाज़ी,
रांची
मदद
नहीं,
नाइंसाफी
है
यदि
कोई बिना सरकारी दखल के हज के
लिए मक्का-मदीना
का सफर करे,
तो उसे
एक लाख से ज्यादा खर्च नहीं
करना पड़ेगा। इसमें आने-जाने
का किराया,
वहां
पंद्रह से बीस दिनों तक ठहरने
और खाने-पीने
का खर्च भी शामिल है। लेकिन
सरकार इसी के लिए पौने दो से
सवा दो लाख रुपए एक आजमीन-ए-हज
से वसूलती है। यह मदद नहीं,
बल्कि
सरासर नाइंसाफी है। लूट है।
मौलाना
कुतुबुद्दीन रिजवी,
नाजिम
आला,
एदारा-ए-शरीआ
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