अभावों
में गुजरा बचपन,
मैट्रिक
से आगे न पढ़ सकीं
पर दूसरों
को शिक्षा व हुनर का पढ़ा
रहीं पाठ
सैयद
शहरोज़ क़मर की क़लम से
संघर्ष
के बल शिखर तक पहुंचने की आपने
कई कहानी पढ़ी होगी। लेकिन
अभावों से लड़कर दूसरों को
आत्मनिर्भर बनाने की मिसाल
निसंदेह कम मिलती है। बात
आनंदपुर,
रांची
की विलचन एक्का की है,
जिनका
बचपन घोर अभाव में बीता। हर
छुट्टी के दिन पौ फटने के साथ
ही वह घर से जंगल के लिए निकल
जाती थीं। दिनभर घूम-घूमकर
वह करंज,
महुआ और
इमली इकट्ठा कर बाजारों में
बेचतीं। इससे कॉपी-किताब
खरीद लातीं। पढ़ाई के दौरान
ही सिलाई-बुनाई
और कढ़ाई के गुर सीखती रहीं।
जब किसी तरह मैट्रिक कर लिया,
तो उनके
लिए कुछ करने की ठान ली,
जो बच्चे
गरीबी के कारण पढ़ नहीं पाते,
या हुनर
के अभाव में जिनके सामने
जीविकोपार्जन की समस्या रहती
है। आज विलचन की जलाई शिक्षा
और हुनर की मशाल से ढेरों
जिंदगियां रौशन हैं।
बेसहारा
बच्चियां का तालीमी सहारा
विलचन
ने अपने गृहग्राम खरसीदाग
में 2008
में आवासीय
विद्यालय खोला। इसमें 50-50
लड़के-लड़कियाें
को नि:शुल्क
पढ़ाने का संकल्प था। लेकिन
आर्थिक संकट के कारण स्कूल
अधिक दिनों तक न चल सका। उसे
बंद करना पड़ा। लेकिन 2007
में शुरू
अनाथ,
आदिवासी
व बेसहारा लड़कियों की मुफ्त
कोचिंग क्लासेस आज भी जारी
है। इसमें कक्षा आठ से मैट्रिक
तक लड़कियों को पढ़ाया ही नहीं
जाता,
एवीआई
की मदद से कॉपी,
किताब
और पेंसिल-कलम
भी उपलब्ध कराया जाता है। इन
बच्चों को पढ़ाने का दायित्व
सुसन्ना कुजूर और सविता कुमारी
बखूबी निभाती हैं। इसका लाभ
खरसीदाग के अलावा कुदासूद,
सहेरा,
कुटियातु,
तेतरी,
मालटी,
डाहुओली
और चरनाबेड़ा गांवों को मिल
रहा है।
दो
हजार से अधिक हो चुकीं स्वावलंबी
विलचन
ने 1994
में आरोही
नामक समाजिक संस्था की स्थापना
खूंटी में की। आसपास के गांवों
की महिलाओं को कैंडल,
साबुन,
आर्टिफीशियल
ऑरनामेंट,
लाह की
चूड़ी और गुलदस्ता बनाना सिखाने
लगीं। जब लोगों का सहयोग मिलने
लगा,
तो उन्होंने
रांची स्थित आनंदपुर के अपने
खपरैल घर को ही केंद्र बना
लिया। यहां रांची के स्लम की
महिलाएं जुड़ीं। अब प्रशिक्षण
का दायरा बढ़ा ही,
प्रशिक्षणार्थियों
की संख्या भी बढ़ी। उन्होंने
250
स्वयं
सहायता समूह का गठन करवाया।
इनकी निगरानी में अब तक दो
हजार से अधिक महिलाएं पापड़,
मशरूम
उत्पादन,
कैंडल
मेकिंग और सिलाई-कढ़ाई
सीखकर आत्मनिर्भर बन चुकी
हैं। अपने-अपने
स्तर पर काम शुरू कर आज घर व
परिवार की आर्थिक संबल हैं।
भास्कर,
रांची
के छह सितंबर 2015
के अंक
में प्रकाशित
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