बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

चुप होंगे साहित्यकार-कवि

टिटिहरी गाएगी मृत्युराग अदनान कफ़ील की कविताएं आताताई सुनो साथी ! उस दिन की कल्पना करो जब आएगा आताताई अपने लश्कर के साथ इन मक्खन-सी मुलायम सड़कों को रौंदते हुए कुचलते हुए हरी दूब को। उस दिन तुम्हारे चौपाल पर धूल उड़ेगी कबूतर दुबक...
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गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

जांनिसार के नाम सफ़िया के ख़त

पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे सैयद एस.तौहीद की पेशकश नए विकल्पों की तलाश में जब जांनिसार अख़्तर  भोपाल से बंबई आए तो पत्नी सफ़िया वहीँ रुक गयी थी. आपके साथ आपके बच्चे सलमान एवं जावेद अख़्तर भी रह थे.  सफ़िया हमीदिया कालेज...
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बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

किसको राहत देती हैं संघ की बातें

चित्र: गूगल से साभार हमारी अतियों से माहौल और बिगड़ेगा ही  भवप्रीतानंद की क़लम से आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने जब हिंदू महिलाओं को कितने बच्चे जन्म दें के मुद्दे पर बीजेपी के कुछ सांसदों को अघोषित रूप से फटकार लगाई थी तो यह भान स्वभाविक...
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शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

‘मुर्दहिया’ के बहाने लोक-चिंता

ज़मीन की अतल गहराईयों में धँसी थी जिसकी जड़े   सुनील यादव  की क़लम से मुर्दहिया तद्भव में छप रही थी उससे पहले मैं प्रो. तुलसी राम को बहुत कम जानता था, अगर जानता था तो गोरख पाण्डेय पर उनके अविस्मरणीय...
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मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

के होतई बिहार के मांझी

चित्र: गूगल से साभार   बिहार के सुशासन को चुनौती देते कुछ तत्वभवप्रीतानंद की क़लम सेइंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस पार्टी को अपना नेता चुनने में कोई खास परेशानी नहीं हुई थी। दल की एकता  और गांधी परिवार की आशक्ति ने एकमत से राजीव...
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महज़ इक सुख़नवर का जाना नहीं कलीम

  कलीम आजिज़ एक गुमनाम शायर का फ़साना सिद्धान्त मोहन की क़लम से कलीम आजिज़, यानी वह शख्स जो मीर की रवायत को अब तक बनाए रखे हुए था, हमें और उर्दू शायरी छोड़ चले गए. यह छोड़कर जाना सिर्फ़ एक सुखनवर के गुज़र जाने का होता तो कोई बात भी थी, लेकिन...
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रविवार, 15 फ़रवरी 2015

तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो : कलीम आजिज़

कलीम आजिज़ इंक़लाबी शायर का अंदाज़ जुदा  1. इस नाज़ से, अंदाज़ से तुम हाये चलो हो रोज एक ग़ज़ल हमसे कहलवाये चलो होरखना है कहीं पांव तो रक्खो हो कहीं पांव चलना जरा आ जाये तो इतराये चलो होदीवान-ए-गुल क़ैदी-ए-जंजीर है और तुम क्या ठाठ...
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शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

दिल में उतरी अरविंद की सादगी

दिल्ली में बस कुछ नहीं, आप ही आप  चित्र: गूगल से साभार भवप्रीतानंद की क़लम से अरविंद केजरीवाल दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिले असाधारण बहुमत पर अचंभित हैं, और कह रहे हैं, यह बहुमत डरानेवाला है। आप कार्यकर्ताओं को चेता रहे हैं,  अधिक...
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गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

रेड ज़ोन यानी झारखंड का औपन्यासिक दस्तावेज़

समस्याओं को समग्रता में डायग्नोस करता उपन्यास गुंजेश की क़लम से हम अपनी पीढ़ी में अंतिम इतिहास नहीं लिख सकते, लेकिन हम परंपरागत इतिहास को रद्द कर सकते हैं और इन दोनों के बीच प्रगति के उस बिंदु को...
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शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

समय की बेचैनियों से बनीं शाहनाज़ की कविताएँ

राजेश जोशी की क़लम से आँसुओं से भीगी ताज़ा लहू में डूबी कविता लिखती हूँ काट देती हूँ फिर लिखती हूँ ! शाहनाज़ की ये कविताएँ गुस्से , खीज , गहरी करूणा ,स्मृतियों और हमारे समय की बेचैनियों से बनी कविताएँ हैं। इनमें गहरी हताशा का स्वर है...
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