बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

सोमवार, 21 जुलाई 2014

पंच को राहत देती फ़िलस्तीन में गूंजती मासूमों की चीख़

फ़राह शकेब की क़लम से अपने ही देश में और अपनी ही मातृभूमि पर अजनबी और बेगानों की तरह रहने की तकलीफ आप शायद तब तक नहीं समझ सकते जब तक स्वयं आप दर्द की उन गलियों से गुज़रे न हों. अगर इस दर्द का जीवंत रूप देखना हो तो फ़िलस्तीन की तरफ एक...
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रविवार, 20 जुलाई 2014

वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश पानी

नई पौध  सरोध्या यादव की क़लम से काश ये दुनिया मेरा कैनवास होतामैं एक पेन्टर हूँअपनी कल्पना को कैनवास पर उतारती हूँमन के भाव कुछ टेढ़ी-मेढ़ी लाइनों और रंगो सेकोरे कागज़ पर सपना सवारती हूँकाश ये दुनिया मेरा कैनवास होतामेरा ब्रश उसमें भी...
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रविवार, 13 जुलाई 2014

अभाव में दम तोड़ता नन्हा फुटबॉलर जागो

झारखंड के सिंहभूम में फुटबॉल की बन सकती है नर्सरी   फोटो: मुन्ना झा मुन्ना कुमार झा की क़लम से  जोगो उन बेशकीमती प्रतिभावान बच्चों में से है, जो गरीबी की मार झेलते हुए भी फुटबॉल दम लगा कर खेलता है। बिना किसी जूते के नंगे...
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शनिवार, 12 जुलाई 2014

इजराइल की बेशर्म हठ खुद उसकी ज़ुबानी

 तुम मेरा कुछ भी न बिगाड़ पाओगे    फोटो गूगल साभार  शहरोज़ की क़लम से मेरे बच्चों को तपती भट्ठियों में डाल दिया गया. उसकी मुस्कान अचानक चीखों में बदल जाती हैं, मैं चलते-चलते रुक जाता हूँ. मेरी बेटियों और बहनों...
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मंगलवार, 8 जुलाई 2014

पूरे-पूरे आधे-अधूरे

सईद अय्यूब की कहानी मैं उनकी हरकतें देखकर दरवाजे पर ही ठिठक कर रुक गया था. कमरे में कोई कश्मीरी लोक गीत गूँज रहा था जिसके बोल समझना मेरे लिए मुश्किल था. पर गायिका शमीमा आज़ाद की आवाज़ मैं पहचान सकता था, जो इतनी मधुर थी कि किसी कबाड़ से...
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रविवार, 6 जुलाई 2014

ख़ामोश लब की सदाएं

अनवर सुहैल की कविताएं एक  ------मुझेगाली और गोली सेलगता नहीं डरक्योंकिमेरे पास हैएक क़लम एक सोचएक स्वप्नएक उम्मीदऔर लाखों-लाख लोगों केख़ामोश लब की सदाएं ....तुम्हारीगालियाँ और गोलियांमेरा कुछ भी बिगाड़ नही सकतीं....दो----जुर्म हैखून...
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मंगलवार, 1 जुलाई 2014

फ़ारसी न ही अरबी, कहाँ से आया नमाज़ शब्द

संस्कृत शब्द है नमाज़ शहरोज़ की क़लम से इन दिनों रमज़ान या रमादान को लेकर चर्चा ख़ूब है. जबकि इसमें महज़ उच्चारण का फ़र्क़ है. शब्द एक ही है. दरसअल अरबी में इसे रमादान कहते हैं और उर्दू में रमज़ान। ऐसा इसलिए है कि फ़ारसी या अरबी लिपि में...
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