बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

मीडिया में मुस्लिम औरत

शिरीष खरे की क़लम से   बीते दिनों बिट्रेन के मशहूर अख़बार ‘द गार्जियन’ ने मोबाइल से दो मिनिट का ऐसा वीडियो बनाया जिसमें पाकिस्तान की स्वात घाटी के कट्टरपंथियों ने 17 साल की लड़की पर 34 कोड़े बरसाए थे। इसी तरह के अन्य वीडियो के...
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माँ कहती थी

  सी.सुमन की कविताएँ मुश्किल राहो को करना हो आसां तो दर्द किसी को ना देना . माँ कहती थी . २ माँ कहती थी शाम होते ही घर लौट आना बाहर दरिंदगी बहुत है दिन मे अपनों का चेहरा पहचान नहीं पाते हैतो रात का एतबार कौन करे . ३ माँ...
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गुरुवार, 29 जुलाई 2010

बहुजन माया नहीं हक़ीक़त

  दलित की बेटी से बैर क्यों ! सैयद एस क़मर की क़लम से  ज्योति  बाफूले ,पेरियार स्वामी और बाबा साहब आंबेडकर दलित आन्दोलन के आदर्श और प्रेरक माने जाते हैं.कालांतर में बाबू जगजीवन राम और कांशीराम ने आन्दोलन को दिशा...
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बुधवार, 28 जुलाई 2010

अथ भारतीय फ़ुटबाल कथा द्वारा ईशान

आवेश तिवारी की क़लम से  सचिन और सानिया को जानने वाले ईशान को नहीं जानते होंगे . १४ साल का ईशान भी सचिन और सानिया को नहीं जानता ,उसकी निगाहें सपनों में भी गोल पोस्ट की ओर तेजी से बढते हुए अग्रिम पंक्ति के विरोधी खिलाड़ियों की ओर...
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गुरुवार, 22 जुलाई 2010

बिहार में माओवादी: यानी पैसा उगाओ

राकेश पाठक की क़लम से जिस जनपक्षधरता को लेकर नक्सलपंथ का गठन हुआ था , संघटन के लोग खुद उससे आज विमुख हो गए है. अब नक्सल गरीबो के हक़ हुकुक के लिए आवाज उठाने वाला संघटन न रहकर एक लिमिटेड कम्पनी बन गयी है जिसका टर्न ओवर कई हज़ार करोड़...
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मंगलवार, 20 जुलाई 2010

व्यवस्थाविरोधी हर पत्रकार नक्सली नहीं होता

फर्जी मुठभेड़ पुलिस का चरित्र-सा बन गया है. अपनी असफलताओं  की खीझ निकलने के लिए पुलिस ऐसा करती है. पत्रकार हेमचंद्र पांडे उर्फ हेमंत पांडे की मौत हमें सोचने पर विवश करती है. लेकिन मै इस बात का पक्षधर हूँ, कि चाहे पत्रकार हो, लेखक हो,...
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अघोषित आपातकाल में पत्रकारों की भूमिका

स्‍वतंत्र पत्रकार हेमचंद्र पांडे उर्फ हेमंत पांडे की फर्जी मुठभेड़ में हुई मौत ने साफ कर दिया है कि भारतीय पत्रकार आज एक अघोषित आपातकाल की स्थितियों में काम कर रहे हैं। संयुक्‍त राष्‍ट्र की संस्‍था युनेस्‍को ने उन परिस्थितियों की जांच किए जाने की...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)