बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

बिहार में माओवादी: यानी पैसा उगाओ














राकेश पाठक की क़लम से


जिस जनपक्षधरता को लेकर नक्सलपंथ का गठन हुआ था , संघटन के लोग खुद उससे आज विमुख हो गए है. अब नक्सल गरीबो के हक़ हुकुक के लिए आवाज उठाने वाला संघटन न रहकर एक लिमिटेड कम्पनी बन गयी है जिसका टर्न ओवर कई हज़ार करोड़ रूपये से ज्यादा है..न तो अब वैसे जमींदार रहे और न ही दलितों को दास बनाकर उनका शोषण करने वाले भूपति.शायद यही वजह है कि नक्सली अपने कार्यशैली में काफी बदलाव ला चुके है. जुल्म और बदले की भावना उतना बड़ा घटक नहीं रहा इस संघटन से जुड़ने का..बिहार में रोजगार के अभाव में लोग नक्सली संघटन से जुड़ रहे है..नक्सली बतौर वेतन का भुगतान कर रहे है अपने कामरेडों को.और कामरेड भी पैसे, रोजगार और पॉवर के चक्कर में बन्दूक उठाने को तैयार है. जनसत्ता में नक्सली संघटन पर लम्बी रिपोर्ट सुरेन्द्र किशोर जी की पढ़ी. कई मुद्दे और कारण अब अप्रासंगिक लगे. बिहार के औरंगाबाद की स्थिति भी काफी बदल चुकी है मध्य बिहार में अब नक्सलियों का एकमात्र उदेश्य पैसा कमाना रह गया है नीति सिद्दांत जैसी कोई चीज नहीं रह गयी. शोषण का तरीका भी बदल गया है जाति बहुलता वाले क्षेत्र में खुद नक्सली संघटन के लोग वही करते है जो उनके इर्द-गिर्द रहने वाले उन तथाकथित नेताओं को बताते है.नक्सलियों ने खुद एक शोषक वर्ग खड़ा कर दिया है जो सचमुच के "जन " का शोषक ,सामंती बन बैठा है. संघटन से जुड़ना आज फायदे की बात हो गयी है खाटी कमाई का जरिया और घर बैठे रोजगार .
ख़बर है कि  नक्सलियों  के खिलाफ राज्य साझा अभियान चलाएंगे तब कई बाते इस से जुडी सामने आने लगी, लगा आवाज दबाकर और बन्दूक के दम पर इसे रोका नहीं जा सकता है आज नक्सलवाद देश के सबसे बड़ी आंतरिक समस्या के रूप में सामने है. पूरे देश में इससे निबटने की, समस्त उपायों पर चर्चाएँ चल रही है. लेकिन मुद्दा घूम-फिर कर जमीनी विवाद तथा इसका सही वितरण न होना माना जा रहा है ..हो सकता है, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भूमि की असमानता इसके पनपने का एक कारण हो लेकिन बिहार जैसे राज्यों में यह अब सही नहीं रह गया ........जब दो दशक पूर्व डी.वन्दोपाध्याय ने नक्सलवाद का मुख्य कारण जमीनों के असमान वितरण को माना था तब बिलकुल सही था आज स्थितिया बदल चुकी है .अभी हाल ही में मै बिहार गया था एक पखवाड़े की छुट्टी पर .......मै बताता चलूँ कि मेरा घर गया जिले के सुदूरवर्ती प्रखंड इमामगंज में है ....घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र जहाँ  आज भी नक्सलियों की ही सरकार चलती है. इन क्षेत्रो में एक स्टिंगर रूप में क़रीब में मैंने छह वर्षों तक काम भी किया है.. अपने स्तर पर खोजी रिपोर्टिंग की है. कई जन अदालतों में भी शामिल हुआ ...... इनके खिलाफ रिपोर्टिंग के कारण कई बार हाथ-पावँ काटने की धमकियाँ भी मिली .......मै कई वैसी चीजो का खुलासा किया था जो कही से भी जन सरोकार से जुड़ा हुआ नहीं था ........मैंने नक्सल संघटन से जुड़े कई ऐसे लोगो की सूची प्रकाशित की थी जो संघटन से जुड़ने के बाद लखपति-भूमिपति हो गए, इसमें संघटन के करीब डेढ़ दर्ज़न शीर्ष नेतायों का नाम था .........आज की स्थिति यह है कि लोग संघटन से सिर्फ पैसो के लिए जुड़ रहे है .....उपभोक्तावादी दौर में लोगो के महत्वकांक्षा इतनी बढ़ गयी है कि आज का युवा सिर्फ पैसा चाहता है और यही पैसे पाने की लालसा का फायदा देशविरोधी पाक-समर्थित आतंकवादियों के साथ -साथ यह नक्सली भी उठा रहे हैं. संघटन से जुड़ने वाले लोगो को ४०००/- से लेकर २५०००/- तक बतौर मेहनताना दिया जा रहा है और ताकत ,अहम्, गुरुर तथाकथित सम्मान अलग मिल रहा है. इनसे जुड़ने का दूसरा कारण खासकर कमजोर वर्गों का बहुत समय से दबाया जाना भी है .....आज भी बदले की भावना से लोग संघटन से जुड़े हैं...... तथा जुड़ रहे हैं.. ग्रामीण अंचलो में नक्सलियों की अदालत बैठती हैं जिसमे सैकड़ो मुद्दे जो विशेष जमीनी विवाद से जुड़े होते हैं निबटाया जाता है ......
बिहार सरकार मान रही है कि नक्सली घटनाओ में कमी इसके द्वारा की जा रही उपायों से हो रही है जो कुछ हद तक तो सही हो सकता है पूरी तरह से नहीं.....
हाल ही में मेरी मुलाकात नक्सली गतिविधियों से जुड़े एक नेता से हुई थी उसने जो सच्चाई बताई ,हैरतअंगेज थी .....अब माओवाद सिर्फ तक रह गया है,व्यहवहार में उसके समर्थकों का काम चन्दा या लेवी वसूलना भर रह गया है..आज हरेक कस्वे ,गाँव बाज़ार में इन्होने अपना नेटवर्क फैला रखा है. सूचना देने के बदले नक्सली इन युवाओं को सरकारी ठीकेदारी, बीडी पता का ठेका ,बस स्टैंड,बाज़ार का ठेका ,जंगली सामानों लकड़ियों की तस्करी, लेवी बसूलने जैसे कामो के जरिये रोजगार दे देते हैं.......बताया जाता है कि बिहार सरकार के सालाना बज़ट से ज्यादा तो इनका बज़ट है एक अनुमान के मुताबिक आज इनके पास ५००००/-करोड़ से ज्यादा का नगदी प्रवाह है . कुछ लोगों को यह सच स्वीकारना गवारा न हो लेकिन कहने में कोई गुरेज़ नहीं  कि माओवादी कमुनिस्ट पार्टी अब जन सरोकार से सम्बन्ध रखने वाली पार्टी न रहकर लिमेटेड कंपनी बन चुकी है.
संघटन से जुड़ने वाला हरेक व्यक्ति व उसका परिवार तब तक संघटन के वेलफेयर का फायदा लेता है जबतक वह संघटन से जुड़ा रहता है ...इस संघटन से जुड़े कई लोगो के बच्चे उच्च स्तरीय अंग्रेजी स्कूलों में पढाई कर रहे हैं. .......उन सारी चीजो का उपभोग कर रहे हैं. जिसे फिजूलखर्ची बोला जाता है ........संघटन के एक बड़े नेता एवं एक शीर्ष नक्सल नेत्री से शादी के दरम्यान वो सब किया गया जो संघटन के नीतियों के विरुद्ध था ....दर्जनों गाड़ियाँ और हजारो को खाना खिलाने की व्यवस्था की गयी थी इसी तरह संघटन से जुड़े एक नेता के गृहप्रवेश पर भी धन और बाहू बल का जमकर प्रदर्शन किया गया. यह  सब छोटे छोटे वाकये हैं जिसे मैंने यहाँ जिक्र किया है जो यह बतलाता है कि संघटन एक प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी की तरह काम कर रही है .एक वाकया मुझे आज भी याद है दलित तबके का एक व्यक्ति मेरे घर आया और कहा कि सरकार से भूदान में हम ४२ दलित लोगो को ४२ कट्ठा जमीन का परचा दिया गया था जिसपर आज नक्सलियों का खुला संघटन किसान कमिटी का कब्ज़ा है...जिससे जुड़े हुए सभी लोग पुर्व सरकार के समर्थक रहे एक जाति विशेष से हैं..और हम भूखो मर रहे हैं. जब मैंने इसे अखबार में छापा तो खाफी हंगामा हुआ और दलितों को जमीन वापस दी गयी . यह सारी बाते यहाँ इसलिए कही जा रही है ताकि सच्चाई सामने आ सके. आज सरकारी कारिंदे खुद मिले हुए हैं , इन लोगो के साथ .....पुलिस खुद समझोता करती है कि  हमारे क्षेत्र में अपराध नहीं करो, हम तुम्हारे आदमियों को नहीं पकड़ेगे .......और इसे ही सरकार नक्सल गतिविधियों का कम होना मानती है . महीने में सात से दस दिन तो नक्सली अपने प्रभाव वाले क्षेत्रो में जब चाहते है पूरा बाज़ार बंद करवा देते हैं .....पिछले साल ही केताकी औरंगावाद के पास नक्सलियों ने पूरे एक महीने तक एक बाज़ार को बंद करवा रखा था ............क्या कहेगे इसे आप ........?????
नक्सलियों ने लोगो को धन दिया है सम्पनता दी है. आप क्या दे रहे, उसे आज़ादी के छः दशक में उसे जीने की आज़ादी तो दे ही नहीं सके .....भूख से मरना आज भी जारी है .......गरीबो की एक बड़ी तादाद आपका मुह चिढ़ा रही है ........अकाल और बाढ़ पर आज इतने सालो बाद भी अंकुश नहीं लगा सके, सुदूरवर्ती क्षेत्रो में चिकित्सा के अभाव में आज भी लोग दम तोड़ रहे है और आप कहते है हम नक्सलवाद का नियंत्रण कर लेंगे .....??? नक्सलियों से मिले पैसे और रोजगार के दम पर खुद ही जीना सिख रहे हैं लोग आज लिमिटेड कम्पनी की तरह हजारो लोगो के परिवार का भरण पोषण इन नक्सलियों के द्वारा हो रहा है. इनके लिए मसीहा हैं नक्सली ..
क्या सरकार इन लोगो को रोजगार मुहैया करवा पायेगी जो नक्सली संघटन कर रहे हैं....... ????
सिर्फ खेती पर आश्रित रहने वाले लोगो के पास चार महीने से ज्यादा का काम नहीं. संघटन से जुड़ना इनकी मजबूरी है आप इन्हें रोजगार दे सुविधा दे...........परिणाम आपके सामने आ जायेगा. सिर्फ कागज़ पर आंकड़ो के खेल से गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं हो सकता और न ही अर्धसैनिक बलों के दम पर !



[लेखक -परिचय : जन्म: मगध अंचल , बिहार के रानीगंज हल्क़े में 01 मार्च 1977 को. पेशे से पत्रकार। करीब 6 साल तक दैनिक जागरण(पटना) में बतौर संवाददाता । नक्सल प्रभावित क्षेत्रो पर विशेष रिपोर्टिंग और कुछ पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता भी की । कुछ कविताओं का यत्र-त्रत प्रकाशन ...फिलवक्त :एक निजी कंपनी में अजमेर में ऑफिसर(प्रशासन) के पद पर कार्यरत]. .

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10 comments: on "बिहार में माओवादी: यानी पैसा उगाओ"

शेरघाटी ने कहा…

.....उपभोक्तावादी दौर में लोगो के महत्वकांक्षा इतनी बढ़ गयी है कि आज का युवा सिर्फ पैसा चाहता है और यही पैसे पाने की लालसा का फायदा देशविरोधी पाक-समर्थित आतंकवादियों के साथ -साथ यह नक्सली भी उठा रहे हैं.

शेरघाटी ने कहा…

संघटन से जुड़ने वाले लोगो को ४०००/- से लेकर २५०००/- तक बतौर मेहनताना दिया जा रहा है और ताकत ,अहम्, गुरुर तथाकथित सम्मान अलग मिल रहा है. इनसे जुड़ने का दूसरा कारण खासकर कमजोर वर्गों का बहुत समय से दबाया जाना भी है .....आज भी बदले की भावना से लोग संघटन से जुड़े हैं...... तथा जुड़ रहे हैं..

शेरघाटी ने कहा…

ग्रामीण अंचलो में नक्सलियों की अदालत बैठती हैं जिसमे सैकड़ो मुद्दे जो विशेष जमीनी विवाद से जुड़े होते हैं निबटाया जाता है ......
बिहार सरकार मान रही है कि नक्सली घटनाओ में कमी इसके द्वारा की जा रही उपायों से हो रही है जो कुछ हद तक तो सही हो सकता है पूरी तरह से नहीं.....

Jandunia ने कहा…

पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा

सहसपुरिया ने कहा…

अच्छा पोस्ट ..

Spiritual World Live ने कहा…

. संघटन से जुड़ने वाले लोगो को ४०००/- से लेकर २५०००/- तक बतौर मेहनताना दिया जा रहा है और ताकत ,अहम्, गुरुर तथाकथित सम्मान अलग मिल रहा है. इनसे जुड़ने का दूसरा कारण खासकर कमजोर वर्गों का बहुत समय से दबाया जाना भी है .....आज भी बदले की भावना से लोग संघटन से जुड़े हैं...... तथा जुड़ रहे हैं.. ग्रामीण अंचलो में नक्सलियों की अदालत बैठती हैं जिसमे सैकड़ो मुद्दे जो विशेष जमीनी विवाद से जुड़े होते हैं निबटाया जाता है ......

Spiritual World Live ने कहा…

बिहार सरकार मान रही है कि नक्सली घटनाओ में कमी इसके द्वारा की जा रही उपायों से हो रही है जो कुछ हद तक तो सही हो सकता है पूरी तरह से नहीं.....

रंजना ने कहा…

सही कहा आपने....
इन "वादों" के सच से शायद ही आज कोई नावाकिफ हो...

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