बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

धरती आबा बिरसा के गांवों में आदिवासी कर रहे फिल्म उलगुलान

राम-रहीम नाम के कथित बाबाओं को दे रहे जवाब   शहरोज़ की क़लम से कभी उलिहातू गांव के बिरसा मुंडा ने अबुआ दिशुम अबुआ राज के लिए उलगुलान किया था। वो 19वीं सदी के आखिरी वर्षों की घटना है। अब 21 वीं...
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शनिवार, 19 सितंबर 2015

रवीश की रविश पर युवा पत्रकार की रनिंग

एक ख़त उनके लिए जो इसे पढ़ना नहीं चाहेंगे   रवीश कुमार रिपोर्टिंग के दौरान एक ग्रामीण के साथ। फोटो साभार। गुंजेश की क़लम से ‘मेरे समाज’ के नेक लोगो ! इस ख़त को कई दिनों से टाल रहा था। बल्कि टाल...
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बुधवार, 16 सितंबर 2015

हज सब्सिडी के नाम पर ठगना बंद करे सरकार

हज के नाम पर मुसलमानों से लिया जाता दोगुना पैसा   सैयद शहरोज़ क़मर की क़लम से गैर-इस्लामिक बताते हुए हज सब्सिडी को समाप्त करने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 8 मई 2012 को दिया था।...
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