बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

सोमवार, 1 सितंबर 2014

आदिवासियों ने बनाई पहली फ़िल्म निर्माण कंपनी

पहली फिल्म सोनचांद की शूटिंग जल्द
 


















शहरोज़ की क़लम से
भारतीय सिनेमा में आदिवासी पहचान और अभिव्यक्ति को मुखर करने के लिए वंदना टेटे और ग्लैडसन डुंगडुंग ने मिलकर बिर बुरू ओम्पाय मीडिया एंड इंटरटेनमेंट एलएलपी नामक फिल्म  निर्माण कंपनी बनाई है। यह पहली फिल्म कंपनी है, जिसका स्वामित्व आदिवासियों के पास है। मुंडारी व खड़िया से मिलकर बने शब्द बुरू ओम्पाय का अर्थ ही है, जल, जंगल  व जमीन। जाहिर है, इस कंपनी की फिल्मों में नदी का चंचल प्रवाह,  पहाड़ सा स्वाभिमान और जंगलों सी हरियाली होगी।  वंदना टेटे ने बताया कि भारतीय सिनेमा के सौ साल के इतिहास में आदिवासी कहीं नहीं है। इसलिए उनकी अभिव्यक्ति व उपस्थिति के लिए कंपनी बनाई गई है। जबकि  ग्लैडसन डुंगडुंग का कहना है  आदिवासी अपनी ही जमीन से बेदखल किए जा रहे हैं, उनकी समस्याओं को प्रमुखता से फोकस करना कंपनी का उद्देश्य रहेगा।
कंपनी का पहला प्रोजेक्ट फीचर फिल्म सोनचांद  है। इसमें भी सत्तर फीसदी कलाकार झारखंडी व आदिवासी होंगे। वहीं डैनी डेंगजोप्पा, सीमा बिस्वास और उषा जाधव का अभिनय सोनचांद में चार चांद लगाएगा। झारखंड के अलावा मुंबई, दिल्ली, मप्र., छत्तीसगढ़ व राजस्थान के मनुज मखीजा, रंजीत उरांव, बृजीत सुरीन, विजय गुप्ता, इंद्रजीत सिंह, शंकर सिंह, केएन सिंह मुंडा, इंद्रजीत सिंह और सामंत लकड़ा आदि फनकारों की फिल्म में अहम भूमिका होगी।

 निरे पे सेने पे लंदय पे रियो-रियो
 निरे पे सेने पे लंदय पे रियो-रियो फिल्म सोनचांद की यह पंक्ति टैग लाइन है। मुंडारी के इन शब्दों का मतलब है, आओ दौड़ें, नाचें व खिलखिलाएं। फिल्म में संवाद पात्र के अनुसार नागपुरी, मुंडारी, भोजपुरी और हिंदी में होगा। मुंडारी संवाद कवि-प्रोफेसर अनुज लुगुन लिखेंगे। वहीं निर्देशन करेंगे, अश्विनी पंकज। अभिनय से तकनीकी पहलुओं और लेखन तक में कंपनी को एफटीआई से ट्रेंड सत्तर प्रतिशत आदिवासी युवाओं का योगदान होगा।

 कहानी जो आज तक कही नहीं गई
 इस फिल्म में 12-14 साल की आदिवासी बच्ची सोनचांद मुंडा की कहानी है। आदिवासी प्रदेश की आदिवासी समुदाय से आनेवाली यह लड़की फील्ड एथलीट है। बालिका वर्ग की 100 मीटर रेस में उसका प्रदर्शन बेमिसाल है। यह धाविका स्टेट चैंपियन है। लोग उसे नन्ही आदिवासी उड़नपरी बोलते हैं। उसका सेलेक्शन नेशनल चैंपियनशिप के लिए होता है। लेकिन चैंपियनशिप के कुछ दिन पहले एक रात कोई उसके पांव काट देता है।
भास्कर के रांची संस्करण में 1 सितंबर 2014  प्रकाशित

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