बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 12 जुलाई 2014

इजराइल की बेशर्म हठ खुद उसकी ज़ुबानी

 तुम मेरा कुछ भी न बिगाड़ पाओगे 




 
फोटो गूगल साभार













 शहरोज़ की क़लम से


मेरे बच्चों को तपती भट्ठियों में डाल दिया गया. उसकी मुस्कान अचानक चीखों में बदल जाती हैं, मैं चलते-चलते रुक जाता हूँ. मेरी बेटियों और बहनों की लुटी इस्मत। हमारे लाखों भाइयों को गैस चैंबर में बिलबिलाने को छोड़ दिया गया. आख़िर हम अपने ही घर-आँगन से धकिया दिए गए. यह बाबा आदम का ही वसीला रहा कि तुमने मुझे मेरे लाव-लश्कर के साथ अपनाया। अपने घर-आँगन में शरण दी. मेरे खिलखिलाते बच्चों को उड़ान भरने को खुला आसमान दिया। यह 29 नवम्बर 1947 की बात है. लेकिन पता नहीं,  तुम्हारे बच्चे का हंसना-खिलखिलाना मुझे अचानक बुरा लगने लगा. 5 मई 1948 को हमने अपने इजराइल राष्ट्र की घोषणा कर दी. हमने धीरे-धीरे तुम्हारी धरती फ़िलस्तीन पर अपना आशियाना फैलाना शुरू कर दिया। तुम्हें  पैर सिकोड़ने पर मजबूर कर दिया। तुम्हारी हालत इस शेर की शिनाख्त हुई:
 

ख़ुदा ने  क़ब्र में भी इतनी कम दी है  जगह
पावं फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है!   


अब मुझे तुम्हारे बच्चों के साथ रक्तिम-होली में बड़ा मज़ा आता है. तुम्हारी युवा बेटियों के वक्ष को हबकने और चूसने के बाद उसकी हत्या करना हम नहीं भूलते। अब तुम क्या करोगे? तुमने विरोध करना शुरू कर दिया, कुछ अरब मुल्कों ने तुम्हारा नाम-निहादी साथ दिया तो ज़रूर, लेकिन चौधरी जी के किचेन-कैबिनेट तक मेरी पहुँच का लाभ तो मिलना ही था. 1967 में महज़ तीन दिन के  हिंसक-श्रम से हमने गाज़ा पट्टी, पश्चिमी किनारा और सिनाई पेनिसुला पर क़ब्ज़ा कर लिया। हमने तुम्हें आतंकवादी घोषित कर दिया।
दरअसल विश्व के मेधा पर हमारा अधिपत्य हो चुका था. वहीँ दुनिया को हमने ढेरों वस्तुएं उपभोग के लिए दी. सभी शक्तिशाली मुल्कों के अहम निर्णय में हमारी दख़ल हो गयी. इसके लिए हमने वही तरीक़े अपनाने आरम्भ कर दिए जिसका इस्तेमाल हिटलर ने हमें बहिष्कृत करने के लिए किया था. हम चाहते थे और हैं भी कि तुम उस बड़े भाई की तरह सारी जागीर मुझे सौप दो. मेरी डांट-डपट को स्नेहिल छोटे भाई के समान सहन करो. आखिर इब्राहिम हम दोनों के अब्बा हैं. टोपी। दाढ़ी। ख़तना। हमारी साझी परंपरा है. एक रात जब बाबा आदम ने ख्वाब में कहा तो 1 अप्रेल 1992 को सिनाई पट्टी से हम सुबह हट गए. अगले वर्ष 30 अगस्त 1993 को तुम्हें सीमित फ़िलिस्तीनी स्वशासन की इजाज़त दे दी. वादा भी सियासी कर दिया, गाज़ा और वेस्ट भी तुम्हें दूंगा।

तुमने इसे सच ही समझ लिया। तुम आज़ाद देश का सपना देखने लगे. 1996 में हमारा दक्षिण पंथी नेतानयाहु  सत्ता में आया तो गरज पड़ा, अलग फ़िलिस्तीन देश कभी स्वीकार नहीं। अब क्या है कि तुम्हारा सर उठाकार चलना मुझे तनिक भी सुहाता नहीं। हमने अपने ही खलनायक से यह सीखा है कि झूठ को सौ बार बोलो तो सच हो जाएगा। हमने चौधरी जी को भी यही टिप्स दी है. देखो उन्होने कहा, इराक़ में रासायनिक हथियार है, दुनिया ने मान लिया। ताज़ा मामला इराक़ का ही, अहले हदीस के ख़रीदे लड़ाकुओं को सुन्नी आतंकवादी कहा, सब ने माना। वरना बिना चौधरी जी की मदद के यह क़रीब दो हज़ार लड़ाकू इराक़ की तीन लाख सेना के आगे टिक पाते। 

खैर! मैं मुद्दे पर आऊं अब नयी नस्ल नहीं जानती कि  तुमने मुझे शरण दी थी. यह जानती है कि तुम आतंकवादी हो. मेरे महान देश के लोकतंत्र और शांति व्यवस्था के लिए बहुत बड़ा ख़तरा हो! इसलिए हम पौधे को ही जला-भून कर ख़त्म करना चाहते हैं. तुम्हें अपने अय्याश अरबों से उम्मीद है, जिनकी फुलझड़ी रह-रह कर तुम छोड़ते रहते हो. हम उसे स्कड बताकर संसार को बताते हैं। घबराओ नहीं ! इराक़ के तीन टुकड़े होने तक हम तुम्हारे नाक में दम करते रहेंगे। कोई भी ताक़त तुम्हारे ख़िलाफ हिंसक कार्रवाई करने से हमें नहीं रोक सकती।

अब क्या है कि विश्व में बड़े-बड़े विचारक हमने ही दिए हैं, सो उनका मान भी ज़रूरी है. तुम्हारे बच्चों के लिए रोटियां देता रहूँगा, कुछ दिनों तक अमन की रैलियां अपुन साथ-साथ निकलंेगे। यह भूल जाओ कि वेस्ट बैंक, गाज़ा पट्टी से जेरुसलम तक तुम्हारा राज्य होगा ! मानवाधिकार की रट मत लगाओ। दुनिया अंधी और बहरी हो चुकी है. चौधरी जी का यह कमाल है. और तुम्हारे अरब उन्हीं के रहमो-करम पर सांस लेते हैं.   

दुनिया चाहे तो मेरे उत्पाद का बहिष्कार कर मेरी आर्थिक कमर लुंज कर सकती है. लेकिन बिना जॉनसन एंड जॉनसन के तुम्हारे बच्चे गोरे तो हो सकते नहीं। हग्गीज़ नहीं लाओगे बच्चे तुम्हारी पत्नी के  कपडे रोज़ ही नापाक करेंगे और उनका बर्थ डे किट-कैट के अधूरा ही माना जाएगा।जैसे बिना कोको कोला के तुम्हारा इफ़्तार और बिना नेस्ले के तुम्हारी सेहरी ना-मुकम्मल है. क्या आज बिना मैक डोनाल्ड के तुम बड़े शहर की कल्पना कर सकते हो!  ऐसी ढेरों चीज़ें हैं जो बनाते तो हम हैं, लेकिन उसे खरीद ती सारी दुनिया है। हालाँकि एक शायर तुम्हें कहता है: 

ये बात कहने की ऐ लोगों! एहतियाज नहीं
की बे-हिसी के मर्ज़ का कोई इलाज नहीं
जबीं-ऐ-वक्त प लिखा है साफ़ लफ्जों में
वो लोग मुर्दा हैं करते जो एहतिजाज नहीं 


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1 comments: on "इजराइल की बेशर्म हठ खुद उसकी ज़ुबानी "

anwar suhail ने कहा…

क्या किया जाए...
कहाँ जाएँ
हर तरफ तो झूठ का बोलबाला है
ऐसे में ऐ फिलिस्तीनियों
गम न करो...
कोई तुम्हारा रखवाला नही
अपने आंसू पोंछ लो
कोई तुम्हारे आंसू पोंछेगा नही
ये जो लोग तुम्हारे लिए
एकजुट से दीखते हैं
ये भी क्या इजराइल को
उसके किये की सज़ा दे पायेंगे
तो फिर क्यों किसी की मदद
किसी से रहम की दरख्वास्त
बस, चुपचाप मरते रहो...
जब तक आखिरी फिलिस्तीनी
इस दुनिया में है
वे चुप नही बैठेंगे.....

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