बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 25 जून 2014

इस्लाम में कंडोम !














शहरोज़ की क़लम से 
चौंकिए मत ! मुझे कह लेने दीजिये कि इस्लाम परिवार कल्याण की अनुमति देता है.यानी कंडोम का इस्तेमाल इस सिलसिले में प्रतिबंधित नहीं है.पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद के समय अज़्ल की खूब परम्परा रही है.यह अज़्ल कंडोम का ही पर्याय है.अज़्ल यानी वीर्य का बाह्य स्खलन,रोक,गर्भ की सुरक्षा.मिश्र में एक बहुत ही प्राचीन विश्वविद्यालय है जिसकी मुस्लिम जगत में मान्य प्रतिष्ठा है जामा [जामिया ] अल अज़हर ,यहाँ के ख्यात इस्लामी चिन्तक शेख जादउल हक़ अली कहते हैं:
कुरआन की तमाम आयतों के गहरे अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि इसमें से ऐसी कोई आयत नहीं है जो गर्भ रोकने या बच्चों की संख्या को कम करने को हराम क़रार देती हो.

अन्यथा हरगिज़ न लें तो इस तरफ ध्यान दिलाने की गुस्ताखी करूँगा कि कहने का अर्थ कतई यह नहीं है कि भारत मे बढ़ती जनसंख्या के पीछे मुस्लिम समुदाय का योगदान खूब तर है.सच तो यह है, अब तक के तमाम सर्वे ने इस झूठ की कलई खोल दी है.जहां निरक्षरता है, उस समाज में परिवार कल्याण को लेकर जाग्रति नहीं है.ऐसा मुस्लिम समेत अन्य समुदायों में भी देखने को मिलता है.बहुविवाह को लेकर व्याप्त भ्रांतियों को भी अनगिनत शोध्य ने गलत साबित किया .बहुविवाह का मुस्लिमों की अपेक्षा दूसरे समाज में अधिक चलन है.अब तो ढेरों हिन्दू भी कई शादियाँ कर रहे हैं. यह दीगर है कि इसके लिए इस्लाम का सहारा लेते हैं.खैर विषय से ज़रा इतर भाग रहे अपने घोड़े को यहीं विराम देता हूँ.
तो मैं कह रहा था कि मुस्लिम समाज में अक्सर धर्म को हर मर्ज़ की दवा बताये जाने की परम्परा है.लेकिन ऐसा कहने वाले खुद अपने धर्म के मूल स्वर या उसकी गूढ़ बातों से अनजान रहते हैं.मुल्लाओं के बतलाये मार्ग पर चलना ही तब इन्हें श्रेयस्कर लगता है.और इसका खामियाजा यह होता है कि मुस्लिम विरोधी शक्तियां सीधे इस्लाम पर ही आक्रमण करने लगती हैं.कुरआन की अपने अपने ढंग से समझने और अपने मुताबिक तोड़ मरोड़ कर आयतों के इस्तेमाल की कुपरम्परा रही है.ऐसा मुस्लिम विरोधी अक्सर करते हैं.और कभी कभी कई वर्गों में विभक्त मुस्लिम समाज के धर्म गुरुओं ने भी किया है.कईयों ने गहन अध्ययन मनन के बाद निष्कर्ष निकालने के सार्थक यास भी किये हैं.कुरआन और हदीस में किसी बात का समाधान न हो तो इस तरह के कोशिशों के लिए इज्तीहाद के परम्परा रही है.

यूँ तो हर समूह ने परिवार कल्याण के समर्थन और विरोध में कुरआन और हदीस का ही हवाला दिया है.इसके विरोध में प्राय यह कहा जाता है कि किसी जिव को जिंदा दर्गोर करना गुनाह है.कुरआन की कुछ आयतें :

अपनी औलाद को गरीबी के डर से क़त्ल न करो.हम तुम्हें रोज़ी देते हैं उन्हें भी देंगे.
[अल अनआम-६]

और जब जीवित गाडी गयी लडकी से पूछा जाएगा कि उसकी ह्त्या किस गुनाह के कारण की गयी.
[अत तक्वीर ८-9]

परिवार कल्याण के विरोध में कुछ लोग ऐसी ही आयतों को सामने रखते हैं.उन्हीं यह बखूबी ज़ेहन में रखना चाहिए कि इस्लाम से पूर्व समाज में लड़कियों को जिंदा ही ज़मीन में दफन करने की गलत परम्परा थी.मुफलिसी के कारण भी लोग संतानों को मार दिया करते थे.यह आयतें उस गलत चलन के विरोध में है.इस सिलसिले में अपन आगे और स्पष्ट करेंगे.लेकिन परिवार कल्याण के विरोधी जन इस बात को स्वीकार करते हैं कि अज़्ल या गर्भ निरोध यानी गर्भ धारण रोकने के विरुद्ध कुरआन में कोई स्पष्ट प्रतिबंध का ज़िक्र नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं कि पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद के समय अज़्ल का चलन था.और मुसलमान इस से अछूते न थे.और कुछ सहाबियों पैग़म्बर के समकालीन उनके शिष्यों ने ऐसा परिवार कल्याण यानी गर्भ रोकने के ध्येय से भी किया.इसकी जानकारी पैग़म्बर को भी थी लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना नहीं किया.जबकि उस समय कुरआन नाजिल हो रही थी बावजूद इसके प्रतिबंध का प्रश्न खड़ा नहीं हुआ.
कुछ हदीसों से:
एक सहाबी जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने कहा कि रसूल अल्लाह के समय हम अज़्ल किया करते थे और कुरआन नाजिल हो रहा था.
[मुस्लिम,तिरमिज़ी,इब्न माजा]

आप आगे कहते हैं हवाला मुस्लिम हदीस कि रसूल अल्लाह को इस बात का पता चला तो उन्होंने हमें इस से मना नहीं फरमाया.
एक हदीस के सूत्रधार हज़रत सुफियान कहते हैं कि [जब कुरआन नाजिल हो रहा था ]यदि यह प्रतिबंधित होता तो कुरआन हमें रोक देता .

ताबायीन [सहाबियों के शिष्यों को कहा जाता है.] के समय भी अज़्ल का चलन रहा.और गर्भ धारण रोकने के लिए ऐसा किया जाता रहा.पैग़म्बर के देहावसान के काफी बाद तक ऐसी परम्परा रही.मुसलामानों के चार प्रमुख इमामों में से एक इमाम हज़रत मालिक ने भी अज़्ल को जायज़ क़रार दिया है.हाँ ! यह सही है कि पहले खलीफा हज़रत अबू बकर, हज़रत उम्र,हज़रत उस्मान बिन अफ्फान, हज़रत अब्दुल्लाह बिन उम्र आदी सहबियों और खलीफाओं ने अज़्ल को नापसंद ज़रूर किया है.लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं कि अज़्ल हराम है.
कईयों को शंका हो सकती है किअज्ल के बाद भी तो गर्भ जिसे ठहरना हो , आप रोक नहीं सकते.इस सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है जैसा कि मशहूर हदीस है कि पहले ऊँट को बाँध दो फिर अल्लाह पर भरोसा करो.यानी अपनी तरफ से बचाओ के उपाय अवश्य करो , नियति में जो लिखा है वो तो होंकर रहेगा,चिंता मत करें.लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो जाता कि सुरक्षा न की जाय! अबू सईद से रिवायत है ,आपने कहा रसूल अल्लाह से पुछा गया तो आपने फरमाया : हर पानी से बच्चा पैदा नहीं होता और जब अल्लाह किसी चीज़ को पैदा करना चाहता है तो उसे ऐसा करने से कोई रोक नहीं सकता .[मुस्लिम]
मुस्लिम,इब्न माजा,इब्न हम्बल. दारमी और इब्न शेबा जैसे हदीसों के जानकारों ने हवाले से लिखा है कि पैगम्बर हज़रत मोहम्मद ने गर्भ रोकने के लिए अज़्ल को बताया.
कशानी ने रसूल अल्लाह के हवाले से कहा कि आपने फरमाया औरतों से अज़्ल करो या न करो जब अल्लाह किसी को पैदा करना चाहता है तो वह उसे पैदा करेगा.

कुरआन की सूरत बक़रा की एक आयत का हवाला खूब दिया जाता है.
और स्त्री-विरोध के नाते.लेकिन इसका अर्थ इधर खुला.आयत है:
तुम्हारी बीवियां तुम्हारी खेतियाँ हैं बस अपने खेतों में जैसे चाहो, आओ.

इस आयत का अर्थ इमाम अबू हनीफा के हवाले अहकामुल कुरआन में इस तरह है :चाहो तो अज़्ल करो , चाहो तो अज़्ल न करो.
और हाँ इस सम्बन्ध में पत्नी की रज़ामंदी को वरीयता दी गयी है.अबू हुरैरा से रिवायत है कि रसूल ने फरमाया पत्नी की सहमती से ही अज़्ल किया जाय.
[अबू दाऊद, अबन माजा और हम्बल ]
एक और हदीस में आया है कि जब स्त्री स्तन पान करा रही हो यानी अपने बच्चे को यानी उसका बच्चा छोटा हो तब भी अज़्ल किया जाय.

गर्भ-निरोध उपाय के सम्बन्ध में अक्सर लोग तर्क देते हैं कि ऐसा करना हत्या के बराबर है.इस सम्बन्ध में कई हदीसें हैं.सिर्फ एकाध की मिसाल ही फिलवक्त पर्याप्त है.
हज़रत अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल अल्लाह से सहाबियों ने पूछा कि यहूदी तो अज़्ल को छोटा क़त्ल कहते हैं.तो अल्लाह के रसूल ने कहा ,वह झूठ बोलते हैं. [बेहक़ी,अबू दूद,इब्न हम्बल]

बेहक़ी और निसाई में भी दर्ज है कि हज़रत अली ने भी इसे हत्या मानने से इनकार कियाहै.जब तक कि यह सात मंजिल तय न कर ले.हज़रत अली ने सूरत अल मोमीनून का भी ज़िक्र किया.

मैं इस्लाम का मान्य विश्लेषक या विद्वान् नहीं हूँ.बस जो अध्ययन में सामने आया उसी के हवाले से अपनी बात रखने की कोशिश की है,कहाँ तक सफल रहा हूँ..यह निर्णय पाठक कर सकते हैं.वैचारिक मतभेद भी संभव है, लेकिन इतनी गुजारिश ज़रूर है कि तर्कों के साथ आप अपनी बात रखें.कुतर्क से बात का बतनगड़ तो हो सकता है कोई सार्थक संवाद कतई नहीं.

और हाँ यह भी सूचना बता देना अहम समझता हूँ कि तुर्की, मिश्र,इराक,पाकिस्तान, बँगला देश,इंडोनेशिया समेत सोवियत रूस से विभक्त आधा दर्जन मुल्कों सहित ढेरों मुस्लिम देशों में परिवार कल्याण योजना को स्वीकृति हासिल है.
और अपने मुल्क में भी पढ़ा लिखा मुस्लिम तबक़ा इसका पालन करता है.जैसे जैसे शिक्षा का उजास फैलेगा लोग कुरआन,हदीस और विज्ञान के प्रकाश में दीन और दुनिया को देखेंगे .

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यह लेख हमने अपने ब्लॉग पर 6 जुलाई 2010 को पोस्ट किया था. तब अमर्यादित टिप्पणियों को छोड़ आई यह कुछ प्रतिक्रियाएं।
वॉयस ऑफ द पीपुल :इस्लाम मैं अज्ल रिजक के खौफ से मना है, क्योंकि रिजक देने वाला अल्लाह है. इसमें बीवी की रजामंदी ज़रूरी है. इस्लाम मैं मुस्तकिल तौर पे (नसबंदी) औलाद का होना रोकना मना है. 7 जुलाई 2010 को 12:37 am

टीएम ज़ियाउल हक़ :हम आपको कई बार कह चुके की मज़हबी मामले में ज़रा सूझ बूझ कर लिखा करें। 7 जुलाई 2010 को 2:02 am

शहनवाज़ सिद्दीक़ी: किसी भी मुद्दे पर कोई फतवा तो केवल आलिम ही दे सकता है....... बात अगर विचार की जाए तो मेरे विचार से बच्चों को पालने की चिंता से परिवार नियोजन के तरीके इस्तेमाल करना बेहद गलत है. अल्लाह कुरआन में फरमाता है कि (अर्थ की व्याख्या) "रोज़ी का ज़िम्मेदार तो वह है". हाँ किसी परेशानी अथवा बच्चों की उम्र में अंतर के लिए परिवार नियोजन के तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है. 7 जुलाई 2010 2:24 am
सहसपुरिया: आपने अपने नज़रिए से बात कही है,मेरे ख़याल से इस मुद्दे पर आलिमो की राय भी ली जाए तो अच्छा होगा. इस बारे में कई बार बहस भी हो चुकी है. अज़हर यूनिवर्सिटी के आलिमो ने इस बारे में बहुत खोज बीन की है.सभी से गुज़ारिश है इस मसले पर तर्क से बात करें. शहरोज़ साहब की बात को समझ कर ही कॉमेंट दें.
7 जुलाई 2010 3:14 am

राकेश पाठक: bhaiya Isalam par kuch bhi likhne se pahle himmat honi chahiye....aapne wo himmat dikhayi.dhanyad..Par bhaiya agar aapne ye himat naam kamane ke liye dikhayi hai to mai ise thik nahi manta....lekin agar aap ise ek budhjiwi ki tarah dharm ka darpan dikhya hai to thik hai .... aapke samrthan me kitne haath uthte hai ab ye dekhna hai . 7 जुलाई 2010 5:54 am


ख़ालिद ए अहमद : saroj ji ne is mude par ke behesh ki surwat ki hai aur is aap aur baat honi chahiye ......kuch islamik jankaro ki bhi raye ki jarurat hai
7 जुलाई 2010 7 :26   am
डॉ अनवर जमाल ख़ान: शहरोज़ भाई ने अच्छी जानकारी दी . ये बात सही है कि इस्लाम में नसबंदी करना हरम है और परिवार कल्याण वाजिब है . परिवार का कल्याण होता है कुरआन पाक कि तालीम पर चलने से . वक्ती ज़रूरत के तहत आदमी अज़ल कर सकता है . लेकिन आजकल तो ज़िनाकारी / व्यभिचार के लिए बिक रहे है कंडोम . लोग ज़कात देने लगें तो फिर परिवार का पूरा ही कल्याण हो जायेगा। कन्या भ्रूण-हत्या आज गूगल में देख रहा था कि हिंदी दुनिया में क्या चल रहा है ? इसी दरमियान इस लेख पर नज़र पड़ गयी और मैं इसे उठा लाया आपके लिए, http://vedquran.blogspot.com/2010/07/islam-is-saviour-of-girlchild.html 
7 जुलाई 2010 7 :29  am

अविनाश वाचस्पति : मानवहितकारी विषयों पर सार्थक विमर्श सदैव होते रहने चाहिएं। इस प्रकार के विमर्श के उपरांत ही सही नतीजे प्राप्‍त होते हैं। इन्‍हें जाति इत्‍यादि के बंधनों में बांधकर गरीब नहीं बनाना चाहिए।7 जुलाई 2010 6:32 am
रंजना ठाकुर: आपका यह पुनीत प्रयास सराहनीय वन्दनीय है....शत प्रतिशत सहमत हूँ आपके विचारों से..दिग्भ्रमिता की यह स्थिति सभी धर्मो पंथों के अनुयायियों बीच है...और इसका समाधान निस्संदेह शिक्षा तथा जागरूकता ही है... 31 जुलाई 2010 3:13 am
नदीम अख्तर : शहरोज जी ने जो बात रखी है, उसका सीधा का संदेश है कि क्या मुसलमान परिवार नियोजन कर सकता है या नहीं। इसमें मिर्चई लगने का मतलब समझ में नहीं आता है। इतने सरल से विषय को पगलैती करके दूसरा मोड़ दे देना जहालत ही है।13 जुलाई 2012 12:35 am 

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2 comments: on "इस्लाम में कंडोम !"

Ila ने कहा…

सच यही है , कोई भी धर्म हो वह मानवता की प्रगति के लिए, मनुष्य मात्र की भलाई के लिए ही होता है। उसका गलत मतलब निकाल कर , या उस परदा डाल कर कुछ स्वार्थी लोग अपना हित साधते हैं । दुनिया में ऐसे ही चालाक स्वार्थी लोगों की संख्या बहुत नहीं है लेकिन वे शीर्ष पर हैं और आम आदमी को अरसे से गुमराह कर रहे हैं ।

anwar suhail ने कहा…

इन विचारों को व्यापक समाज में आना चाहिए.....

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- अल्लामा जमील मज़हरी

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