سرفروشی کی تمنا اب ہمارے دل میں ہے
دیکھنا ہے زور کتنا بازو ے قاتل میں ہے
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू -ए-क़ातिल में है।
Sarfaroshi ki Tamanna Ab Hamare Dil Me Hai
Dekhna Hai Zor Kitna Bazu-E-Qatil Me Hai
यह शेर बिस्मिल अज़ीमाबादी का है. लेकिन आज़ादी के दौरान इसके असर ने यूँ हंगामा बरपा किया कि हर जुबां पर यह नारा बन गया. ख्यात क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने खुद इस ज़मीन पर नज़्म कही. बस यहीं से यह शेर उनके नाम मंसूब हो गया। इस संबंध में विस्तृत लेख यहां पढ़ें।
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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी