बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 11 जून 2014

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है: बिस्मिल अज़ीमाबादी













 

سرفروشی کی تمنا اب ہمارے دل میں ہے

دیکھنا ہے زور کتنا بازو ے قاتل میں ہے

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू -ए-क़ातिल में है।


Sarfaroshi ki Tamanna Ab Hamare Dil Me Hai
Dekhna Hai Zor Kitna Bazu-E-Qatil Me Hai






यह शेर बिस्मिल अज़ीमाबादी का है. लेकिन आज़ादी के दौरान इसके असर ने यूँ हंगामा बरपा किया कि  हर जुबां पर यह नारा बन गया. ख्यात क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल ने खुद इस ज़मीन पर नज़्म कही. बस यहीं से यह शेर उनके नाम मंसूब हो गया। इस संबंध में विस्तृत लेख यहां पढ़ें।



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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

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