बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 30 नवंबर 2013

पटना ब्लास्ट के एक महीने बाद कितनी बदल गयी ज़िंदगी

 इस दुकान की बायीं तरफ़ पहले कैफे भी हुआ करता था, जिसे बंद कर अब निशा स्टोर को बढ़ा दिया गया है. फ़ोटो मीर वसीम   दहशत ने बनाया अपनों को संदिग्ध: कई शहर, तो कुछ स्कूल छोड़ने को तैयार,   बच्चों के लैपटॉप तक की होने लगी मॉनिट्रिंग ...
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मोदी को बुलेट से नहीं बैलेट से दें जवाब: अहले हदीस मस्जिद के इमाम

इमाम ज़ियाउल हक़ फ़ैज़ी ने कहा बम या गोली मसले का हल नहीं मामला नाइंसाफी से जुड़ा हो या फौरी गुस्सा से उबली प्रतिक्रिया इस्लाम या अहले हदीस हिंसा की इजाजत नहीं देता। कुछ भटके हुए लोग जिहाद की गलत व्याख्या कर रहे हैं। जिहाद आतंकवाद नहीं होता।...
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सोमवार, 25 नवंबर 2013

ईंट उठाने वाली मज़दूर बनी यूनिवर्सिटी टॉपर

गोल्ड मेडल पाकर  कहा, नौकरी मिल जायेगी न! पदक पाकर मुन्नावती रो पड़ी   चित्र: रमीज़ जावेद शहरोज़  @  मुन्नावती बरसों रेजा मजदूरी करते बचपन से युवा होने तक जो सपना देखा था, उसके साकार होने में मात्र कुछ ही घंटे बचे थे।...
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शनिवार, 9 नवंबर 2013

शमा-ए-हरम हो, या दीया सोमनाथ का

       फोटो वसीम छठ पर्व पर बिखरी  परस्पर प्रेम की खुश्बू   साफसफाई, सजावट सहित फल वितरण  में मुस्लिम  रहे अव्वल सूर्य उपासना के महापर्व छठ के अवसर पर राजधानी के लेक रोड का...
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गुजरात नरसंहार के बहाने

हिंसा  के तर्क और तर्कों की हिंसा: एक आलोचनात्मक  प्रयास      हिलाल अहमद  की क़लम से हिंसा, विशेषकर ' सामूहिक हिंसा’ को समझने के दो संभव तरीके हो सकते हैं। पहला तरीका घटनाओं और व्यक्तियों के...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)